भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की जमीन तैयार कर रहा विपक्ष
नई दिल्ली। देश में लोकसभा का चुनाव भले ही 2024 में हो लेकिन पश्चिम बंगाल की जीत से उत्साहित विपक्ष एक बार फिर भाजपा विरोधी मोर्चा तैयार करने की कवायद में जुट गया है। दअरसल बंगाल में जिस तरह भाजपा की लाख कोशिश के बाद दीदी दोबारा सत्ता पर काबिज हुईं इस राजनीतिक घटना ने विपक्ष को ऑक्सीजन देने का काम किया है। अब भाजपा विरोधी दल एक छत्र के नीचे आ कर भाजपा से मोर्चा लेना चाह रहे हैं। इस भाजपा विरोधी खेमे की तैयारी में पीके शरद पवार और ममता बैनर्जी जैसे दिग्गज शामिल हैं।
विपक्ष के नेता दिल्ली में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सुप्रीम शरद पवार के आवास पर बैठक कर रहे हैं, हालांकि कांग्रेस इस बैठक में शामिल नहीं हो रही है। कांग्रेस में शामिल नहीं होने के अलग-अलग राजनीतिक निहितार्थ हैं। नेताओं की बैठक के एजेंडे के बारे में कहा गया है कि इस बैठक में देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और आर्थिक संकट पर चर्चा की जाएगी। जाहिर है कि इन मुद्दों के जरिए विपक्ष के नेताओं को एक-दूसरे के करीब लाने और उनके मन को टटोलने का प्रयास किया जाएगा।
शरद पवार के आवास पर हुई इस मुलाकात को अलग-थलग पड़े विपक्ष को साथ लाने और भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। दरअसल, जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ममता बनर्जी की घेराबंदी कर बंगाल चुनाव में उनके खिलाफ मोर्चा खोला, उससे कहीं न कहीं ममता बनर्जी के मन में भगवा पार्टी को सबक सिखाने की बात घर कर गई है। ममता की निगाहें अब तीन साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिकी हैं। वह जानती हैं कि वह राष्ट्रीय स्तर पर अकेले भाजपा का मुकाबला नहीं ले सकती । इसके लिए उन्हें गैर भाजपा दलों का मोर्चा बनाना होगा। जाहिर है कांग्रेस इसमें नहीं होगी।
प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति बंगाल में सफल रही है। अगले आम चुनाव में भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को किस तरह की रणनीति अपनानी चाहिए, पीके ने ममता को फॉर्मूला सुझाया होगा। हो सकता है कि ममता बनर्जी इस फॉर्मूले के साथ आगे बढऩा चाहती हैं। वह बंगाल चुनाव में भाजपा को हराकर विपक्ष की बड़ी नेता बन गई हैं। पीके ने दिल्ली, तमिलनाडु समेत कई राज्यों में अपनी चुनावी रणनीति को सफल बनाया है। वह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर के सलाहकार हैं। अभी विपक्ष पीके की जरूरत महसूस कर रहा है। ऐसी स्थिति में अगर वह किसी बात की करते हैं तो फिर कोई भी पार्टी उनकी अनदेखी नहीं करना चाहेगी।
दरअसल शरद पवार एक मजबूत नेता हैं। बताया जा रहा है कि उनके दोस्त सभी पार्टियों में हैं। महाराष्ट्र में अपने बागी भतीजे अजित पवार को वापस लाने में उन्होंने जिस तरह की रणनीति अपनाई, उससे उनकी राजनीतिक परिपक्वता और चाणक्य नीति साबित हुई। पवार राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं। उन्हें राजनीति और सरकार का व्यापक अनुभव है । कुछ समय पहले उन्हें यूपीए की कमान सौंपने की बात हुई है। पवार के कई दलों के साथ मधुर संबंध हैं। अगर ममता और पवार दोनों एक साथ आते हैं और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ खड़े होते हैं तो एक तीसरा मोर्चा आकार ले सकता है । अभी के लिए इस मोर्चे की एक बानगी पवार के आवास पर होने वाली बैठक में शामिल होने वाले नेताओं से देखी जा सकती है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की हालत और कमजोर हो गई है। पार्टी पंजाब, राजस्थान, केरल, कर्नाटक और असम में गुटबाजी का शिकार है। यह अपने क्षेत्रीय नेताओं के बीच अंतर्कलह से जूझ रही है। कांग्रेस पंजाब में कैप्टन अमरिंदर-नवजोत सिंह सिद्धू, राजस्थान में अशोक गहलोत-सचिन पायलट के बीच कोई रास्ता नहीं निकाल पा रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान की अपने क्षेत्रों पर पकड़ कमजोर पड़ रही है। कांग्रेस नेतृत्व परिवर्तन की मांग समेत कई आंतरिक समस्याओं से जूझ रही है। वह विपक्ष का कमजोर विकल्प साबित हुई है । ऐसी स्थिति में अगर ममता और पवार के नेतृत्व में कोई तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आता है तो फिर वह आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने चुनौती पेश कर सकता है।