लालू के लल्ला जुटे हैं आपस में ही जोरआजमाइश में

नई दिल्ली। इन दिनों बिहार की राजनीति में बहुत कुछ नया हो रहा है। पेगासस और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा की लाइन से अलग जाते हुए दिखाए दे रहे हैं। बिहार की राजनीति में जदयू का यह रवैया जरूर चौकाने वाला है। इसके कई निहितार्थ भी हो सकते हैं। खैर, चौंकाने के विषय में राजद भी पीछे नहीं है। राजद कार्यालय में हाल ही में पोस्टर वॉर से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार में चल रही वर्चस्व की जंग एक बार फिर सामने आ गई है। दरअसल, पटना में तेज प्रताप यादव की छात्र राजद की बैठक के लिए लगे पोस्टर से तेजस्वी यादव की तस्वीर गायब थी। लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेज प्रताप के अलावा छात्र राजद के प्रदेश अध्यक्ष आकाश यादव की तस्वीर भी पोस्टर में थी।
राजद के 25वें स्थापना दिवस पर लालू प्रसाद यादव ने अपने दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव की जमकर तारीफ की। लालू प्रसाद लगातार राजद को जोड़े रहने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि वह तेज प्रताप और तेजस्वी दोनों को बराबरी पर लाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। लालू यादव राजद में विरासत के संबंध में पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि तेजस्वी यादव पार्टी का चेहरा होंगे। इसके बाद से तेजस्वी ने तेज प्रताप यादव के कई फैसलों पर सवालिया निशान लगा दिया है। कहा जा रहा है कि राजद में भी तेज प्रताप पूरी तरह उपेक्षित हैं। समय-समय पर तेज प्रताप इस मामले का दर्द सार्वजनिक रूप से सुनाते रहते हैं। तेज प्रताप ने राजद के स्थापना दिवस पर खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। लेकिन, ऐसा लगता है कि कार्यक्रम में तेज प्रताप ने लालू यादव को कुछ संकेत देने की कोशिश की।
जो कुछ भी स्थापना दिवस के मौके पर तेजप्रताप ने कहा उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह बिहार की कमान यानी प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंपने का संकेत दे रहे थे? यह निश्चित है कि भविष्य में तेजस्विनी यादव लालू की विरासत को संभालते हुए राजद के अध्यक्ष होंगे। लेकिन, राजद में तेज प्रताप यादव का भविष्य क्या होगा, इसे लेकर अभी भी संशय बरकरार है। तेज प्रताप की ख्वाहिश है कि राजद में तेजस्वी के बराबर उनका कद हो लेकिन, उन्हें अब तक अपने छोटे भाई की छाया में रहकर पार्टी में रहना पड़ा है। अगर तेज प्रताप को राजद में तेजस्वी के बराबर लाने के प्रयास किए जाते हैं तो फिर तेज प्रताप को कम से कम प्रदेश अध्यक्ष तो बनाना होगा। वर्तमान में तेजस्वी यादव बिहार में विपक्ष के नेता भी हैं। इसके साथ ही तेज प्रताप भी कई बार संकेत दे चुके हैं कि तेजस्वी यादव देश की राजनीति को संभालें और उनके लिए बिहार की राजनीति छोड़ दें। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि तेजस्वी को देश की राजनीति संभालनी चाहिए, उनका आशीर्वाद है।
कहा जा रहा है कि लालू यादव ने अपने दोनों बेटों के बीच की दूरी कम करने का काम राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह को दिया था। शायद जगदानंद सिंह इस काम को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। यही कारण है कि हर बार वह तेज प्रताप यादव के निशाने पर आते हैं। छात्र राजद की बैठक में जहां पोस्टर को लेकर हंगामा हुआ, वहीं इसी बैठक में तेज प्रताप ने जगदानंद सिंह को हिटलर बताया। तेज प्रताप इस पर नहीं रुके और कहा कि कुर्सी किसी की विरासत नहीं है। यह पहला मौका नहीं है जब जगदानंद सिंह तेज प्रताप के निशाने पर आए हैं। इससे पहले राजद के स्थापना दिवस पर जब जगदानंद सिंह अपने मोबाइल पर व्यस्त थे तो तेज प्रताप ने कहा था कि ऐसा लगता है। अंकल हमसे नाराज हैं। कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से इस तरह के अपमान के बाद जगदानंद सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन, लालू यादव के समझाने पर वह राजी हो गए। तेज प्रताप यादव के जगदानंद सिंह से विवाद का कारण प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तो नहीं है। यह सवाल मौजूं है।
तेज प्रताप यादव हर बार ऐसे किसी मामले के बाद तेजस्वी यादव को अर्जुन और खुद को कृष्ण के रूप में बुलाते नजर आते हैं। हाल के मामले में भी ऐसा ही हुआ है । तेज प्रताप यादव ने कहा कि तेजस्वी मेरे अर्जुन हैं और मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन, लालू परिवार में चल रही यह उथल-पुथल समय-समय पर सामने आती रहती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि तेज प्रताप ने तेजस्वी को अपना अर्जुन मान लिया है। लेकिन, वह खुद को भी कृष्ण की भूमिका में रखते है। इसलिए आसानी से कहा जा सकता है कि तेज प्रताप अपने छोटे भाई तेजस्वीसे ऊपर भले ही न सही, लेकिन कम से कम उनके समकक्ष की भूमिका निभाने की ख्वाहिश रखते हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच यह शीत युद्ध तब तक जारी रहेगा जब तक राजद में दोनों के बराबर न हो।

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