एक-एक कर करीबियों को ही दिखाया बाहर का रास्ता, क्या है मैडम का गेम प्लान

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने दो और बड़े नेताओं को बसपा से निष्कासित कर दिया। वैसे बीएसपी के लिए यह पहला मामला नहीं है। पिछले 10 सालों में बसपा सुप्रीमो ने पार्टी के कई दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखाया है। उनके बीच ऐसे कई नाम हैं, जो कभी मायावती के सबसे करीबी नेता माने जाते थे। इनमें लालजी वर्मा न सिर्फ विधायक दल के नेता थे, बल्कि वर्मा ऐसे नेता हैं, जिनके प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान 2007 में यूपी में बीएसपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। राम अचल राजभर भी मायावती के बेहद खास माने जाते रहे हैं।
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि बसपा सुप्रीमो की इस प्रक्रिया से बड़े नेताओं का पार्टी से निष्कासन कब रुकेगा? 2012 में उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। इस बात को 10 साल हो गए हैं । बीएसपी से निष्कासित विधायक असलम राईनी का कहना है कि इन 10 सालों में बीएसपी 206 विधायकों में से सिर्फ 4 विधायक ही बचे हैं।
यह एक सच्ची बात है । प्रदेश स्तर पर पहचान प्राप्त करने वाले बसपा के नेता एक-एक कर के बसपा से अलग हो गए हैं। 2007 में जब प्रदेश में बीएसपी की बहुमत की सरकार बनी थी, तब मायावती द्वारा कैबिनेट मंत्री बनाए गए सभी विधायकों में से आज बसपा के साथ कुछ ही खड़े हैं।
मायावती ने जब 2007 में 206 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी नकुल दुबे, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, लालजी वर्मा, रामवीर उपाध्याय, ठाकुर जयवीर सिंह, सुधीर गोयल, स्वामी प्रसाद मौर्य, वेदराम भाटी, चौधरी लक्ष्मी नारायण, राकेश धर त्रिपाठी, बाबू सिंह कुशवाहा, फागू चौहान, दद्दू प्रसाद, राम प्रसाद चौधरी, धर्म सिंह सैनी, राम अचल राजभर सुखदेव राजभर और इंद्रजीत सरोज को बड़े विभाग दिए गए।
इनमें से आज सिर्फ नकुल दुबे, सुधीर गोयल और सुखदेव राजभर ही पार्टी के साथ खड़े हैं। सुखदेव राजभर मौजूदा विधानसभा में बसपा विधायक हैं। हालांकि सक्रियता सिर्फ नकुल दुबे की ही रहती है क्योंकि अन्य दोनों नेता काफी पुराने हो चुके हैं।
ऊपर बताए गए 18 मंत्रियों में से 15 नेताओं ने दूसरे दलों से हाथ मिलाया है। रामवीर उपाध्याय, राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा जैसे नेताओं को बसपा से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन अभी तक किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं हो पाए हैं। रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय जरूर भाजपा में शामिल हुई हैं।
नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस में शामिल हो गए। ठाकुर जयवीर सिंह, वेदराम भाटी, स्वामी प्रसाद मौर्य, चौधरी लक्ष्मी नारायण, फागू चौहान और धर्म सिंह सैनी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उन्हें ऐसा करने का तोहफा भी मिला।
बीएसपी छोड के बाद बाबू सिंह कुशवाहा भी बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी जन अधिकार पार्टी बना ली। इंद्रजीत सरोज और राम प्रसाद सैनी जैसे नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। बृजेश पाठक का नाम भी बीएसपी के मजबूत नेताओं में गिना जाता था। मौजूदा योगी सरकार में वह मंत्री हैं।
स्वर्गीय कांशी राम ने विभिन्न समाजों के लोगों को चुनकर उन्हें नेता बनाया था। ओमप्रकाश राजभर, सोनेलाल पटेल, आरके चौधरी और मसूद अहमद ऐसे नेताओं में शामिल रहे हैं लेकिन सभी धीरे-धीरे पार्टी से अलग होते रहे । राजभर ने 2002 में बसपा, 1995 में स्वर्गीय सोनलाल पटेल और 2016 में आरके चौधरी को बसपा छोड़ दिया। आरके चौधरी राजनीति में कोई मुकाम हासिल नहीं कर सके, लेकिन ओमप्रकाश राजभर और सोन लाल पटेल की पार्टी अपना दल आज भी काफी राजनीतिक ताकत रखती है।
बसपा के बागी विधायकों से लेकर अन्य दलों के नेताओं ने भी लालजी वर्मा और राम अचल राजभर के निष्कासन पर निशाना साधा है। तीर राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्र की ओर है। भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने ट्विटर पर यह लिखा कि अब सिर्फ त्रिवेदी ही बचे रहेंगे। उधर, असलम राईनी ने भी सतीश चंद्र मिश्र को घेर लिया है। रायनी बसपा के विधायक हैं, जिन्हें मायावती ने पिछले साल नवंबर में पार्टी से निकाल दिया था।
अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह उठता है कि कभी सत्ता में आई बहुजन समाज पार्टी किन नेताओं की मदद से आखिरकार चुनाव मैदान में उतरेगी?

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