कैप्टन को कैप्टन की ही गुगली से सिद्धू ने किया बोल्ड

नई दिल्ली। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2015 में वन फैक्टर पर काम किया था। अमरिंदर सिंह ने कई विधायकों का समर्थन लिया और कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाया, प्रताप सिंह बाजवा को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया और कमान उन्होंने अपने हाथों में ले ली। आज नवजोत सिंह सिद्धू भी इसी दिशा में हैं। विधायकों और संभावित उम्मीदवारों के बीच यह धारणा है कि सिद्धू 2022 के विधानसभा चुनाव में उनकी सीट जीतने में उनकी मदद कर सकते हैं, यही वजह है कि उन्होंने अमरिंदर की गंभीर आपत्तियों और दुख के बावजूद सिद्धू की पीसीसी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति का स्वागत किया है। 2015 में विधायकों का मानना था कि अमरिंदर सिंह उन्हें जीत की ओर ले जा सकते हैं न कि बाजवा। अमरिंदर को पार्टी विधायकों और अन्य वरिष्ठ नेताओं का इतना समर्थन मिला कि बाजवा अलग-थलग पड़ गए और हाईकमान को उनकी जगह बदलने को मजबूर होना पड़ा।
हालांकि अब सीएम को सत्ता विरोधी लहर और उनकी सरकार की कार्यशैली को लेकर कई सवालों का सामना करना पड़ रहा है। वही विधायक और कुछ मंत्री खासकर तीन मंत्रियों की साझा ब्रिगेड, जो 2015 में उनके लिए समर्थन जुटाने में सामने आई थीं, अब सिद्धू का समर्थन कर रही हैं।अमरिंदर ने 2015 में अपने पीछे विधायकों को जुटाया और मिशन पंजाब-2017 के तहत सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू किया। इसके उलट सिद्धू कोअकेले काम करते हुए देखा गया। वह पार्टी के ज्यादातर नेताओं के लिए एक पहेली बने रहे लेकिन अपने ट्वीट के जरिए सीएम पर सवालों की बौछार करने पर अड़े रहे। पहला सीधा हमला अमरिंदर ने किया था, जब उन्होंने सिद्धू को पटियाला से चुनाव लडऩे की चुनौती दी थी। इसके बाद सिद्धू उनके लिए मुख्य चैलेंजर बनकर उभरे। पार्टी में खुद को मजबूत करने के लिए सिद्धू की अंदरूनी लड़ाई की यहीं से हुई थी। जालंधर कैंट के विधायक परगट सिंह ने भी सीएम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने सिद्धू से संपर्क किया। बाद में उन्होंने चंडीगढ़ में कुछ मंत्रियों और विधायकों से मुलाकात की। पंजाब में पार्टी का संकट जैसे-जैसे बढ़ा, पार्टी हाईकमान को हस्तक्षेप के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, ज्यादातर विधायक अभी भी सिद्धू के साथ नहीं थे, बावजूद इसके उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दिए अपने फीडबैक में कैप्टन अमरिंदर का समर्थन नहीं किया ।इस रस्साकसी में तीन ऐसी घटनाएं अहम रहीं है जिन्होंने सिद्धू के पक्ष में माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। विधायकों पर डोजियर के इस्तेमाल की सूचना देने वाले सीएम के एक करीबी सहयोगी ने परगट को चेतावनी दी, जिसे बाद में अमरिंदर ने नकार दिया और विधायकों के दो बेटों को सरकारी नौकरी देने का मुद्दा भी अहम रहा।सिर्फ कैप्टन अमरिंदर सिंह ही नहीं इस लड़ाई में सिद्धू से नहीं हारे हैं बल्कि इसका खामियाजा पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को भी भुगतना पड़ा। सिद्धू ने सबसे पहले सांसद रवनीत बिट्टू पर हमला बोला और टकसाली का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे को लेकर प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह ढिल्लो सहित अन्य नेता आगे आए। हालांकि, यह काम नहीं आया और परगट ने इसे खोखला कहा ।सांसद मनीष तिवारी ने सिद्धू को रोकने के लिए आखिरी कार्ड खेला लेकिन यह काम नहीं आया। संसद सत्र की रणनीति पर चर्चा के लिए दिल्ली में बाजवा के आवास पर पार्टी के नौ सांसदों की बैठक भी कोई असर नहीं बन पाई।

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