खोई हुई जमीन की तलाश में साइकिल पर निकले छोटे चौधरी

लखनऊ। कभी वेस्टर्न यूपी के जाटलैंड में किसी भी राजनीतिक दल की सेंधमारी को नाकाम कर अपना एकछत्र राज करने वाली आरएलडी आज अपने ही गढ़ में हाशिए पर है। अजीत सिंह की मौत के बाद अब पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी छोटे चौधरी के कंधों पर है। मौके की नजाकत को देखते हुए छोटे चौधरी साइकिल की सवारी करने का मूड बना चुके हैं। वहीं पिछले तकरीबन 19 सालों में लगातार अपनी राजनीतिक जमीन खो रही आरएलडी को अब दोबारा मजबूत करने की गरज से छोटे चौधरी अभियान छेडऩे वाले हैं। दरअसल छोटे चौधरी अपनी पुरानी राजनीतिक जमीन हासिल करने के लिए अपना पुश्तैनी फार्मूला आजमाने जा रहे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि कभी इस फार्मूले के दम पर यूपी की सियासत में अहम जगह बनाने वाली आरएलडी क्या इस बदले दौर इस फार्मूले के दम पर अपनी वापसी कर सकेगी।
जयंत चौधरी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) अपने पहले बड़े राजनीतिक आयोजन में मंगलवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाईचारा सम्मेलन की श्रृंखला का आयोजन करेगा। जाहिर है यह उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनावों से पहले खुद को फिर से फाइट में लाने के आरएलडी के प्रयासों का एक हिस्सा है । पार्टी सूत्रों के मुताबिक प्रस्तावित दो महीने तक चलने वाला कार्यक्रम मुजफ्फरनगर जिले के खतौली से शुरू होगा।
आरएलडी के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे ने कहा, कार्यक्रम का उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता बनाए रखने के अलावा अगड़ी और पिछड़ी जाति समूहों को एकजुट करना है, जिसकी इस समय तत्काल जरूरत है। उन्होंने कहा कि पार्टी का उद्देश्य धर्म और जाति से ऊपर उठकर मुद्दे पर आधारित राजनीति को बढ़ावा देने का है ।
उन्होंने कहा कि हम विभिन्न समुदायों को एक साथ लाने और सभी के लिए अहम मुद्दों को उठाने के लिए बैठकों का आयोजन करेंगे । उन्होंने कहा, निहित स्वार्थों को राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक विभाजन पैदा करना बंद करने की जरूरत है । उन्होंने आगे कहा कि जब भी सामाजिक तनाव होते हैं तो उन्हें शांत करने में नागरिक समाज की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है ।
दो दिन पहले समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मई में कोविड-19 का शिकार हुए चौधरी अजित सिंह को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए दिल्ली स्थित जयंत चौधरी के आवास पर जाकर श्रद्धांजलि दी थी। माना जा रहा है कि दोनों दल पहले से ही गठबंधन में हैं और उनके नेताओं ने आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला करने के लिए रणनीति पर चर्चा की है ।
आरएलडी का ग्राफ 2002 के चुनाव के बाद से लगातार गिरता ही जा रहा है। जब उसने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा और 14 सीटों पर 26.82 फीसदी वोट शेयर जुटाने में कामयाब रहा । 2007 के विधानसभा चुनाव में एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में बसपा के उभार ने आरएलडी को झटका दिया, जो 254 में से केवल 10 सीटें ही जीत सकी, जिससे 3.70 फीसदी वोट शेयर हासिल किया जा सका।
2012 में सपा के पुनरुद्धार ने आरएलडी को और प्रभावित किया, जिसने फिर कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। उन्होंने 46 सीटों पर चुनाव लड़ा और 2.33 फीसदी वोट शेयर के साथ सिर्फ नौ सीटों पर जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव में बागपत और मथुरा में चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी क्रमश : अपनी सीट गंवा चुके थे।
2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी को आखिरकार पूरी तरह से हार का सामना करना पड़ा क्योंकि राज्य में भाजपा की लहर व्यापक थी। पार्टी ने जिन 277 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से केवल एक ही जीत सकी । बागपत की छपराली विधानसभा सीट से उसके अकेले विधायक सहेंदर सिंह रमला भी 2018 में भाजपा में शामिल हो गए थे। हालांकि, आरएलडी अब चल रहे किसान आंदोलन और सपा के साथ गठबंधन में अपनी सक्रिय भागीदारी से पुनरुद्धार की उम्मीदें देख रही है ।

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