छत्तीगढ़ कांग्रेस में है क्या सब ‘ऑलइजवेल’

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है। हालांकि प्रदेश में जिस दिन कांग्रेस की सरकार बनी, उसी दिन से प्रदेश में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच विवाद शुरू हो गया था, लेकिन ढाई साल पूरे होने के बाद यह पूरी तरह सतह पर आ गया है। कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह ने सिंहदेव पर जान से मारने की कोशिश करने का आरोप लगाया और फिर माफी मांगी। आहत सिंहदेव विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेकर लौटे, लेकिन यह शांति कब तक चलेगी, यह संदेहास्पद है। ऐसा इसलिए क्योंकि सुलह के बाद बघेल ने बृहस्पत सिंह का आभार जताया और संदेह जताया कि पूरा मामला पार्टी की गुटबाजी से जुड़ा है।
मुख्यमंत्री बघेल और सिंहदेव के बीच टकराव और शीत युद्ध की खबरें पिछले ढाई साल से लगातार आ रही हैं। माना जा रहा है कि बघेल अपनी सत्ता के सामने संभावित चुनौतियों को दबाने के लिए अक्सर सिंहदेव को साइडलाइन करने की कोशिश करते हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद सिंहदेव को महत्वपूर्ण बैठकों में आमंत्रित नहीं करना, उनके विचारों पर ध्यान नहीं देना, सिंहदेव समर्थकों की अनदेखी करना – ऐसे कई उदाहरण पिछले ढाई साल में देखने को मिले हैं। इधर, सिंहदेव कई बार सरकार के फैसलों पर सार्वजनिक आपत्ति भी जता चुके हैं। करीब एक माह पहले उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के निजी अस्पतालों को सरकारी अनुदान देने के राज्य सरकार के फैसले से दूरी बना ली थी। सिंहदेव ने साफ कहा था कि स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद इस संबंध में उनके साथ कोई चर्चा नहीं हुई। कई बार उनका रवैया मुख्यमंत्री के फैसले को चुनौती देता रहा है।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दोनों बड़े चेहरों मुख्यमंत्री बघेल और सरगुजा शाही परिवार के सिंहदेव की छवि बिल्कुल उलट होती जा रही है। बघेल की छवि आक्रामक रही है। वे सीधे अपने विरोधियों पर हमला करने से दूर भागते नहीं हैं । उनकी इस छवि ने 2018 के चुनाव में 15 साल पुरानी भाजपा सरकार को गिराने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इस कारण वह पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने में कामयाब रहे, लेकिन सत्ता संभालने के बाद उनकी यह आक्रामकता भी पार्टी के लिए मुसीबत बन गई है। इसके विपरीत टीएस सिंहदेव अपनी सरल और सौम्य छवि के लिए जाने जाते हैं। सिंहदेव की राजनीतिक कार्यशैली सबको साथ लेकर चलने की है। दोनों ही कांग्रेस पार्टी के लिए जरूरी हैं क्योंकि उनकी आक्रामकता और कोमलता राज्य की राजनीति में संतुलन कारक के रूप में काम करती है।
राजनीतिक विशेषज्ञ बृहस्पत सिंह के आरोपों को प्रदेश में दलित-ठाकुर राजनीति को ईंधन देने की कोशिश के रूप में देखते हैं। इसे तब ताकत मिली जब कांग्रेस के करीब 20 विधायक बृहस्पत सिंह के समर्थन में सामने आए। इसे पार्टी के एक गुट ने ताकत का प्रदर्शन माना था। इसके बाद ही पार्टी हाईकमान विवाद सुलझाने के लिए सक्रिय हो गया। प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया की पहल पर बृहस्पत सिंह माफी मांगने को राजी हो गए। सिंहदेव ने उन्हें क्षमा करने के सवाल पर चुप्पी साधे रखी, लेकिन विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेकर लौट गए। इसके जवाब में बघेल ने बृहस्पत सिंह का आभार जताया जिससे साफ हो जाता है कि अभी आगे की डगर कठिन है।
कांग्रेस के लिए राहत की बात है कि सिंहदेव मुख्यमंत्री के साथ अपना विवाद पुरजोर तरीके से व्यक्त करते हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान के प्रति अपना समर्पण दिखाने से नहीं हिचकते। ढाई साल की सत्ता के कथित फार्मूले के बारे में वह हमेशा कहते रहे हैं कि हाईकमान का जो भी फैसला होगा, उसे स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने यह कहते हुए बीजेपी में शामिल होने का न्योता भी ठुकरा दिया कि अगले 100 जन्मों में भी वह कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ेंगे।

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