टीएलपी के सामने झुकी इमरान सरकार

इस्लामाबाद। प्रतिबंधित संगठन टीएलपी का पाकिस्तान में पिछले कई दिनों से भारी विरोध हो रहा है. अब इस संगठन ने इमरान खान की सरकार को अल्टीमेटम दिया है.
पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के 350 कार्यकर्ताओं को सोमवार को रिहा कर दिया है. गृह मंत्री शेख राशिद ने यह घोषणा की. इसके साथ ही चरमपंथी इस्लामिक पार्टी ने अपने अध्यक्ष साद रिजवी की रिहाई और फ्रांस के राजदूत की वापसी की मांग को लेकर दो दिन का अल्टीमेटम दिया है. विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले को टीएलपी की मांगों के प्रति पूरी तरह झुकना करार दिया है.
रशीद ने ट्वीट किया, हमने अब तक 350 टीएलपी सदस्यों को रिहा कर दिया है और हम अभी भी टीएलपी के साथ बातचीत में लिए गए फैसले के अनुसार दोनों तरफ मुरिडके रोड खुलने का इंतजार कर रहे हैं. पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सोमवार को लाहौर के विभिन्न थानों से करीब 350 टीएलपी कार्यकर्ताओं को रिहा किया गया. पिछले हफ्ते हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान उन्हें हिरासत में लिया गया था. अब तक हमने उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया है और न ही उसे कोर्ट में पेश किया है.
टीएलपी के अध्यक्ष रिजवी और फ्रांस के राजदूत की वापसी की मांग को लेकर लाहौर से 35 से 80 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर मुरिडके और गुंजरावाला के बीच समर्थक प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सरकार को रिजवी की रिहाई और फ्रांस के राजदूत की वापसी की मांग को लेकर दो दिन का अल्टीमेटम दिया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर तय समय में मांग पूरी नहीं हुई तो वे इस्लामाबाद में विरोध प्रदर्शन करेंगे.
टीएलपी के संस्थापक स्वर्गीय खादिम रिजवी के बेटे साद हुसैन रिजवी को पंजाब सरकार ने पिछले साल अप्रैल (टीएलपी प्रोटेस्ट कारण) से नजरबंद कर रखा है. रिजवी को पंजाब सरकार ने पैगंबर मोहम्मद का कार्टून बनाने के लिए फ्रांस के खिलाफ पार्टी के विरोध प्रदर्शन, फ्रांसीसी राजदूत को वापस भेजने और उस देश से आयातित सामानों पर प्रतिबंध लगाने की मांग के बाद पब्लिक ऑर्डर बनाए रखने के लिए पिछले अप्रैल से हिरासत में लिया था. इसके बाद टीएलपी ने नेशनल असेंबली में फ्रांसीसी राजदूत के निष्कासन पर एक प्रस्ताव पेश करने के पाकिस्तान सरकार के आश्वासन के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन बंद करने पर सहमति जताई ।
सरकार ने फ्रांस के दूत के निष्कासन पर बहस के लिए नेशनल असेंबली का सत्र बुलाया था और प्रस्ताव पर मतदान से पहले सदन के अध्यक्ष ने इस मामले पर चर्चा करने और इस मामले पर आम सहमति बनाने के लिए एक विशेष समिति के गठन की घोषणा की थी. सरकार और विपक्ष से बातचीत करने को कहा गया था. अप्रैल से अब तक इस विशेष समिति की कोई बैठक नहीं हुई है.

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