बाढ़ का खतरा और सरकार की तैयारी

sanjay sharma

सवाल यह है कि सरकार हर साल बाढ़ से होने वाली व्यापक जन-धन की हानि को रोकने में नाकाम क्यों है? क्या बाढ़ का स्थायी समाधान नहीं है? क्या बेतरतीब विकास और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने नदियों को विनाशकारी बना दिया है? क्या राहत कैंप लगाने और बाढ़ पीडि़तों को खाद्य सामग्री वितरित कर सरकार अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रही है?

मानसून की दस्तक के साथ ही प्रदेश में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। कई जिलों मेें नदियां उफान पर हैं। कई इलाकों में कटान जारी है। कई गांवों में बाढ़ का पानी भर गया है। गोंडा में तीन गांव पानी में डूब गए हैं। फसलें तबाह हो रही हैं। सरयू और शारदा के उफनाने से 22 गांव पानी में घिर गए हैं। ये तो महज बानगी भर है। आने वाले दिनों में ऐसा मंजर प्रदेश के कई जिलों में दिखाई दे सकता है। सवाल यह है कि सरकार हर साल बाढ़ से होने वाली व्यापक जन-धन की हानि को रोकने में नाकाम क्यों है? क्या बाढ़ का स्थायी समाधान नहीं है? क्या बेतरतीब विकास और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने नदियों को विनाशकारी बना दिया है? क्या राहत कैंप लगाने और बाढ़ पीडि़तों को खाद्य सामग्री वितरित कर सरकार अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रही है? हर साल बाढ़ आने का कारण क्या है? क्या नदियों में लगातार उथले होते जाने के कारण हालात खराब होते जा रहे हैं? क्या लोगों के जान-माल की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?
प्रदेश में बाढ़ ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। नदियां भयानक होती जा रही हैं। इनका पानी गांव और खेतों में घुसने लगा है। हर साल बाढ़ में हजारों मवेशी बह जाते हैं। खेत में खड़ी फसलें तबाह हो जाती हैं। बावजूद इसके इस पर स्थायी नियंत्रण लगाने की पहल आज तक नहीं की जा सकी है। सरकारें केवल कैंप लगाकर और राहत सामग्री बांट कर बैठ जाती हैं। हकीकत यह है कि बाढ़ की असली वजह बेतरतीब विकास है। नदियों के किनारे हजारों पेड़ों को काट दिया गया है। इसके कारण बाढ़ का पानी नदियों के किनारे फैले खेतों को कटान के जरिए अपने साथ बहा ले जाता है। बांध का पानी भी इन नदियों में छोड़ दिया जाता है। इससे नदियां भयानक रूप ले लेती हैं। वहीं नदियों के किनारे बसे शहरों में तमाम लोग नदियों की जमीन पर अतिक्रमण कर घर बना रहे हैं। इसके कारण जैसे ही नदी उफनाती है, वह इन रिहायशी इलाकों को चपेट में ले लेती है। नदियां अपने साथ कंकड़ और मिट्टी बहाकर लाती हैं। यह कंकड़-मिट्टी वे अपनी तली में छोड़ देती हैं। इस प्रक्रिया के लगातार होने से नदियों का तल उथला हो जाता है और उनमें अधिकतम पानी धारण करने की क्षमता कम हो जाती है। इसके कारण थोड़ी ही बारिश में ये अपना किनारा छोड़ देती है और बाढ़ आ जाती है। यदि सरकार बाढ़ से लोगों को बचाना चाहती है तो उसे न केवल नदियों के तल को गहरा करना होगा बल्कि नदियों के किनारे पेड़ भी लगाने होंगे। इसके अलावा इस समस्या का स्थायी समाधान खोजना होगा अन्यथा साल-दर-साल बाढ़ विकराल होती जाएगी।

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