मेरी कोरोना डायरी… छठा दिन मैं दिल को उस मुकाम पर लाता चला गया
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सुबह के साढ़े चार बजे थे। मैंने सपने में अपने पिता को देखा। तमाम बातचीत होते-होते अचानक आंख खुली तो मैं पसीने-पसीने था। बुखार देखा तो सौ था। डेढ़ गोली डोलो की खायी और सपने के बारे में सोचता रहा। सालों से कभी मेरे पिता सपने में नहीं आए। मृत्यु को भी तेरह साल हो गए उनके। फिर यह सपने में अचानक पापा मुझसे क्या कहने आए यह सोचता रहा। जब मन बेचैन होने लगा तो यूट्यूब खोला, उसमें था कि अगर आपके परिवार का कोई व्यक्ति जो अब इस दुनिया में नहीं है वो आता है तो इसका मतलब वो आपकी चिंता कर रहा है। सामने की गैलरी में एक नर्स बहुत देर से टहल रही है पीपीई किट पहने।
मैं देखता रहा उसको टहलते हुए और सोचता रहा, आत्मा तो पुनर्जन्म ले लेती है। तो फिर सपने में जो आया यह क्या था। आखिर उस समय सपना क्यों आया जब मेरी हालत ठीक नहीं। सातवां दिन है आज, बुखार नहीं उतर रहा। डॉक्टर भी नहीं समझ पा रहे ऐसा क्यों। कल एक केंद्रीय मंत्रीजी के यहां से फोन आया कि दिल्ली आ जाऊं तुरंत एम्स के लिए। मैंने विनम्रतापूर्वक कहा कि एक दो-दिन और देख लूं फिर आ जाऊंगा।
रात में ही मेरा सीटी स्कैन कराया गया। पीपीई किट पहननी पड़ी क्योंकि मशीन नीचे थी। पांच मिनट में पसीने में नहा गया मैं। लगा, कितनी परेशानी झेलनी होती है इन नर्स और डॉक्टरों को जो आठ घंटे तक लगातार यह किट पहने रहते हैं। न पानी पी सकते, न ही टॉयलेट जा सकते। मैंने नर्स से कहा तो हंसते हुए बोली- आपके फ्लोर पर लाखों कोरोना वायरस है। जरा सी चूक भारी पड़ जाएगी। महीनों हो गये हैं अब तो इस किट की आदत हो गयी है। जिंदगी भी कितनी नयी कहानियों को भरे रहती है अपने आगोश में। सपने धीरे-धीरे कुतरते रहते हैं जिंदगी से। जो होता है वो दिखता नहीं जो दिखता है वो होता नहीं। बहुत कमजोरी लगने लगी है। सात दिनों से मैंने आसमान नहीं देखा और न ही चांद। कभी-कभी सामने आकर बैठती दो चिडिय़ा भी जिंदगी में इतनी खुशी दे सकती है अंदाजा न था। जब तक खेलती रहती है मैं उनको देखता रहता हूं। इनको देखकर लगता है जिंदगी कितनी उल्लास से भरी है। एक-एक छोटा दाना खाने के बाद उनका पूरे शरीर में फुरफुरी करना बहुत अच्छा लगता है। सुबह की रोशनी आने लगी तो मैंने यू ट्यूब बंद किया। आज सीटी स्कैन की रिपोर्ट आ जायेगी तब पता चलेगा कि चेस्ट के इंफेक्ïशन की क्या हालत है। सात बजे से नर्स और डॉक्टर आने लगते हंै। वीपी, शुगर और ऑक्सीजन के यंत्र लग जाते हैं। मन को मापने वाला कोई यंत्र नहीं बना, जिसमें सपनों को नापा जा सके। सपने जो आंखों में नहीं, दिल में जन्म लेते हैं।
बाहर कारीडोर से आवाजें तेज हो गयी हैं लोगों के चलने की। सामने एचडी वार्ड है, रात में उसके मानीटर दिखते हैं। वार्ड में लगभग चौदह लोग लेटे हैं। जिंदगी का फैसला सामने मानीटर पर आने वाली मशीनें करती हैं। सीधी, आड़ी तिरछी लाइनें भाग्य का फैसला कर देती हैं। यहां पर लेटे-लेटे जिंदगी के अच्छे और बुरे ख्यालों की यादें सामने आती रहती हैं। एक के बाद एक पेज बदलते हैं जिंदगी के। कुछ पेजों में मोहब्बत के फसाने हैं तो कुछ पेजों में जिंदगी की निर्ममता है। कुछ भी हो मेरी जिंदगी बहुत अच्छी है। बबिता से ज्यादा मुझे कोई समझ नहीं सकता और सिद्धार्थ से ज्यादा शांत और प्यारा बेटा हो नहीं सकता, जो आपकी हर बात समझता हो और वन्या तो मेरी धडक़न है ही। बताइए जिंदगी में इससे ज्यादा और क्या चाहिए…
मैं जिंदगी का जश्न मनाता चला गया
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां
मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया
कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मैं इरा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हूं। बहुत सारे साथियों ने फोन करके कहा कि लिखूं वहां से कि कैसा महसूस कर रहा हूं तो रोज का संस्मरण लिखता रहूंगा। – संजय शर्मा
मन को मापने वाला कोई यंत्र नहीं बना, जिसमें सपनों को नापा जा सके। सपने जो आंखों में नहीं, दिल में जन्म लेते हैं।