यूपी में खौफनाक है पत्रकारिता करना : दो दिन पहले कहा था मेरी जान को है खतरा, और कल लाश मिल गई पत्रकार सुलभ की

  • प्रतापगढ़ के पत्रकार की हत्या के बाद निशाने पर यूपी सरकार
  • पत्रकार संगठनों ने कहा- अब यूपी में बोलने की आजादी नहीं
  • सच्ची खबरें दिखाना बैन है, जेल भेजने तक की दी जाती है धमकी

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। प्रतापगढ़ के टीवी पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की हत्या को लेकर यूपी सरकार पत्रकारों के निशाने पर है। हालांकि उत्तर प्रदेश में ऐसा पहली बार नहीं है, जब किसी पत्रकार की हत्या की गई है। इससे पहले भी शराब माफियों व अपराधियों ने सूबे के कई पत्रकारों की जान ली है। पत्रकारों का उत्पीड़न लगातार जारी है। बेवजह यूपी के पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज की जा रही है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने चर्चित पत्रकार विनोद दुआ के मामले में स्पष्टï रूप से कहा था कि हर पत्रकार कानूनी रूप से सुरक्षा मिलने का अधिकार रखता है बावजूद पत्रकारों की सुरक्षा नहीं हो रही है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा, पत्रकारिता की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दी गई संरक्षित अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का मूल आधार है। प्रतापगढ़ के कटरा मेदनीगंज में एक टीवी चैनल के पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव (45) की हत्या के मामले में खास बात यह है कि दो दिन पहले ही सुलभ ने पुलिस उच्चाधिकारियों को पत्र भेजकर अपनी हत्या की आशंका जाहिर की थी। बावजूद पुलिस ने सुलभ को सुरक्षा नहीं प्रदान की। इसी वजह से शराब माफियाओं ने समाचार का कवरेज कर लौट रहे सुलभ की हत्या कर दी। वहीं अपर पुलिस अधीक्षक पूर्वी सुरेंद्र द्विवेदी ने संदिग्ध हालात में सुलभ की मौत बताई है। उनका कहना है कि सुलभ की बाइक सड़क पर खंभे और हैंडपंप से टकरा गई थी। ईंट भ_ा के मजदूरों ने उन्हें सड़क के किनारे करने के बाद उनके मोबाइल फोन के जरिए ही फोन से घरवालों को खबर दी थी जबकि परिवार के लोगों ने सुलभ के मर्डर की बात कही है क्योंकि दो दिन पहले ही सुलभ ने एडीजी को पत्र भेजकर अपनी हत्या किए जाने को लेकर सुरक्षा मांगी थी। शराब माफिया व कुछ लोग लगातार सुलभ को खबरें करने से रोक रहे थे, जिन खबरों पर सुलभ काम कर रहा था।

प्रदेश में धमकाया जा रहा पत्रकारों को

उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता करना बेहद खतरनाक हो चुका है। सरकार को आईना दिखाना पत्रकारों को भारी पड़ रहा है। सच दिखाने वाले तमाम पत्रकारों के खिलाफ न केवल एफआईआर दर्ज करायी जा चुकी है बल्कि उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू, एसटीएफ और तमाम तरीके की जांच बिठाकर उनको डराया-धमकाया जा रहा है। यही नहीं, उन्हें सरकारी विज्ञापन तक नहीं दिए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश में विचार अभिव्यक्ति का गला घोंटा जा रहा है।

पत्रकारों की हत्या पर एक नजर

20 जुलाई 2020 को गाजियाबाद में छेड़खानी की शिकायत पर विक्रम जोशी की हत्या।

19 जून 2020 को उन्नाव में दिन-दहाड़े तीन गोलियां मारकर हुई थी पत्रकार की हत्या।

अक्टूबर 2019 में कुशीनगर जिले की हाटा कोतवाली में गला रेतकर की गई थी पत्रकार की हत्या।

अगस्त 2019 में सहारनपुर जिले में पत्रकार और उसके भाई की गोली मारकर की गई थी हत्या।

जून 2015 में शाहजहांपुर जिले में पत्रकार की जिंदा जलकर हुई थी मौत, बाद में परिजनों ने कहा- सुसाइड।

तीन दिन से सुलभ काफी परेशान थे। मुझसे कह रहे थे कि एक खबर चलाई है, इससे कुछ लोग मेरी जान के पीछे पड़ गए हैं। एडीजी साहब व कप्तान को पत्र भी सुलभ ने दिया था कि मेरी जान को खतरा है। बावजूद प्रतापगढ़ पुलिस के उच्चाधिकारियों ने सुलभ को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की। इस कारण उनकी जान चली गई। सरकार को हमें मुआवजा देना चाहिए। इसके अलावा पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

रेणुका श्रीवास्तव, पत्नी सुलभ श्रीवास्तव

प्रतापगढ़ में एक कथित हादसे में एक टीवी पत्रकार की संदिग्ध मौत बेहद दुखद है। भावभीनी श्रद्धांजलि! भाजपा सरकार इस मामले में एक उच्च स्तरीय जांच बिठाकर परिजन और जनता को ये बताए कि पत्रकार द्वारा शराब माफिया के हाथों हत्या की आशंका जताने के बाद भी उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी गयी।

अखिलेश यादव, सपा प्रमुख

शराब माफिया अलीगढ़ से प्रतापगढ़ तक। पूरे प्रदेश में मौत का तांडव करें। यूपी सरकार चुप। सरकार सोई है। पत्रकार सच्चाई उजागर करे, प्रशासन को खतरे के प्रति आगाह करे। क्या जंगलराज को पालने-पोषने वाली उप्र सरकार के पास पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव के परिजनों के आंसुओं का कोई जवाब है?

प्रियंका गांधी, कांग्रेस महासचिव

सुलभ श्रीवास्तव की संदिग्ध मौत नहीं, बल्कि हत्या की गई है। घटना की सीबीआई व एसआईटी से जांच होनी चाहिए। मुख्यमंत्री को सुलभ के परिजनों को एक करोड़ का मुआवजा देना चाहिए।

विनोद पांडेय, पूर्व अध्यक्ष जूनियर बार एसोसिएशन, प्रतापगढ़

पत्रकार ने एडीजी को चिट्ठी लिखकर अपनी जान को खतरा बताया था। फिर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया और अब उसकी लाश मिली। सिर्फ श्रद्धांजलि देने की औपचारिकता क्यों?

अजीत अंजुम, वरिष्ठï पत्रकार

यूपी में पत्रकार किन मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं सब जानते हैं। जो बर्ताव मिड डे मील स्कीम स्टोरी करने के लिए पवन के साथ किया गया। सुलभ भी इसी की बानगी है। वक्त आ गया है कि संस्थाएं स्ट्रिंगर्स की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाएं।

अभिसार शर्मा, वरिष्ठï पत्रकार

प्रतापगढ़ में टीवी पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की अत्यंत बेरहमी के साथ हत्या कर दी गई। वारदात शराब माफिया ने कराई है। माफिया के खिलाफ सरकार ने कार्रवाई नहीं की। इसका अंजाम पत्रकार ने भुगता, मौत मिली।

बृजेश मिश्रा, वरिष्ठï पत्रकार

पत्रकार की हत्या, जिसने एक दिन पहले पुलिस सुरक्षा की भीख मांगी थी, एक आवेदन में यह कहते हुए कि उसकी जान को शराब माफिया से खतरा है। जांच होनी चाहिए। पत्रकारों के हितों की सुरक्षा होनी चाहिए।

रोहिणी सिंह, वरिष्ठï पत्रकार

पत्रकार ने शराब माफिया से अपनी जान को खतरा होने की शिकायत की और कुछ ही दिनों में उसकी मौत हो गई। एक अधिकारी ने इस घटना को कुछ ही घंटों के भीतर दुर्घटना घोषित कैसे कर दिया?

नीलेश मिश्रा, वरिष्ठï पत्रकार

हमारे सहयोगी सुलभ श्रीवास्तव नहीं रहे। वे एक बेहतर पत्रकार थे। कल रात रिपोर्टिंग के लिए गए थे। फिर नहीं लौटे। उन्हें लगता था कोई उनके पीछे पड़ा है। निशब्द हूं।

पंकज झा, वरिष्ठï पत्रकार

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