लखीमपुर हिंसा की धीमी जांच से सुप्रीम कोर्ट खफा, पूछा- क्या आरोपियों की हिरासत जरूरी नहीं
- रात एक बजे तक इंतजार, नहीं मिली स्टेट्ïस रिपोर्ट
- पुलिस कस्टडी में चार आरोपी ही क्यों?
- जांच में कदम पीछे खींच रही यूपी सरकार
- मामले की सुनवाई 26 अक्टूबर तक टली
नई दिल्ली। लखीमपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने में देरी पर यूपी सरकार को फटकार लगाई है। सीजेआई एनवी रमन्ना ने कहा, हम कल रात एक बजे तक इंतजार करते रहे। आपकी स्टेटस रिपोर्ट हमें अभी मिली है, जबकि पिछली सुनवाई के दौरान हमने आपको साफ कहा था कि कम से कम एक दिन पहले हमें स्टेटस रिपोर्ट मिल जाए। यूपी सरकार की तरफ से पेश हरीश साल्वे ने कहा, हमने प्रगति रिपोर्ट दाखिल की है। आप मामले की सुनवाई शुक्रवार तक टाल दीजिए। हालांकि कोर्ट ने सुनवाई टालने से इनकार कर दिया और कहा, ये उचित नहीं होगा। बेंच यूपी सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट हाथों हाथों पड़ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लखीमपुर खीरी घटना की जांच से यूपी सरकार अपने पैर खींच रही है। कोर्ट ने पूछा कि आपने कहा कि 4 गवाहों के बयान लिए, बाकी गवाहों के क्यों नहीं लिए? सिर्फ 4 आरोपी पुलिस हिरासत में जबकि अन्य न्यायिक हिरासत में क्यों हैं? क्या उनसे पूछताछ की जरूरत नहीं है? कोर्ट ने मामले की सुनवाई 26 अक्टूबर तक टाल दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाहों और पीड़ितों के 164 के तहत बयान जल्द से जल्द दर्ज कराए जाएं, साथ ही गवाहों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए। बता दें कि लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर को हिंसक घटना हुई थी, जिसमें चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। किसानों पर गाड़ी से कुचलने के आरोप में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को जेल भेजा गया है। तिकुनिया में हुई इस घटना के बाद आक्रामक विपक्ष और किसान संगठन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। किसान संगठन और विपक्षी पार्टियां लगातार ये बात कर रही हैं कि टेनी के पद पर रहते निष्पक्ष जांच संभव नहीं है। घटना में एक पत्रकार की भी मौत हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के वकील शिव कुमार त्रिपाठी ने इस मामले में प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर घटना पर संज्ञान लेने का अनुरोध किया था।
हिंसा के 70 से ज्यादा वीडियो मिले : यूपी सरकार
यूपी सरकार की ओर से पेश हरीश साल्वे ने कहा इस मामले में आरोपियों से पूछताछ हो चुकी है। 70 से ज्यादा वीडियो मिले हैं। इनकी जांच हो रही है। इनमें भी सबूत मिले हैं। उन्होंने बताया कि क्राइम सीन रिक्रिएट भी किया गया भी हो चुका है। पीड़ितों और गवाहों के बयान दर्ज कराए जा रहे हैं। दशहरे की छुट्टी में कोर्ट बंद होने पर बयान दर्ज नहीं हो सकें हैं।
गाजियाबाद में मृतक को लगा दी वैक्सीन, जांच के आदेश
- – स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही आई सामने
लखनऊ। गाजियाबाद में स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आईर् है। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने पांच माह पहले कोरोना से जान गंवा चुके बुजुर्ग को टीके की दूसरी डोज जरूर लगा दी है। मामला सामने आने पर सीएमओ ने जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। गाजियाबाद के शास्त्रीनगर के रहने वाले कपिल सक्सेना ने बताया कि उनके 79 वर्षीय पिता विश्व बिहारी सक्सेना ने 18 मार्च 2021 को कविनगर स्थित मानव अस्पताल में कोरोनारोधी टीके की पहली डोज लगवाई थी। कोरोना संक्रमित होने पर 7 मई को उनका निधन हो गया। कपिल के मुताबिक 18 अक्टूबर की शाम उनके मोबाइल फोन पर संदेश आया कि विश्व बिहारी को वैक्सीन की दूसरी डोज सफलतापूर्वक लग गई है। कोविन एप से प्रमाण-पत्र डाउनलोड किया जा सकता है। कपिल ने प्रमाणपत्र डाउनलोड किया तो वह चौक गए। तुरंत कोविन एप पर इसकी शिकायत दर्ज कराते हुए जांच का अनुरोध किया। शिकायत में उन्होंने लिखा कि उनके पिता का निधन हो चुका है, फिर वैक्सीन की दूसरी डोज कैसे लग गई। प्रमाणपत्र में वैक्सीन की दूसरी डोज शास्त्रीनगर स्थित नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कार्टे पर रीता नाम की स्वास्थ्य कर्मी द्वारा लगाया जाना दर्शाया गया है। सीएमओ डॉ. भवतोष शंखधर का कहना है कि यह गंभीर मामला है। जांच एसीएमओ डा.सुनील त्यागी और विश्राम ङ्क्षसह को सौंपी गई है। जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
जीडीए की लापरवाही : पॉश इलाका पर सड़क अंधेरे में
गाजियाबाद। आम जनता के करोड़ों रुपए खर्च कर सरकार बड़े-बड़े इश्तिहार के जरिए बताती है कि योगी काल में उत्तर प्रदेश स्वर्ग बन गया है, लेकिन देश की राजधानी से सटा गाजियाबाद और उसका पॉश इलाका इंदिरापुरम की प्रमुख सड़क रोज रात अंधेरे में डूब जाती है। स्वर्ण जयंती नीतिखंड-3 से गुजरने वाली यह सड़क पूरे इंदिरापुरम का मुख्य मार्ग है लेकिन पिछले आठ दिनों से यह हर शाम अंधेरे में सराबोर हो कर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के अधिकारियों का वह नकारा चेहरा दर्शाता है जो प्रदेश शासन के मुखिया के लिए चुनाव में महंगा पड़ सकता है। आसपास के लोगों को रात में दहशत के साये में रहना पड़ता है। शीर्ष से लेकर मध्यम स्तर के अधिकारियों/अभियंताओं का अहंकार इतना बड़ा हुआ है कि शिकायत करने पर वे लोगों को अपने नीचे के कर्मचारियों से संपर्क करने की सलाह देते हैं और वे अपने से नीचे के मातहत से। कुल मिलाकर अंधेरा गुड गवर्नेंस का पोल खोलता बरकरार है। सड़क अंधेरे में होने से आमजन को परेशानी हो रही है।