एनसीपी सिंबल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से जुड़े विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से अजीत पवार समूह से कहा कि वह महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए अपनी प्रचार सामग्री में शरद पवार की तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल न करें। कोर्ट ने एनसीपी (अजित पवार) से कहा कि उन्हें अपनी अलग पहचान के आधार पर चुनाव लडऩा होगा। कोर्ट ने अजित पवार से कहा कि वह अपनी पार्टी के सदस्यों को शरद पवार की तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल न करने का निर्देश दें। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ शरद पवार द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अजित पवार को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए घड़ी चिह्न का उपयोग करने से रोकने की मांग की गई थी। इससे पहले कोर्ट ने अजित पवार को घड़ी के चुनाव चिह्न को लेकर अखबारों में डिस्क्लेमर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट में पेश अखबारों में छपे डिस्क्लेमर को देखते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने मजाकिया अंदाज में कहा कि आपका एक डिस्क्लेमर डोनाल्ड ट्रम्प की खबर के ठीक नीचे छपा है, जो काफी प्रभावशाली लग रहा है!
शरद पवार के लिए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कुछ सामग्री पोस्टर और सोशल मीडिया पोस्ट की तस्वीरें पेश कीं, जो कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्रकाशित की गई हैं। उन्होंने प्रस्तुत किया कि राकांपा (अजित पवार) के उम्मीदवार अमोल मितकारी ने केवल शरद पवार को दिखाते हुए तस्वीरें प्रकाशित की थीं और तर्क दिया था कि अजीत पवार का पक्ष वरिष्ठ पवार की प्रतिष्ठा की सद्भावना पर पिग्गीबैक करने की कोशिश कर रहा था। अजीत पवार के लिए वरिष्ठ वकील बलबीर सिंह ने आरोपों का खंडन किया और दावा किया कि सामग्री छेड़छाड़ की गई है। सिंघवी ने जवाब दिया कि वीडियो अमोल मिटकारी के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किया गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सिंघवी से पूछा कि क्या आपको लगता है कि महाराष्ट्र के लोगों को दरार के बारे में पता नहीं है?न्यायाधीश ने यह भी पूछा कि क्या ग्रामीण महाराष्ट्र के लोग सोशल मीडिया पर किए गए पोस्ट से प्रभावित होंगे। सिंघवी ने जवाब दिया कि आज भारत अलग है, हम यहां दिल्ली में जो कुछ भी देखते हैं उसका ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण लोगों द्वारा देखा जाता है। उन्होंने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय द्वारा कोई निर्देश पारित किया जाता है, तो दूसरा पक्ष उसका पालन करने के लिए बाध्य होता है।

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