मणिपुर चक्र: आत्मबल और ऊर्जा का केंद्र
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4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
मणिपुर चक्र योग और तंत्र में वर्णित सात प्रमुख चक्रों में से तीसरा चक्र है। इसे सोलर प्लेक्सस चक्र भी कहा जाता है। संस्कृत में मणिपुर का अर्थ है आभूषणों का शहर या रत्नों का स्थान। यह चक्र आत्मबल, आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति का केंद्र माना जाता है। इस चक्र का जागरण व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मणिपुर चक्र शरीर में नाभि के ठीक पीछे स्थित होता है, जिसे सौर जाल भी कहा जाता है। यह ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और व्यक्ति की इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करता है। इसका प्रतीक एक दस-पंखुड़ी वाला पीला कमल है, जो आत्मबल और प्रकाश का प्रतीक है। यह चक्र अग्नि तत्व से जुड़ा हुआ है और इसका रंग पीला माना जाता है, जो ऊर्जा, शक्ति और परिवर्तन का प्रतीक है।
योग से सक्रियकरें चक्र
मणिपुर चक्र को जाग्रत करने के लिए विशेष योगासन और प्राणायाम किए जाते हैं। जैसे कपालभाति योग चक्र को सक्रिय करता है और आंतरिक ऊर्जा बढ़ाता है। अनुलोम-विलोम भी मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है। प्राणायाम से मणिपुर चक्र से पूर्ण रूप से सक्रिय करता है।सूर्य ध्यान करने से पीले प्रकाश की कल्पना करते हुए सूर्य की ऊर्जा का ध्यान करना और अग्नि ध्यान करने से शरीर के भीतर अग्नि तत्व की शक्ति को महसूस करते है। नवासन तीसरे चक्र को उत्तेजित करने में मदद करता है। नाभि पर दबाव पडऩे से यह अग्नि तत्व को सक्रिय करता है और हमें हमारे केंद्र से जोड़ता है। पश्चिमोत्तानासन पाचन प्रक्रिया के लिए सबसे फायदेमंद आसनों में से एक है। इसे करने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। जिससे यकृत, अग्न्याशय और आंतों की काम करने की क्षमता बढ़ती है।
शारीरिक लाभ
बेहतर पाचन तंत्र और ऊर्जा स्तर में वृद्धि होती है। प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। यह आत्म-स्वीकृति और आत्म-सम्मान में वृद्धि होती है। नकारात्मकता और तनाव से मुक्ति मिलती है। निर्णय लेने और लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता बढ़ती है। आंतरिक शक्ति और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है। जीवन में संतुलन और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है। उच्च आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है।
मणिपुर चक्र का असंतुलन
मणिपुर चक्र के असंतुलन के कारण व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का सामना कर सकता है। इससे अत्यधिक गुस्सा, अधीरता और चिड़चिड़ापन हो जाता है। यह दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति जागरित करता हैऔर दूसरों को नियंत्रित करने की इच्छाशक्ति बढ़ाता है। अहंकार में वृद्धि और खुद को सबसे श्रेष्ठ मानने की इच्छाशक्ति बढ़ती है। अत्यधिक महत्वाकांक्षा और लालच हो जाता है। आत्मविश्वास की कमी और हीन भावना हो जाती है। निर्णय लेने में कठिनाई और दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती है। पाचन संबंधी समस्याएं जैसे गैस, अपच, मधुमेह आदि हो जाते है। मानसिक थकान और प्रेरणा की कमी हो जाती है।
मणिपुर चक्र का कार्य
मणिपुर चक्र कई महत्वपूर्ण कार्य करता है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यह चक्र पाचन तंत्र, अग्न्याशय, जिगर, पित्ताशय और पाचन अग्नि को नियंत्रित करता है। स्वस्थ मणिपुर चक्र व्यक्ति के पाचन को मजबूत बनाता है और शरीर में ऊर्जा बनाए रखता है। यह आत्म-सम्मान, इच्छाशक्ति, आत्म-नियंत्रण और आत्म-स्वीकृति को प्रभावित करता है। इसका असंतुलन व्यक्ति में हीनभावना, क्रोध, संकोच या आत्म-संदेह पैदा कर सकता है। यह चक्र आध्यात्मिक शक्ति और आत्म-प्रकाश के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके जागरण से व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है और अपनी उच्चतम क्षमता को प्राप्त कर सकता है।