मेकवेल हॉस्पिटल बना मेकडेथ हॉस्पिटल
4PM का सनसनीखेज खुलासा

- आए दिन मरीजों की जा रही जान, प्रशासन बेइमान, ले दे के चल रहा है काम
- गैस के मरीज का कर दिया ऑपरेशन, सात लाख वसूलने के बाद भेज दिया घर
- इससे पूर्व में भी आई थीं कई शिकायतें, ऐसा कबतक चलेगा
- अगर आप के पास भी है किसी अस्पताल की गुंडागर्दी, धनवसूली की शिकायत तो 4PM के साथ शेयर करें
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। अस्पताल कोई प्रोडक्ट नहीं हैं, यह लाइफ सेविंग संस्थाएं हैं, लेकिन जब यह सेवा भी मुनाफे की मशीन बन जाए तो आम आदमी की जिंदगी खतरे में पडऩा तय है। मैकवेल, मैक्स, मेंदाता या अन्य बड़े अस्पतालों के नाम भले ही बड़े है लेकिन दर्शन छोटे।
ताजा मामला लखनऊ के विभूति खंड स्थित मैकवेल हॉस्पिटल का है जहां एक गैस के मरीज का अस्पताल ने पैसों की लालच में अपरेशन कर लिया और दवाईयों के नाम पर उसको लूटा। जब मरीज के पास पैसे खत्म हो गये तो उसे डिस्चार्ज कर दिया। घर वापसी के रास्ते में उसकी जान चली गयी। अब परिजन अस्पताल पर मरीज की हत्या का आरोप लगा रहे हैं। थाने पर एफआईआर की एप्लीकेशन दी जा चुकी है। मेकवेल अस्पताल पर यह न तो पहला अरोप है और न ही आखिरी। इस अस्पताल पर इससे पूर्व में भी इस तरह के आरोप लगे हैं। लेकिन प्रशासनिक लापरवाली और भ्रष्टाचार के बल पर यह अस्पताल लगातार मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहा है। ईश्वर करें कि इस खबर का असर हो और गूंगे-बहरे जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी को समझे और अस्पताल पर ताला लगे ताकि फिर किसी की मौत की खबर न लिखना पड़े। इस असंवेदनशील मामले पर सरकार को भी कोई एक्शन लेना चाहिए।
राजधानी में ज्यादातर निजी अस्पतालों से बड़े लोगों के जुड़े हैं नाम
निजी अस्पतालों की यह मनमानी सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर होती है जो आर्थिक रूप से कमजोर या मध्यम वर्गीय हैं। सरकारी अस्पतालों की सीमित संख्या और खराब व्यवस्थाओं की वजह से लोग मजबूरन निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं। इलाज के लिए ज़मीन, जेवर, मवेशी तक बेचने की घटनाएँ सामने आई हैं। कई परिवार कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं। लेकिन ज्यादातर की स्थिति रीता जैसी होती है न पैसा बचता है और न ही जान। यह खुला खेल लंबे समय से चल रहा है। क्योंकि अधिकतर निजी अस्पताल किसी न किसी बड़े उद्योगपति, डॉक्टर लॉबी या राजनैतिक संरक्षण के अंतर्गत चलते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन्स के बावजूद, रेगुलेटरी बॉडीज अक्सर आंख मूंद लेती हैं। हाल ही में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य मेडिकल काउंसिलों पर यह आरोप लगे है कि वे निजी अस्पतालों की लापरवाहियों पर कोई कार्रवाई नहीं करते जब तक मामला सार्वजनिक विरोध या मीडिया में न आए।
जांच के बाद एफआईआर
रीता यादव के ससुर ने लखनउ के थाना विभूतिखंड पर शिकायत दर्ज कराई है और उनके साथ जो हुआ है वह बताया है। रीता के परिजन चाहते हैं कि अस्पताल पर एफआईआर दर्ज हो और ताला लगे ताकि भविष्य में किसी और की जान न जाए। इस संबध में थाना प्रभारी सुनील कुमार सिंह ने बताया कि देर रात यूपी के अमेठी जिले के रहने वाले राम मिलन यादव ने मेक वेल हॉस्पिटल पर आरोप लगाते हुए तहरीर दी है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रार्थना को मुख्य चिकित्सा अधिकारी के संज्ञान में लाया गया है। सीएमओ जांच करेंगे। सीएमओ की ओर से जांच रिपोर्ट आने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

अमेठी की रीता यादव को 26 मार्च को कराया गया था भर्ती
अमेठी जिले की रीता यादव को 26 मार्च 2025 को पेट में गैस की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था इसके अगले दिन 27 मार्च को हॉस्पिटल में ऑपरेशन किया गया। शुरुआती दिनों में मरीज की स्थिति सामान्य थी, लेकिन बाद में इलाज के नाम पर अस्पताल ने लगातार भारी-भरकम रकम वसूलनी शुरू कर दी। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों ने बार-बार आश्वासन दिया कि रीता की हालत ठीक है और उसे केवल नींद की दवा दी जा रही है, जबकि असलियत में इलाज के नाम पर महज 15 दिनों में लगभग 8 लाख रुपये खर्च करवा दिए गए। 2 अप्रैल को जब परिजनों ने डिस्चार्ज की मांग की तो डॉक्टरों ने बहाना बनाते हुए कुछ और दिन रुकने की बात कही। इसके बाद 10 अप्रैल को अस्पताल प्रशासन ने 2 लाख रुपये की और मांग कर दी, जिसके बाद ही डिस्चार्ज संभव बताया गया। परिजन किसी तरह पैसे की व्यवस्था कर रीता को डिस्चार्ज कराने में सफल रहे, लेकिन आरोप है कि डिस्चार्ज से पहले रीता को कोई गलत दवा दी गई, जिससे उसकी हालत बिगड़ गयी और घर के रास्ते पर ही उसकी मौत हो गयी।
चालाक अस्पताल, लाचार मरीज
मृतक के ससुर राम मिलन यादव ने बताया कि हस्पिटल प्रबधंन ने हम लोगों से जबरन कागज़ों पर हस्ताक्षर करवाए और गंभीर अवस्था में रीता को अस्पताल से बाहर कर दिया। दुर्भाग्यवश, रास्ते में ही रीता की मृत्यु हो गई। परिजनों का कहना है कि यह एक प्राकृतिक मृत्यु नहीं बल्कि लापरवाही और धन उगाही का सीधा नतीजा है। उन्होंने मांग की है कि इस पूरे मामले में मेकवेल हॉस्पिटल के जिम्मेदार डॉक्टरों और प्रबंधकों पर केस दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जाए।
आंकड़े देख कांप जाएगी रूह
भारत में निजी अस्पतालों का संख्या पिछले दो दशकों में बेतहाशा बड़ी है। इन अस्पतालों में लगने वाले शुल्क आम नागरिक की पहुँच से बाहर होते जा रहे हैं। मरीजों को भर्ती करने से पहले ही भारी रकम जमा कराना पड़ती है इलाज के दौरान बार-बार अतिरिक्त जांचें कराना और आईसीयू सुविधाओं के नाम पर अत्यधिक बिल थमाना अब एक आम बात हो गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में निजी अस्पतालों द्वारा औसतन 50 से 200 प्रतिशत तक ओवरचार्जिंग के मामले सामने आ रहे हैं। कोरोना काल के दौरान आईसीयू बेड्स के लिए 1 से 5 लाख रुपये तक की मांग की गई। निति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत की 65 प्रतिशत आबादी स्वास्थ्य सेवा के लिए निजी क्षेत्र पर निर्भर है।
लंबे समय से लग रहे हैं तरह-तरह के आरोप
यह कहानी सिर्फ मेकवेल हॉस्पिटल जैसे हास्पिटल की नहीं है। इस जैसे सैकड़ों निजी अस्पताल आप को लखनऊ के किसी भी गली मोहल्ले के मोड़ पर मिल जाएंगे जो खुद को सुपर स्पेशल हॉस्पिटल होने का दावा करेंगे। सोचिए जिस अस्पताल में लिफ्ट नहीं है, पार्किंग की व्यवस्था नहीं है और अपने कर्मचारियों को देने की तनख्वाह नहीं है वह कैसा हास्पिटल होगा? 4पीएम न्यूजनेटवर्क के पास लंबे समय से इस अस्पताल की शिकायतों के फोन आ रहे थे। हमारे रिपोर्टर ने जब शिकायतों की सच्चाई को जाना तो होश उड़ा देने वाले तथ्य सामने आये। इस अस्पताल के खिलाफ लोग खुद को सामने न लाकर लंबे समय से तरह-तरह के आरोप लगा रहे है। कोई कुछ कहता है तो कोई किसी दूसरे प्रकार का आरोप लगाता है। मेकवेल हास्पिटल में नियमों के मुताबिक न तो पार्किंग व्यवस्था मिली और न ही लिफ्ट चलती मिली। मरीजों के साथ खराब आचरण के तो अनगिनत किस्से मिले।
सैलरी को लेकर भी उठे विवाद
सिक्योरिटी गार्ड अवनीश सिंह ने बताया कि यहा सैलरी की समस्या शुरू से हैं। समय पर सैलरी नहीं मिलती। वहीं उसने बताया कि लोगों को जो दिक्कतें आती है उसकी वह शिकायत करते हैं। बिलिंग इंचार्ज के मुताबिक यहां पर सबकुछ सही चल रहा है। खैर इस विषय पर हम अपनी अगली रिपोर्ट में बताएंगे कि यहां पर क्या—क्या और कैसे कैसे कारनामों को अंजाम दिया जा रहा है। इस विषय पर सीएमओ लखनउ एनबी सिंह ने कहा है कि हम जांच करा के उचित कार्रवाई करेंगे ठीक शिकायतों के संबध में यदि अस्पताल उन्हें ठीक करेगा तो ठीक वर्ना हास्पिटल को बंद करा दिया जाएगा।



