अनुप्रिया पटेल की तगड़ी एंट्री, योगी- मोदी की मुश्किलें बढ़ीं!
अनुप्रिया पटेल ने आरपी गौतम को अपना दल (एस) का प्रदेश अध्यक्ष पर चुना है... इसे उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः भारतीय जनता पार्टी इस समय मुश्किल दौर से गुजर रही है…. उत्तर प्रदेश में सहयोगी दलों ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है…. सहयोगी दलों ने बीजेपी से अलग होकर गांव के चुनाव में अकेले ताल ठोकनें का ऐलान कर दिया है…. जिससे बीजेपी की चिंता बढ़ गई है.,…. बता दें कि इस बार गांव का चुनाव बीजेपी की 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के भविष्य का निर्धारण करेगा…. अगर बीजेपी गांव के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती है….. तो आगामी विधानसभा चुनाव में कैसा भविष्य होगा….. का पता चलेगा…. लेकिन सहयोगी दलों का अकेले चुनाव लड़ना बीजेपी के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है…. आपको बता दें कि केंद्र और राज्य में बीजेपी के साथ रहने वाली पार्टियां भी गांव के चुनाव में अकेले अपना किस्मत आजमाने जा रही है…. जो बीजेपी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है…..
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है……. केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाली अपना दल (सोनेलाल) ने जाटव बिरादरी से आने वाले आरपी गौतम को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है……. यह नियुक्ति न केवल संगठनात्मक फेरबदल का हिस्सा है……. बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों और आगामी निकाय चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है…….. इस कदम के जरिए अपना दल (एस) ने भारतीय जनता पार्टी के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं…….. खासकर तब जब बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करने की कोशिश में जुटी है…….
वहीं आरपी गौतम जाटव समुदाय से आते हैं….. जिनको प्रदेश अध्यक्ष बनाकर अनुप्रिया पटेल ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं……. उत्तर प्रदेश में दलित वोटर, विशेष रूप से जाटव समुदाय…… लंबे समय से सियासी दलों के लिए निर्णायक साबित होता रहा है…… गौतम की नियुक्ति को दलित समुदाय के बीच अपनी पैठ बढ़ाने…… और बीजेपी के सामाजिक समीकरण को कमजोर करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है…… जानकारी के मुताबिक गौतम का चयन न केवल सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने का प्रयास है……. बल्कि यह बीजेपी को यह संदेश भी देता है कि उसका सहयोगी दल अब अपनी स्वतंत्र पहचान……. और ताकत को और मजबूत करने के मूड में है……
जिसको लेकर पार्टी सूत्रों का कहना है कि गौतम की नियुक्ति से अपना दल (एस) को पिछड़े और दलित वर्गों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी…….. गौतम पहले सहकारिता मंच के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों…… और किसान वर्ग के मुद्दों को उठाकर संगठन की जड़ें मजबूत कर चुके हैं…….. उनकी यह संगठनात्मक क्षमता और सामाजिक अनुभव अब पार्टी को निकाय चुनावों…… और 2027 के विधानसभा चुनावों में नई ऊर्जा दे सकता है…….
बीजेपी की गठबंधन रणनीति पर सवालअपना दल (एस) और बीजेपी का गठबंधन उत्तर प्रदेश की सियासत में एक मजबूत ताकत रहा है…….. 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन ने बीजेपी को कुर्मी…… और अन्य पिछड़े वर्गों के वोटरों को अपनी ओर खींचने में मदद की थी…… हालांकि हाल के वर्षों में दोनों दलों के बीच तनाव के संकेत दिखाई दिए हैं…….. खासकर अनुप्रिया पटेल का हालिया बयान कि उनका दल पंचायत चुनावों में अकेले उतरेगा…….. बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है……
वहीं यह बयान उस समय आया है……. जब बीजेपी पहले ही 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने खराब प्रदर्शन के कारण बैकफुट पर है……. 2014 में जहां बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें जीती थीं…….. वहीं 2024 में यह आंकड़ा घटकर 33 पर सिमट गया…… इसके अलावा बीजेपी की सहयोगी पार्टियों में से अपना दल (एस) भी दो में से एक सीट हार गई थी……. ऐसे में अनुप्रिया पटेल का यह कदम बीजेपी के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है…….
राजकुमार पाल का इस्तीफा और आंतरिक संकट…. गौतम की नियुक्ति से ठीक पहले अपना दल (एस) को एक बड़ा झटका तब लगा था……. जब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाल ने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था……. पाल ने अनुप्रिया पटेल और उनके पति आशीष पटेल पर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप लगाया था……… उनके साथ-साथ कई अन्य नेताओं, जैसे प्रदेश सचिव कमलेश विश्वकर्मा, अल्पसंख्यक मंच के प्रदेश सचिव मोहम्मद फहीम…… और जिला महासचिव बीएल पासी ने भी पार्टी छोड़ दी थी…….
राजकुमार पाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि जो नेता अपनी पार्टी को संगठित नहीं कर सकता……. उसमें बने रहने का कोई औचित्य नहीं है…… और उन्होंने यह भी खुलासा किया था कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनका टिकट तक बेच दिया गया था…….. यह बयान न केवल अपना दल (एस) के लिए……. बल्कि बीजेपी के गठबंधन की एकता के लिए भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है……
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सियासी जमीन पहले ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से मिल रही चुनौतियों के कारण कमजोर हो रही है……. सपा का पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव में काफी हद तक सफल रहा था……. जिसके चलते बीजेपी को 80 में से केवल 33 सीटें मिली थीं……. अब अपना दल (एस) का यह नया कदम बीजेपी के लिए और मुश्किलें बढ़ा सकता है…….
अनुप्रिया पटेल ने साफ कर दिया है कि उनका दल पंचायत चुनावों में स्वतंत्र रूप से उतरेगा……. यह फैसला बीजेपी के लिए इसलिए भी चिंताजनक है…… क्योंकि पंचायत चुनावों में दोनों दलों के उम्मीदवारों के बीच टकराव होने की संभावना है…….. जिसका असर 2027 के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है……
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में दलित और पिछड़े वर्गों का वोट बैंक किसी भी दल के लिए सत्ता की कुंजी माना जाता है……. बीजेपी ने लंबे समय से इन वर्गों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है……. लेकिन हाल के वर्षों में उसकी रणनीति को सपा…… और बसपा जैसे दलों ने चुनौती दी है…… वहीं अब आरपी गौतम की नियुक्ति के साथ अपना दल (एस) भी इस रेस में शामिल हो गया है……. गौतम जाटव समुदाय से आते हैं……. दलित वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं…….
वहीं सियासी जानकारों का मानना है कि गौतम का चयन अनुप्रिया पटेल की उस रणनीति का हिस्सा है……… जिसके तहत वह दलित और पिछड़े वर्गों के बीच अपनी पार्टी की पैठ को और मजबूत करना चाहती हैं…….. खास बात यह है कि जाटव समुदाय न केवल संख्या बल्कि आर्थिक और सामाजिक रूप से भी मजबूत माना जाता है…… ऐसे में गौतम की नियुक्ति बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है……. जो पहले से ही दलित वोटरों को अपने साथ बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है……..
अपना दल (एस) का यह कदम 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारियों की ओर एक स्पष्ट संकेत है……. अनुप्रिया पटेल ने पहले ही साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने में जुटी है……… गौतम की नियुक्ति के साथ, पार्टी अब ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी जड़ें….. और गहरी करने की कोशिश कर रही है……
जानकारी के मुताबिक गौतम का अनुभव और संगठन के प्रति समर्पण पार्टी को न केवल निकाय चुनावों में……. बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों में भी मजबूती दे सकता है……. उनका सहकारिता मंच के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कामकाज, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों……. और सहकारी समितियों के बीच उनकी सक्रियता, पार्टी के लिए एक बड़ा लाभ साबित हो सकता है…….
बीजेपी के लिए यह समय पहले से भी मुश्किल भरा है……. 2024 के लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी ने हार के कारणों की समीक्षा शुरू कर दी है……. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह ने 60 नेताओं को लोकसभा क्षेत्रों में भेजकर हार की वजहों का पता लगाने का जिम्मा सौंपा है…… लेकिन अपना दल (एस) की नई रणनीति…… और गौतम की नियुक्ति बीजेपी की इन कोशिशों पर पानी फेर सकती है…… वहीं अगर अपना दल (एस) स्वतंत्र रूप से पंचायत और विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला करता है……. तो यह बीजेपी के लिए वोटों के बंटवारे का कारण बन सकता है…… खासकर, कुर्मी और दलित वोटरों के बीच अपना दल (एस) की मजबूत पकड़ बीजेपी के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकती है….



