RSS नेता का विरोधियों को करारा जवाब, अल्पसंख्यकों पर ‘नजरबंदी’ जैसी शर्तें क्यों? 

देशभर में 7 जून को बकरा ईद का त्यौहार मनाया जाएगा... इस बीच सियासत तेज हो गई है... मुरादाबाद संघ नेता ने बकरा ईद पर कुर्बानी का विरोध...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः बकरीद, जिसे ईद-उल-अज़हा के नाम से भी जाना जाता है……..इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है…….. जो त्याग, समर्पण और सामुदायिक एकता का प्रतीक है……. इस पर्व के दौरान मुस्लिम समुदाय द्वारा पशु कुर्बानी की परंपरा सदियों से चली आ रही है……. जो पैगंबर हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति समर्पण की याद दिलाती है……. हालांकि हाल के वर्षों में विशेष रूप से भारत में……. इस धार्मिक परंपरा को लेकर विवाद…… और सियासत तेज हो गई है……. विश्व हिंदू परिषद और कुछ अन्य हिंदूवादी संगठनों द्वारा बकरीद पर पशु कुर्बानी का विरोध………. पशु क्रूरता और पर्यावरणीय मुद्दों के नाम पर…….. एक बार फिर चर्चा में है……. इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक मजाहिर खान रुहेला का बयान इस विवाद को नया आयाम देता है……. उन्होंने स्पष्ट किया कि न तो संघ और न ही सरकार कुर्बानी के खिलाफ है…….. और विरोध करने वाले व्यक्तियों के बयान निजी हो सकते हैं……. साथ ही उन्होंने बीफ निर्यात और पशु क्रूरता के मुद्दे पर बीजेपी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए……… जो बीजेपी की दोहरी नीति को सामने लाता है……..

आपको बता दें कि भारत एक बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश है……. जहां संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है…….. अनुच्छेद 25 के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने….. और प्रचार करने का अधिकार है…… बकरीद पर कुर्बानी इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा है…… जिसे इस्लामिक विद्वानों जैसे मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली…….. और मौलाना अरशद मदनी ने धार्मिक कर्तव्य बताया है…….. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है…….. बल्कि सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देती है……. क्योंकि कुर्बानी का एक हिस्सा जरूरतमंदों में बांटा जाता है…….

हालांकि विहिप जैसे संगठनों ने कुर्बानी को पशु क्रूरता……. और पर्यावरणीय प्रदूषण से जोड़कर इसका विरोध किया है……. विहिप नेता डॉ. राजकमल गुप्ता ने कहा कि कुर्बानी से सड़कों पर गंदगी फैलती है…….. और नदियों में खून बहने से पर्यावरण दूषित होता है…… और उन्होंने सुझाव दिया कि मुस्लिम समुदाय प्रतीकात्मक कुर्बानी को अपनाए…….. यह तर्क हालांकि पर्यावरण और पशु कल्याण के दृष्टिकोण से प्रासंगिक लग सकता है……… धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक परंपराओं के सम्मान के सवाल को अनदेखा करता है…….. मजाहिर खान रुहेला ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि यदि पशु क्रूरता का मुद्दा इतना ही महत्वपूर्ण है…….. तो विरोध करने वालों को पूरे वर्ष बीफ निर्यात……. और बड़े बूचड़खानों के खिलाफ आंदोलन करना चाहिए न कि केवल बकरीद के समय………

बीजेपी केंद्र और कई राज्यों में सत्ता में है…… जिसने पशु कल्याण और गो-संरक्षण के मुद्दे को अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनाया है……. राजस्थान हाईकोर्ट ने 2017 में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने…….. और गोहत्या पर आजीवन कारावास की सजा का सुझाव दिया था…….. उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में सरकार ने बकरीद के दौरान गाय, बछड़े और ऊंट जैसे प्रतिबंधित पशुओं की कुर्बानी पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं……. इसके अलावा  दिल्ली सरकार ने साफ-सफाई और सार्वजनिक स्थानों पर कुर्बानी न करने की सख्त गाइडलाइंस जारी की हैं……… जिसमें सोशल मीडिया पर कुर्बानी की तस्वीरें या वीडियो साझा करने पर भी रोक लगाई गई है…….

हालांकि बीजेपी सरकार की नीतियों में एक अंदरूनी विरोध साफ दिखता है…….. भारत दुनिया के सबसे बड़े बीफ निर्यातक देशों में से एक है…….. और यह निर्यात मुख्य रूप से बड़े बूचड़खानों के माध्यम से होता है……. जिनमें से कई बीजेपी शासित राज्यों में संचालित होते हैं…….. मजाहिर खान ने इस दोहरे मापदंड पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि पशु क्रूरता का मुद्दा इतना गंभीर है…….. तो सरकार को बीफ निर्यात पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए……. भले ही इससे आर्थिक नुकसान हो……..

आपको बता दें कि बीजेपी नेताओं के बयान भी इस विवाद को हवा देते हैं…… उदाहरण के लिए बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर ने सुझाव दिया कि पशु वध की जगह केक काटा जाए…….. जो न केवल अव्यवहारिक है…….. बल्कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला भी हो सकता है…… दूसरी ओर बीजेपी से जुड़े कुछ नेता महाराष्ट्र के चंद्रशेखर बावनकुले ने गोसेवा आयोग के पशु बाजार बंद करने के फैसले की सराहना की……. जो बकरीद के दौरान गोवंश की सुरक्षा के लिए लिया गया था…….. जिससे साफ होता है कि बीजेपी के भीतर ही इस मुद्दे पर एकरूपता का अभाव है……. जिससे सामाजिक तनाव बढ़ता है……

मजाहिर खान ने मुस्लिम समुदाय से अपील की कि वे सरकार की गाइडलाइंस का पालन करें……. साफ-सफाई का ध्यान रखें…….. और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें……. वहीं यह अपील सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है…… कई मुस्लिम विद्वानों ने भी यही सुझाव दिया है कि कुर्बानी केवल निर्धारित स्थानों पर की जाए……. और प्रतिबंधित पशुओं का उपयोग न हो…… इसके बावजूद विहिप और कुछ अन्य संगठनों के बयान धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले हो सकते हैं………. जिससे समुदायों के बीच तनाव बढ़ता है…….

वहीं पशु क्रूरता के नाम पर कुर्बानी का विरोध करने वाले संगठनों को यह समझना होगा कि धार्मिक परंपराओं का सम्मान करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पशु कल्याण…… जिसको लेकर पेटा इंडिया ने सुझाव दिया है कि धार्मिक पर्वों को अहिंसक तरीकों से मनाया जा सकता है……… आपको बता दें कि भारत का बीफ निर्यात उद्योग मुख्य रूप से भैंस के मांस पर आधारित है…….. जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है……. 35 से अधिक देशों में निर्यात होने वाला यह उद्योग अरबों रुपये का राजस्व उत्पन्न करता है…….. हालांकि यह उद्योग बड़े पैमाने पर बूचड़खानों पर निर्भर है……….. जहां पशु कल्याण नियमों का अक्सर उल्लंघन होता है…….. मजाहिर खान का यह सवाल जायज है कि यदि पशु क्रूरता का मुद्दा इतना गंभीर है…….. तो सरकार इस उद्योग पर रोक क्यों नहीं लगाती…….. बीजेपी सरकार गो-संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बताती है……… इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है………

बकरीद पर कुर्बानी का विरोध केवल भारत तक सीमित नहीं है…….. मोरक्को जैसे मुस्लिम बहुल देश ने इस साल सूखे के कारण कुर्बानी पर रोक लगा दी……… जिसे वहां के लोगों ने धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप माना……… नेपाल, चीन और ताइवान जैसे देशों में भी धार्मिक पशु बलि पर प्रतिबंध या सीमाएं हैं………… जिससे पता चलता है कि यह मुद्दा वैश्विक स्तर पर भी संवेदनशील है…….. हालांकि भारत में यह विवाद धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं के साथ गहराई से जुड़ा है……… जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता…….

 

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