‘I Love मोहम्मद’ पर सियासत! मोदी राज में संविधान की उड़ रही धज्जियां!
‘I Love मोहम्मद’ नारे को लेकर सियासी बवाल तेज... विपक्ष ने BJP पर देश को सुलगाने का आरोप लगाया... मोदी राज में संविधानिक अधिकारों की...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित देश के कई हिस्सों में ‘आई लव मोहम्मद’ नारे.. और पोस्टरों को लेकर सियासी तूफान खड़ा हो गया है.. यह मामला तब और गर्म हो गया जब अहमदाबाद के जमालपुर दरवाजे के पास एक रैली में ‘आई लव मोहम्मद’ के बैनर और पोस्टर लहराए गए.. इस रैली के बाद से विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार पर संविधान की अनदेखी.. और देश को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का आरोप लगाया है.. दूसरी तरफ बीजेपी और उसके समर्थक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग.. और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश बता रहे हैं..
आपको बता दें कि यह विवाद सबसे पहले उत्तर प्रदेश के कानपुर में उस समय शुरू हुआ.. जब 4 सितंबर 2025 को बारावफात के मौके पर एक रोशनी के कार्यक्रम में ‘आई लव मोहम्मद’ का साइन बोर्ड लगाया गया.. इस बोर्ड को देखकर स्थानीय हिंदू संगठनों ने विरोध जताया.. और इसे सांप्रदायिक उकसावे का कारण बताया.. अगले दिन 5 सितंबर को कुछ हिंदू संगठनों ने इस बोर्ड के खिलाफ प्रदर्शन किया.. जिसके बाद पुलिस ने बोर्ड लगाने वाले 25 मुस्लिम युवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की.. वहीं इस घटना ने पूरे देश में तनाव पैदा कर दिया।
बरेली की दरगाह आला हजरत ने इस एफआईआर की कड़ी निंदा की.. और इसे संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया.. दरगाह के संगठन जमात रजा-ए-मुस्तफा के राष्ट्रीय महासचिव फरमान हसन खान ने कहा कि आई लव मोहम्मद लिखना कोई अपराध नहीं है.. अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र की आत्मा है.. उन्होंने पुलिस कार्रवाई को संविधान के खिलाफ बताया.. और इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव का हिस्सा करार दिया..
इसके बाद उन्नाव में 21 सितंबर 2025 को ‘आई लव मोहम्मद’ के समर्थन में एक जुलूस निकाला गया.. इस जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शामिल थे.. जिसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल थे.. पुलिस ने जुलूस को रोकने की कोशिश की.. जिसके बाद धक्का-मुक्की.. और पथराव की घटनाएं हुईं.. पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और हालात को काबू में करने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया गया.. इस घटना में एक इंस्पेक्टर की वर्दी तक फट गई..
उत्तराखंड के काशीपुर में भी 22 सितंबर 2025 को बिना अनुमति के ‘आई लव मोहम्मद’ जुलूस निकाला गया.. जिसके बाद पथराव और मारपीट की घटनाएं सामने आईं.. पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सख्ती बरती.. लेकिन इस घटना ने स्थानीय स्तर पर तनाव को और बढ़ा दिया..
आपको बता दें कि इस विवाद ने तब और तूल पकड़ा जब मोदी के गृह राज्य गुजरात के अहमदाबाद के जमालपुर दरवाजे के पास शनिवार को एक रैली निकाली गई.. जिसमें ‘आई लव मोहम्मद’ के बैनर और पोस्टर लहराए गए.. यह रैली शांतिपूर्ण थी.. लेकिन इसके बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई.. विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और एआईएमआईएम ने बीजेपी पर इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने.. और देश को बांटने का आरोप लगाया..
बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बृहस्पतिवार को एक बयान में कहा कि अपराधी, पुलिस और बीजेपी एक हैं.. यह सरकार संविधान की धज्जियां उड़ा रही है.. और लोगों को उनके मूल अधिकारों से वंचित कर रही है.. और उन्होंने यह भी कहा कि जाति और धर्म के आधार पर लोगों को बांटकर बीजेपी देश में अशांति फैलाने की कोशिश कर रही है..
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी.. और उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि आई लव मोहम्मद लिखना कोई जुर्म नहीं है.. अगर यह जुर्म है, तो हम हर सजा भुगतने को तैयार हैं.. ओवैसी ने बीजेपी सरकार पर संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन करने का आरोप लगाया..
जिसको लेकर बीजेपी ने कहा कि हम संविधान का सम्मान करते हैं.. लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई भी समाज में अशांति फैलाने वाले नारे लगा सकता है.. हमारी सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है.. और उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष इस मुद्दे को सियासी रंग देकर वोट बैंक की राजनीति कर रहा है..
वहीं इस पूरे विवाद में संविधान और नागरिकों के अधिकारों का मुद्दा बार-बार उठ रहा है.. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है.. लेकिन अनुच्छेद 19(2) में यह भी कहा गया है कि इस स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं.. जैसे कि सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता के आधार पर.. इसी तरह अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है.. लेकिन यह भी कहता है कि यह अधिकार दूसरों के अधिकारों या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं करना चाहिए..
विपक्ष का कहना है कि ‘आई लव मोहम्मद’ जैसे नारे धार्मिक भावनाओं का इजहार हैं.. और इन्हें अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है.. दूसरी तरफ बीजेपी और कुछ अन्य संगठनों का मानना है कि ऐसे नारे जानबूझकर दूसरे समुदायों को उकसाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं.. जिससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है..
आपको बता दें कि कानूनी तौर पर इस मामले में कई सवाल उठ रहे हैं.. क्या ‘आई लव मोहम्मद’ लिखना या नारा लगाना अपराध है.. कानून के जानकारों का कहना है कि यह पूरी तरह से परिस्थितियों पर निर्भर करता है.. अगर यह नारा किसी को उकसाने या हिंसा भड़काने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.. तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देना) या धारा 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) के तहत अपराध माना जा सकता है.. लेकिन अगर यह नारा केवल धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने के लिए है.. और इससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचता.. तो यह संविधान के तहत संरक्षित है..
बता दें कि सामाजिक स्तर पर यह विवाद भारत की बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक पहचान को लेकर कई सवाल उठाता है.. क्या इस तरह के नारे समाज को जोड़ने का काम करते हैं.. या बांटने का.. क्या इन नारों को एक समुदाय की भावनाओं का इजहार माना जाए या इसे दूसरे समुदाय के खिलाफ उकसावे के रूप में देखा जाए.. ये सवाल समाजशास्त्रियों, धार्मिक नेताओं और नीति-निर्माताओं के लिए विचार का विषय हैं..
वही इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है.. उन्नाव और काशीपुर की घटनाओं में पुलिस ने जुलूस को रोकने की कोशिश की.. जिसके बाद हिंसा भड़क उठी.. विपक्ष का आरोप है कि पुलिस बीजेपी सरकार के इशारे पर काम कर रही है.. और मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है.. दूसरी तरफ, पुलिस का कहना है कि वह केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रही थी..
यह विवाद न केवल धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर.. बल्कि सामाजिक और कानूनी स्तर पर भी कई सवाल उठाता है.. इस मामले को सुलझाने के लिए सभी पक्षों को एक मंच पर लाकर इस मुद्दे पर खुली चर्चा की जरूरत है.. धार्मिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकार को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि.. इस तरह के विवाद समाज को बांटने का काम न करें.. सरकार और अदालतों को यह स्पष्ट करना होगा कि किन परिस्थितियों में इस तरह के नारे अपराध की श्रेणी में आते हैं और किनमें नहीं.. इससे भविष्य में इस तरह के विवादों को रोका जा सकता है..
आपको बता दें कि समाज में विभिन्न समुदायों के बीच आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं.. स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में सांस्कृतिक एकता पर जोर देना जरूरी है.. पुलिस को इस तरह के संवेदनशील मामलों में निष्पक्ष.. और संतुलित तरीके से काम करने के लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत है.. इससे जनता का भरोसा बढ़ेगा और तनाव की स्थिति को टाला जा सकेगा.. वहीं अब सवाल उठता है कि मौजूदा मोदी सरकार इस विवाद को किस तरह से सुलझाती है..
देश की सत्ता में आने के बाद से बीजेपी ने हिंदू- मुसलमान की राजनीति को बढ़ावा दिया है.. और हिंदूं- मुसलमान कर- करके पूरे देश में अशांति पैदा कर दिया है.. बीजेपी धर्म की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रही है.. जो आने वाले समय में देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है.. देश में सभी को अपने धर्म के हिसाब से पूजा- पाठ करने और अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार संविधान ने दिया है.. ऐसे में बीजेपी को धर्म की राजनीति छोड़कर.. देश के विकास के लिए राजनीति करने की जरूरत है..
‘आई लव मोहम्मद’ नारे को लेकर चल रहा विवाद भारत की गंभीर सामाजिक और धार्मिक बनावट को दर्शाता है.. यह विवाद न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक अधिकारों के सवाल उठाता है.. बल्कि यह भी बताता है कि कैसे छोटे-छोटे मुद्दे सियासी रंग ले सकते हैं.. वहीं इस मामले में सभी पक्षों को संयम और समझदारी से काम लेने की जरूरत है.. ताकि देश में शांति और एकता बनी रहे..



