डाटा बनाम डेमोक्रेसी

चुनाव आयोग पूरे देश में एसआईआर की तारीखों का करेगा ऐलान

  • पहले चरण में वह राज्य होंगे शामिल जहां है वर्ष 2026 में विधानसभा चुनाव
  • निजता के खतरे के साथ पालिटिक्ल ट्रैकिंग का संदेह!

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। वर्ष 2026 में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उन राज्यों के लिए चुनाव आयोग मतदाता सूची के पुनरीक्षण का राष्ट्रीय अभ्यास की घोषणा आज करेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू आज प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से शाम चार बजे देश को इस पूरे कार्यक्रम की जानकारी साझा करेंगे। लोकतंत्र में मतदाता सूची महज नामों का संग्रह नहीं होती यह सत्ता के भविष्य की खाका तय करती है। इसलिए एसआईआर की पूरे देश में लागू करने की घोषणा की महज तकनीकी नहीं बल्कि राजनीतिक घटना बन गई। एसआईआर 1 नवंबर 2025 से शुरू होगा और 2026 में जिन 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं वहां से इसकी शुरुआत होगी।

पालिटिक्ल ट्रैकिंग हो जाएगी आसान

ताजा एसआईआर कार्यक्रम के जरिये मतदाता सूची में नाम और जानकारी की जांच आधार कार्ड के डाटा से की जाएगी ताकि गलत या दोहराए गए नाम हटाए जा सकेंगें। टेक्निलकल एनालिस्ट के मुताबिक यह तकनीकी रूप से तो फायदेमंद होगा डुप्लीकेट नाम हटेंगे और फर्जी पहचानें खत्म होंगी। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या इससे निजता खतरे में नहीं आएगी? जब हर वोटर का नाम, पता, उम्र और पहचान डिजिटल रूप में जुड़ जाएगी तब उसका राजनीतिक ट्रैकिंग आसान हो जाएगी। एक बात और यह किसी को नहीं पता कि डाटा का सुरक्षा कवच कितना मजबूत है।

विस चुनाव प्रस्तावित 5 राज्य

तमिलनाडू — 2026 में विधान सभा चुनाव तय हैं।
पश्चिम बंगाल — 2026 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
केरल — 2026 के पहले हिस्से में विधानसभा चुनाव होंगे।
असम — 2026 में विधानसभा चुनाव निर्धारित हैं।
पुडुचेरी (केंद्र शासित प्रदेश) — 2026 में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है।

लोकतंत्र की जड़ में छेड़छाड़ का डर

लोकतंत्र का अर्थ है हर नागरिक का बराबर का अधिकार। अगर वोटर लिस्ट में किसी भी तरह की अनदेखी भेदभाव या चयनात्मक संशोधन हुआ तो यह लोकतंत्र के दिल पर चोट होगी। एसआईआर का मकसद भले ही सुधार हो लेकिन अगर नीयत या निगरानी में चूक हो गयी तो यह भारत के चुनावी इतिहास में एक नया विवाद खड़ा कर सकता है। चुनाव आयोग के हर पुनरीक्षण कार्यक्रम के साथ देश में चुनावी कहानी भी बदलती है। नई मतदाता लिस्ट बनने का सीधा अर्थ नया डेमोग्राफिक पैटर्न होता है। युवा वोटरों का अनुपात, महिला मतदाताओं की संख्या, और शहरी-ग्रामीण वोट विभाजन से राजनीतिक पार्टियों के माइक्रो टारगेटिंग की दिशा तय होती है। इसलिए एसआईआर का मतलब अगले तीन सालों के लिए भारत का इलेक्टोरल मैप की री डिजाइन मानी जा सकती है।

लोकतांत्रिक असंतुलन

समाजशास्त्रियों के मुताबिक चुनाव आयोग का प्रस्तावित मेगा डाटा प्रोजेक्ट लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। वह कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में अब भी मतदाता सूची में नाम जोड़वाना या फोटो अपडेट कराना जटिल प्रक्रिया है। उनके मुताबिक चुनाव आयोग के लिए यह एक प्रशासनिक सुधार हो सकता है लेकिन यह लोकतंत्र की रीढ़ पर प्रयोग है। वोटर लिस्ट में गलती सुधारना जरूरी है लेकिन सवाल यह है कि क्या नागरिकों को शामिल करने की प्रक्रिया उतनी ही सरल होगी जितनी उन्हें हटाने की? ऐसे में इंटेंसिव रिवीजन सक्षम नागरिकों के पक्ष में और हाशिए के नागरिकों के खिलाफ जा सकता है। 2026 में बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्य फिर से चुनावी मोड में होंगे। विपक्ष पहले से केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर हमलावर है। ऐसे में एसआईआर अभियान को वोटर क्लींनिंग के नाम पर वोट बैंक छांटने का आरोप झेलना पड़ सकता है। विपक्षी दल पहले से ही इस प्रक्रिया को डाटा से लेकर वोट तक सब कुछ नियंत्रित करने का सरकारी प्रयास बता रहे हैं। चुनाव आयोग कहता है कि डिजिटल सत्यापन से पारदर्शिता आएगी। लेकिन देश के कई हिस्सों में अभी भी वोटर कार्ड के लिए लाइनें लगती हैं इंटरनेट नहीं चलता और पहचान प्रमाण पत्र अधूरे हैं। डिजिटल इंडिया का सपना अगर ग्रामीण इलाकों की वास्तविकता से न जुड़ातो एसआईआर जैसे अभियान प्रिविलेज्ड क्लास का लाभ और हाशिए का नुकसान बन जाएंगे।

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