NDA में शपथ से पहले भयंकर पेंच: 3घंटे की मैराथन बैठक में शाह-नड्डा हुए नरम, ललन संजय पर भड़के नीतीश
दोस्तों बिहार चुनाव में एनडीए की जीत के बाद भी नीतीश कुमार और पीएम मोदी में भयंकर पेंच फंस गया है। अभी तक जो एनडीए के लोग बहुत तेज तेज से ऑल इज वेल- ऑल इज वेल की रट लगा रहे थे, अब वही कहने लगे हैं कि नेता कर रहे हैं

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों बिहार चुनाव में एनडीए की जीत के बाद भी नीतीश कुमार और पीएम मोदी में भयंकर पेंच फंस गया है। अभी तक जो एनडीए के लोग बहुत तेज तेज से ऑल इज वेल- ऑल इज वेल की रट लगा रहे थे, अब वही कहने लगे हैं कि नेता कर रहे हैं।
कि हल्का-फुल्का गतिरोध है, सुलझा लिया जाएगा लेकिन आपको बता दें कि अदंरखाने से बड़ी खबर निकल कर सामने आई है कि कोई हल्क फुल्का मामला नहीं है बल्कि नीतीश कुमार में फुल एक्शन में आ चुके हैं और उन्होंने न सिर्फ दिखावटी सीएम बनने से इंकार कर दिया है बल्कि अपनी नीतियों पर बिहार चलाने का संदेश पीएम साहब और उनके चाणक्य जी को भिजवा दिया है। इसको लेकर न सिर्फ हड़कंप मचा है।
बल्कि रातों रात संजय झा और ललन सिंह विशेष प्लेन से दिल्ली बुलाए गए हैं, हालांकि सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि दिल्ली में तीन घंटे की मैराथॅान बैठक के बाद नड्डा और शाह आखिर में नीतीश की बात मानने पर मजबूर हैं और नीतीश कुमार के इस्तीफा देना का फैसला ले लिया गया । क्यों अचानक नीतीश एक्शन में आए हैं और ललन सिह और संजय झा को अचानक रातों रात दिल्ली पहुंच कर मीटिंग में क्या कुछ तय हुआ है, ये हम आपको आगे अपनी इस रिपोर्ट में बताएंगे।
दोस्तों, बिहार चुनाव में एनडीए को 202 सीटों पर न सिर्फ करारी जीत मिली है बल्कि नीतीश कुमार का कद एक बार फिर से न सिर्फ बिहार की राजनीति में बल्कि देश की राजनीति में बढ़ा है लेकिन जैसे ही एनडीए की करारी जीत हुई आपको बता दें कि बीजेपी अपने सीएम की कोशिश में लग गई लेकिन नीतीश् कुमार और जदयू ने पूरी तरह से साफ कर दिया कि सीएम तो नीतीश कुमार ही होंगे और खुद सीएम नीतीश कुमार ने इसके लिए स्टैंड लिया क्योंकि पहले से जदयू का नीतीश खेमा इस बात के लिए पीएम साहब और उनके चाणक्य पर दबाव बना रहा था।
कि नीतीश को सीएम डिक्यिर करें लेकिन अमित शाह ने न तो नीतीश कुमार को सीएम फेस घोषित किया बल्कि जगह-जगह ये बयान देना शुरु कर दिया कि सीएम पर फैसला चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में लिया जाएगा, फिर इसके बाद नीतीश कुमार अपने प्रचार में लगे और जो बीजेपी उनको मानसिक रुप से बीमार घोषित करने के लिए उनके पीछे लोगों को छोड़ रखा था, उसी नीतीश कुमार ने ताबड़तोड़ 84 सभाएं कर बिहार का रिजल्ट एक बार फिर बदल दिया। आपको याद होगा कि कैसे चुनाव के शुरुआती राउंड में संजय झा उनके पीछे लगाए गए थे और फिर से मंच से ही नीतीश कुमार ने संजय झा को न सिर्फ डांटा था बल्कि लाइव कैमरों के सामने उनकी भयंकर बेइज्जती कर दी थी। हालांकि नीतीश ने सारे दावों और बंधनों को तोड़ते हुए न सिर्फ एक बार फिर से एनडीए की वापसी कराई बल्कि इस बार दिखवटी सीएम वाले गेम से किनारा कर दिया है।
और जैस ही एनडीए को भारी बहुमत मिला वो एक्शन में आ गए हैं। सबसे पहले उन्होंने एक बात साफ कर दी कि वो सीएम होंगे। अंदरखाने से खबर निकलकर सामने आई कि नीतीश ने जब दिल्ली की कुर्सी का हवाला दिया तो पीएम साहब और उनके चाणक्य सीएम फेस के लिए मान गए लेकिन फिर भी नीतीश कुमार को भरोसा नहीं रहा है। बल्कि बीजेपी और जदयू के बीच ये तय हुआ था कि नीतीश कुमार 17 को राजभवन जाएंगे और इस्तीफा दे देंगे और 18 नवंबर को उनको सीएम का कैडिडेट विधायक दलों की बैठक में चुन लिया जाएगा लेकिन शायद नीतीश कुमार को भरोसा नहीं था कि दोबाारा उनको विधायक दल का नेता चुना जाए या बीजेपी कोई गेम कर, शायद इसलिए नीतीश कुमार राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के घर यानि कि राजभवन तक तो गए लेकिन उसके बाद भी इस्तीफा नहीं दिया।
आपको बता दें कि ये भारतीय राजनीति इतिहास का अपने आप में सबसे अनोखा मामला है कि राज्य सरकार की आखिरी कैबिनेट बैठक हो, उसमें मंत्रीमंडल को भंग करने का प्रस्ताव पारित हो, मुख्यमंत्री, राज्यपाल से राजभवन में मुलाकात करें लेकिन इस्तीफा न दें। केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक में यह पंरपरा रही है कि चुनाव के नतीजे आने के बाद कैबिनेट की आखिरी बैठक के बाद प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास जाते हैं। वह लोकसभा या विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करते हैं। हालांकि बिहार में 17 नवंबर 2025 को यह परंपरा टूट गई. सीएम, राज्यपाल से मिले तो लेकिन इस्तीफे के लिए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कि 19 नवंबर से विधानसभा विघटित यानी भंग होगी और तब तक वह मुख्यमंत्री रहेंगे।
ऐसे में सवाल ये उठे कि मुख्यमंत्री ने ऐसा कदम क्यों उठाया? सूत्रों की मानें तो नीतीश के इस फैसले के पीछे वह डर छिपा हुआ है जिसकी चर्चा चुनाव शुरू होने से पहले ही बिहार के सियासी गलियारों में हो रही थी। चुनाव से पहले ही राजनीतिक जानकार यह दावा कर रहे थे कि अगर भारतीय जनता पार्टी की सीटें ज्यादा आईं तो वह अपना मुख्यमंत्री चुनेगी। फिर जब टिकट का बंटवारा हुआ और बीजेपी के साथ-साथ जदयू 101 सीटों पर लड़ी तो नीतीश कुमार की पार्टी ने राज्य में बड़े भाई का दर्जा भी लगभग खो दिया। फिर आया 14 नवंबर का दिन. बिहार चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि जदयू ने 2020 चुनाव के मुकाबले भले ही बड़ी कामयाबी हासिल कर 85 सीटें जीती हैं लेकिन 89 सीटें जीतकर बड़े भाई की भूमिका में बीजेपी ही आई। ऐसे में माना जा रहा है।
कि नीतीश कुमार सिर्फ और सिर्फ इस वजह से इस्तीफा नहीं दे रहे हैं कि 19 नवंबर को होने वाली विधायक दल की बैठक में किसी और नेता के नाम पर मुहर लगाते हुए उन्हें साइड न कर दे। इसीलिए नीतीश कुमार ने 19 नवंबर तक इस्तीफे को टाल दिया है। राजभवन से निकलने के बाद बिहार सरकार में मंत्री जदयू नेता विजय चौधरी का बयान भी आया. मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि कैबिनेट ने विधानसभा भंग करने की अनुशंसा की है और 19 तारीख से विधानसभा भंग हो जाएगी.। इनके बयान का मतलब हुआ कि विधानसभा 19 नवंबर को भंग मानी जाएगी. उस दिन तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे और नियमित प्रशासनिक कार्य संभालते रहेंगे। नीतीश के राज्यपाल से मुलाकात की तारीख 17 नवंबर और विधानसभा के भंग होने की तारीख 19 नवंबर. यानी नीतीश, बीजेपी को भी इतना मौका नहीं देना चाहते हैं कि वह अपने हिसाब से कोई खेल कर सके।
आपको बता दें कि जब ये सबकुछ हुआ तो बीजेपी की गुजरात लॉबी इस बात पर तैयार हो गई कि वो सीएम वहीं रहेंगे लेकिन इसमें बीजेपी ने एक पेंच फंसा दिया है कि सीएम तो नीतीश कुमार होंगे लेकिन नीतियां बीजेपी की लागू होंगी। इसके लिए बीजेपी ने तीन अहम पदों पर लेकर रस्साकसी शुरु कर दी। पहला कि विधान सभा अध्यक्ष, वो इसलिए कि नीतीश कुमार को लगातार इंडिया गठबंधन से ऑफर मिल रहा है और इंडिया के 36 सीटें अपनी है और जबकि ओवैसी की सीटों को जोड़ दिया जाए तो पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पार हो जाएगा। ऐसे में नीतीश कुमार का पुराना रिकॉर्ड रहा है कि वो पलटी मार जाते है और ऐसे में विधान सभा पद कितना अहम होता है कि ये किसी से छिपा नहीं है। इसको लेकर बीजेपी और जदयू में भयंकर ठनी है। जदयू का दावा है क्योंकि विधान परिषद में उनका चैयरमैन है इसलिए विधान सभा अध्यक्ष जदयू का होना चाहिए।
दूसरा ये है कि बीजेपी अपनी नीतियों पर प्रदेश को चालाने के लिए नीतीश को भले से ही सीएम मानने को तैयार है लेकिन बीजेपी चाहती है कि गृह और वित्त दोनों मंत्रालय बीजेपी के पास हो और वो अपने ढंग से पूर प्रदेश को चलाए लेकिन ऐसा संभव नहीं है और इसको लेकर ही नीतीश कुमार एक्शन में आए है और नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि वो सीएम होंगे तो अपनी नीतियों के हिसाब से प्रदेश को चलाएंगे और इसी के बीच बढ़ती खींचातान के बीच अचानक अमितशाह ने ललन सिंह और संजय झा को रातोंरात दिल्ली बुलावाया है। और यहां पर अमित शाह, जेपी नड्डा, ललन सिंह और संजय झा के बीच तीन घंटे की मैराथन बैठक चली है और इस बैठक में बहुत कुछ तो तय हो गया है लेकिन कुछ बातों पर अभी भी तकारार है।
खबर है साझा कार्यक्रम के अनुसार बिहार की सरकार चलेगी और वित्त का पद बीजेपी और गृह मंत्रालय नीतीश कुमार के पास होगा। विधान सभा अध्यक्ष पर अभी तकरार बाकी है। कुछ खबरों में यह भी दावा किया जा रहा है कि विधान सभा अध्यक्ष का पद बीजेपी के पास होगा। इसमें बीजेपी के सीनियर लीडर प्रेम कुमार का नाम चर्चा में है। हालांकि तीन घंटे की मैराथन बैठक के बाद ललन सिंह और संजय झा पटना लौट रहे हैं। माना जा रहा है कि शाम को दोनों नीतीश कुमार से मुलाकात कर सकते हैं और देर शाम को नीतीश कुमार का इस्तीफा आज ही हो सकता है।
हालांकि अभी ये देखना भी शाम तक अहम होगा कि पूरे मामले पर नीतीश कुमार का क्या रिएक्शन होगा, ये अपने आप में बहुत अहम है लेकिन पूरे मामले में एक बात साफ हो गई है कि नीतीश इस बार दिखवटी सीएम नहीं बल्कि पिछले सालों तक कड़क एक्शन वाले सीएम के तौर पर दिखाई देंगे। पूरे मामले पर आपकी क्या राय है। क्या नीतीश कुमार बीजेपी की चालों को पहले से ही भांप गए थे जो इतना कड़क एक्शन लेना पड़ा। क्या नीतीश कुमार के हाथ से विधान सभा अध्यक्ष का पद निकल जाने से आगे आने वाले दिनों के लिए बड़ खतरा खड़ा हो गया है। क्या नीतीश कुमार ने जिस तरह चुनाव के बाद अचानक दोबार एक्टिव हुए हैं ये बीजेपी के लिए बड़े खतरे की घंटी है।



