दस हजार वाली योजना निकली जुमला! दर-दर की ठोकरें खा रही महिलाएं!

क्या मोदी का एक और वादा जुमला निकला ? क्या महाराष्ट्र और दिल्ली की तरह बिहार की महिलाएं भी ठगी गई हैं? क्या महिलाओं के खाते में पैसे ट्रांसफर करने का वादा सिर्फ चुनावी वादा बनकर रह गया?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: क्या मोदी का एक और वादा जुमला निकला ? क्या महाराष्ट्र और दिल्ली की तरह बिहार की महिलाएं भी ठगी गई हैं? क्या महिलाओं के खाते में पैसे ट्रांसफर करने का वादा सिर्फ चुनावी वादा बनकर रह गया?

आपको याद होगा कि बिहार चुनाव से पहले मोदी और नीतीश बिहार की महिलाओं से जोरदार वादे किए थे कि 10 हजार तो बस एक झलक है, असली 2 लाख की किस्त तो अभी बाकी है। लेकिन बिहार चुनाव का शोर शराबा खत्म होते ही हकीकत का कड़वा घूंट सामने आ गया। आलम ये है कि जो पैसा चुनावों के बीच में बांटा जा रहा था वोही पैसा अब चुनाव के बाद मिलना मुश्किल हो गया है। जिससे आहत होकर महिलाओं को सड़कों पर उतरना पड़ रहा है, जबकि सरकारी कर्मचारी डर के मारे दफ्तरों से भाग रहे हैं।

वहीं विपक्षी नेता इसको लेकर सरकार के मजे ले रहे हैं। तो क्या सच में चुनाव खत्म होते ही क्या दस हजार रुपए वाली योजना भी खत्म हो गई है? महिलाओं को उनके दस हजार क्यों नहीं मिल रहे? क्या इसको लेकर महिलाओं ने चक्का जाम कर दिया है? और क्या महिलाओं ने जीविका के दफ्तर पर ताला लगाने का अल्टीमेटम भी दे दिया है? सब बताएंगे आपको इस रिपोर्ट में।

जैसे ही बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम आया, पूरे देश ने देखा कि एनडीए की भारी जीत के पीछे सबसे बड़ा हथियार था महिलाओं के खाते में दस-दस हज़ार रुपये की वो किस्त। वोटिंग के ठीक एक-दो दिन पहले पैसे डाले गए। प्रचार यंत्र चरम पर था। मोदी-नीतीश को महिलाओं का सबसे बड़ा हितैषी दिखाया जा रहा था। विपक्ष चीखता रहा कि ये खुलेआम वोट ख़रीद है, मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन है, लेकिन चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार कान में तेल डालकर बैठे रहे। न कुछ सुना, न कुछ बोले, न कोई कार्रवाई की।

आँखें पूरी तरह बंद कर ली। नतीजा सबके सामने आया, एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और उसी दस हज़ार रुपये की किस्त को जीत का सबसे बड़ा सूत्रधार बताया गया। मोदी-नीतीश का मास्टरस्ट्रोक कहा गया। लेकिन, अब वही मास्टरस्ट्रोक इनके गले की फाँसी बन गया है। चुनाव ख़त्म, वोट मिल गया, अब मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं। दरअसल, शुक्रवार को मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना के तहत दस लाख महिलाओं के खातों में दस-दस हज़ार रुपये ट्रांसफर होने थे। बड़े-बड़े विज्ञापन छपे, भाषण हुए, खबरे बनी कि नीतीश अपना वादा नहीं भूले हैं, लेकिन जब असल में पैसा आना था तो ज़मीनी हक़ीकत सामने आ गई। नवादा में सैकड़ों महिलाएँ गुस्से से लाल-पील सड़कों पर उतर आईं। वो चीख-चीख कर बता रही थीं कि फॉर्म भरवाने, बायोमेट्रिक करवाने, फोटो खिंचवाने के नाम पर उनसे सैकड़ों-हज़ार रुपये लिये गए, जीविका दीदियों ने कमीशन खाया, अफ़सरों ने रिश्वत माँगी, लेकिन योजना का असली पैसा नहीं दिया। खाता खाली का खाली रह गया।

जिसके बाद महिलाओं ने खुला अल्टीमेटम दे दिया, चौबीस घंटे में दस हज़ार नहीं आए तो जीविका कार्यालय में ताला जड़ देंगी और मुख्य सड़क को अनिश्चितकाल तक जाम कर देंगी। अब देखिए ये कोई छोटी-मोटी नाराज़गी नहीं थी, ये उस विश्वासघात का विस्फोट था जिसे मोदी- नीतीश ने मिलकर रचा। यही महिलाएँ कुछ दिन पहले तक नीतीश कुमार को भाई-बेटी का रक्षक समझ रही थीं, अब वही महिलाएँ सड़क पर आगई क्योंकि उनके साथ खुलेआम धोखा हुआ। सवाल बहुत सीधा और कड़क है कि, क्या चुनाव ख़त्म होते ही दस हज़ार वाली योजना को कूड़ेदान में फेंक दिया गया?

क्या बिहार की ग़रीब महिलाओं का हक़ कोई खिलौना है जिसे वोट लेने के बाद लटकाया जाए? जिस योजना को कल तक महिला सशक्तिकरण का सबसे बड़ा क़दम बताया जा रहा था, आज वही योजना भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। जीविका दीदियों ने बीच में पैसा हड़प लिया, बैंक मित्रों ने कमीशन काट लिया, अफ़सरों ने फ़ाइल दबा ली, और ऊपर से नीतीश कुमार और उनकी सरकार ख़ामोश तमाशाई बनी बैठी है।

अब देखिए इस खबर के बाहर आते ही विपक्ष ने सरकार की चुटकी लेनी शुरू कर दिया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसकी खबर को शेयर करते हुए लिखा कि, “‘मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं’ : अब भाजपाइयों के लिए गली-गली ये गीत गाया जाएगा और उनसे दस हज़ार का हिसाब मांगा जाएगा। देखते हैं पैसों के मामले में झूठ बोलकर, धोखा देनेवाले ये भाजपाई जनता से बचकर कहाँ तक भागते हैं।” अखिलेश ने भाजपा पर हमला करते हुए लिखा कि, “पैसों की बात करके मुकर जानेवाले भाजपाइयों का इतिहास दसों साल पुराना है, पहले जनता को 15 लाख रुपये देने के वादे को जुमला बता कर पैसे देने से मना कर दिया अब महिलाओं को 10 हज़ार रुपये देने से मुकर गये हैं। ये पैसे बाँटने का खेल ही भाजपा को ले डूबेगा।

जब जनता भाजपाइयों के दरवाज़े-दरवाज़े जाकर पैसा माँगेगी तो भाजपाई डरकर अपने घरों और गाड़ियों तक से भाजपा का झंडा उतार लेंगे। दरअसल भाजपा अपने ही बनाए जाल में फँस गयी है। पैसा बाँटने के अपने जिस खेल को भाजपा अपनी ‘जुगाड़ी जीत’ के घपले को छिपाने के लिए, मास्टर स्ट्रोक मान रही थी, वो ही पैसे का खेल भाजपा के लिए जी का जंजाल बन गया है। अब जनता मास्टर स्ट्रोक मारेगी और भाजपा की गेंद को सरकार के स्टेडियम से हमेशा के लिए बाहर कर देगी।” अखिलेश ने चिढ़ाते हुए कहा कि, “अब जनता भाजपाइयों को देखते ही कहेगी: भाजपा पर है उधार, दस हज़ार-दस हज़ार!” वहीं कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत ने इसको लेकर लिखा कि, “झूठा वादा भाजपा और नीतीश का! इन सबको 10-10 हज़ार नहीं मिले। अब वोट भी दिया और नोट भी नहीं मिला?”

अब देखिए ये पहली बार नहीं है जब मोदी-नीतीश ने ऐसा घिनौना खेल खेला हो। महाराष्ट्र में लाड़ली बहन योजना के नाम पर यही ड्रामा हुआ। चुनाव से पहले पैसे डाले गए, वोट खींचे गए, जीत के बाद योजना को धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। दिल्ली में महालक्ष्मी योजना के नाम पर यही जुमला चला। कुछ किस्तें आईं, फिर सब ग़ायब। अब बिहार में भी वही स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है। इससे साफ हो गया है कि मोदी का हर बड़ा वादा अंत में जुमला साबित होता है। पंद्रह लाख का जुमला हो या दस हज़ार का, बस अंकों का फ़र्क है, झूठ की फ़ितरत एक ही है। चुनाव आयोग की भूमिका तो और भी शर्मनाक है।

जब कोड ऑफ़ कंडक्ट के दौरान खुलेआम पैसे बाँटे जा रहे थे, तब ज्ञानेश कुमार साहब को कुछ नहीं दिखा। न कोई नोटिस, न कोई रोक, न कोई जवाबदेही। लेकिन अब जब महिलाएँ सड़क पर हैं, उनके हक़ का पैसा लुट चुका है, तब भी चुनाव आयोग मुँह में दही जमाए बैठा है। क्या यही है निष्पक्षता? क्या यही है लोकतंत्र की रक्षा? जब ज़रूरत थी तब आँखें बंद कर लीं, अब जब जनता का गुस्सा फूट रहा है तब भी आँखें बंद हैं। आज बिहार की महिलाएँ सड़क पर इसलिए हैं क्योंकि मोदी और नीतीश ने उनके विश्वास को कुचला है।

जिस योजना को ये लोग महिला सशक्तिकरण का सबसे बड़ा हथियार बता रहे थे, आज वही योजना भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई है। नीतीश कुमार जो कभी सुशासन बाबू कहलाते थे, आज उसी सुशासन की लाश पर बैठकर महिलाओं के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं। और मोदी, जो देश भर में महिला सशक्तिकरण के बड़े-बड़े भाषण देते फिरते हैं, उनके राज में बिहार की ग़रीब महिलाओं को अपने ही हक़ के लिए सड़क पर उतरना पड़ रहा है। ये सिर्फ़ दस हज़ार रुपये की बात नहीं है। ये उस विश्वास की बात है जो इन नेताओं ने तोड़ा है। ये उस सम्मान की बात है जो इन महिलाओं का छीना गया है। ये उस लोकतंत्र की बात है जिसमें वोट ख़रीदने के लिए पैसे बाँटे जाते हैं और जीत के बाद जनता को ठेंगा दिखा दिया जाता है।

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