PM Awas Yojana में आदिवासी समाज से भेदभाव

गुजरात के आदिवासी इलाकों में जब भी PM Awas Yojana का नाम लिया जाता है, लोगों की आँखों में एक साथ उम्मीद भी चमकती है और एक पुराना दर्द भी उठ जाता है। उम्मीद इस बात की कि शायद इस बार उनका नाम लिस्ट में आ जाए और उन्हें भी एक पक्का घर मिल जाए।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: गुजरात के आदिवासी इलाकों में जब भी PM Awas Yojana का नाम लिया जाता है, लोगों की आँखों में एक साथ उम्मीद भी चमकती है और एक पुराना दर्द भी उठ जाता है।

उम्मीद इस बात की कि शायद इस बार उनका नाम लिस्ट में आ जाए और उन्हें भी एक पक्का घर मिल जाए। और दर्द इस बात का कि कई-कई साल इंतज़ार करने के बाद भी उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है, घर नहीं। सरकार मंचों पर कहती है कि हर गरीब को घर दिया जा रहा है, पर आदिवासी समाज पूछ रहा है अगर हर गरीब को घर मिला है, तो हम अब भी खुले आसमान के नीचे क्यों रहते हैं?

आदिवासी बेल्ट में चलकर देखिए, जहां टीन-शेड के नीचे, टूटी दीवारों के पीछे और बरसात में टपकती छतों के बीच एक पूरी दुनिया जीती है। ऐसे परिवार जो अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी इस भरोसे पर जीते आए कि एक दिन सरकार उनका नाम भी सूची में शामिल करेगी। पर जब नई सूची निकलती है, उनका नाम फिर गायब होता है। और जो लोग उनसे कहीं ज़्यादा सक्षम हैं, उनका नाम ऊपर भी होता है और मंजूरी भी पहले मिल जाती है। यही वह जगह है जहां से भेदभाव का आरोप शुरू होता है।

कई आदिवासी परिवार बताते हैं कि फॉर्म भरने के लिए उन्हें पंचायत से लेकर जिला कार्यालय तक के चक्कर लगाने पड़ते हैं। कभी आधार लिंक नहीं, कभी कागज़ अधूरा, कभी सर्वे दोबारा… और सबसे तकलीफदेह बात यह कि कुछ परिवारों को साफ कहा जाता है ऊपर से लिस्ट आई है, उसमें तुम्हारा नाम नहीं है। ऊपर से कौन भेजता है, सूची कैसे बनती है, किस आधार पर नाम हटाए जाते हैं किसी को इसका जवाब नहीं मिलता। बस एक निराशा हर साल गहराती जाती है।

AAP के नेता और आदिवासी क्षेत्र के लोकप्रिय चेहरों का कहना है कि PM Awas Yojana में सबसे बड़ा खेल ‘वोट बैंक मैनेजमेंट’ का है। जहां ज़रूरतमंदों से ज़्यादा प्राथमिकता उन लोगों को मिलती है जो राजनीतिक तौर पर नज़दीक हों। AAP का आरोप है कि BJP सरकार का विकास मॉडल सिर्फ शहरों और बड़े इलाकों में दिखता है, जबकि आदिवासी इलाकों में योजनाएँ सिर्फ कागज़ों में पूरी दिखायी जाती हैं। ज़मीन पर घर बनते ही नहीं, और यदि बनते भी हैं तो आधे-अधूरे, बिना दरवाज़े, बिना बिजली, बिना बुनियादी सुविधाओं के।

एक बुजुर्ग आदिवासी महिला ने आँसू भरकर कहा घर का वादा करके वोट लेते हैं, पर चुनाव के बाद कोई देखने भी नहीं आता।” यही दर्द आज हजारों परिवारों में बैठा हुआ है। कई लोगों के घर की फाइल मंजूर ही नहीं होती, कई बार फाइल चल ही नहीं पाती, और कई मामलों में लोग कहते हैं कि बिना ‘सिफारिश’ काम नहीं होता। सरकारी सिस्टम में वो ताकत नहीं जो आदिवासी समाज की बात सुने। और यही वजह है कि लोग कहने लगे हैं PM Awas Yojana हो या कोई और योजना, आदिवासी इलाकों में भेदभाव हमेशा रहता है।”

जब बारिश आती है तो कच्ची झोपड़ियाँ डर की वजह बन जाती हैं। दीवारें गिरने का खतरा, छत के टपकने से भीगता खाना, बच्चों की नींद में रुकावट… ये सब मिलकर उस जीवन की तस्वीर बनाते हैं जो किसी भी सरकारी दावा-भाषण से बहुत दूर है। एक आदिवासी पिता ने बताया हम बच्चों को छत दिखा नहीं सकते, सिर्फ बारिश से बचा सकते हैं। यह दर्द किसी आंकड़े में नहीं लिखा जा सकता। यह उन परिवारों की कहानी है जिन्हें आज तक पता नहीं कि पक्का घर आखिर किसको मिलता है।

सरकार दावा करती है कि लाखों घर बन गए, लेकिन जब AAP के नेताओं ने ज़मीनी सर्वे किया तो पाया कि कई गांवों में घरों की संख्या कागज़ों में तो है, पर असलियत में निर्माण नहीं हुआ। कुछ घरों की दीवारें खड़ी हैं, पर छत नहीं; कुछ घरों में खिड़कियाँ नहीं; कुछ में सिर्फ नाम की पट्टी लगी है पर रहने लायक हालत नहीं। लोग कहते हैं “घर पूरा करो या मत दो, पर आधा छोड़कर हमारा मज़ाक मत बनाओ।”

Chaitar Vasava ने कई बार कहा है कि आदिवासी समाज को योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिलता। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकार शहरों में बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करती है, तो आदिवासी इलाकों में बुनियादी काम क्यों नहीं दिखता? उनका आरोप है कि सरकार योजना के नाम पर फोटो खिंचवाने में व्यस्त है, जबकि असली गरीबों को घर देने में नहीं। उन्होंने कहा अगर PM Awas Yojana सच में गरीबों तक पहुँचती, तो आज मेरे इलाके में इतनी झोपड़ियाँ नहीं होतीं।

इस मुद्दे का एक और बड़ा पहलू है सूची बनाने की प्रक्रिया। लोगों को यह नहीं बताया जाता कि उनका नाम क्यों नहीं आया। न कोई आधिकारिक नोटिस, न कोई स्पष्ट कारण। कई बार घर ढह चुका होता है, परिवार सड़क पर आ चुका होता है, फिर भी योजना में नाम नहीं आता। विरोध के समय सरकारी अधिकारी कहते हैं अगली बार कोशिश की जाएगी। लेकिन ये अगली बार’कई सालों से नहीं आती।

योजना में भ्रष्टाचार भी लोगों की बड़ी शिकायत है। कई गांवों में आरोप है कि जो लोग असली गरीब नहीं हैं, उन्हें योजना का लाभ मिल गया। कुछ ने अपने पुराने घर को ‘खराब’ दिखाकर दोबारा योजना में नाम डाल दिया और फंड ले लिया। वहीं कई परिवार जो असल में बेहद जरूरतमंद हैं, उन्हें बार-बार हटा दिया जाता है। यही वह भेदभाव है जिसके बारे में AAP बार-बार आवाज़ उठाती रही है कि योजना का लाभ सही लोगों को नहीं दिया जा रहा।

एक आदिवासी युवक ने कहा जब चुनाव आता है तो अधिकारी खुद घर-घर आकर फॉर्म भरवाते हैं, पर चुनाव के बाद हमारे फॉर्म भी गायब हो जाते हैं। यह बात आदिवासी समाज के भीतर गहरी निराशा पैदा करती है कि उनके साथ केवल वादों का खेल होता है, काम का नहीं।

इस मुद्दे को लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी कहा है कि PM Awas Yojana को लेकर सरकार की प्राथमिकता उस तरह नहीं दिखती जैसी दिखनी चाहिए। यदि यह योजना सच में गरीबों के लिए है, तो फिर आदिवासी इलाकों में इसका असर क्यों नहीं दिखता? क्यों लोग अपनी पूरी जिंदगी एक कच्ची झोपड़ी में बिताने को मजबूर हैं? क्यों बच्चों की पढ़ाई, सुरक्षा और भविष्य सिर्फ इसलिए प्रभावित होता है क्योंकि सरकार उन्हें एक पक्का घर नहीं दे पाती?

यह सिर्फ घर का सवाल नहीं है। यह सवाल सम्मान का है, सुरक्षा का है, बराबरी का है। एक पक्के घर का मतलब सिर्फ चार दीवारें नहीं होता। यह एक ऐसे जीवन की शुरुआत है जिसमें इंसान खुद को सुरक्षित महसूस करता है, अपने भविष्य के लिए सपने देख सकता है। जब यह घर भी भेदभाव का शिकार हो जाए, तो समाज का विश्वास टूटना स्वाभाविक है। आज आदिवासी समाज पूछ रहा है क्या हम इस देश के नागरिक नहीं? क्या हमें भी छत का हक नहीं? एक कच्चे घर से पक्का घर तक का सफर इतना मुश्किल क्यों है?” और सरकार के पास इन सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं है।

AAP का कहना है कि यदि उनकी सरकार होती तो सबसे पहले आदिवासी belts में PM Awas Yojana को प्राथमिकता दी जाती, और सूची एक पारदर्शी प्रणाली से बनाई जाती। उनका दावा है कि गुजरात में आदिवासियों को सिर्फ चुनाव के समय याद किया जाता है। बाकी समय कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होता। दिल्ली मॉडल का उदाहरण देते हुए AAP कहती है कि जहाँ उनकी सरकार है, वहाँ योजनाएँ ज़मीन पर उतरती हैं, काग़ज़ों में नहीं अटकतीं।

इस पूरी कहानी में सबसे बड़ा सवाल यही है क्या सरकार सच में गरीबों के लिए घर बना रही है या सिर्फ आंकड़े बढ़ाने के लिए योजनाओं को सफल बताया जा रहा है? जब तक जमीन पर रहने वाले लोग खुद कहेंगे कि उन्हें घर मिला, तब तक कोई भी योजना पूरी नहीं मानी जा सकती। जब तक आदिवासी समाज को वह सम्मान नहीं मिलता जिसका वह हकदार है, तब तक PM Awas Yojana का सपना अधूरा ही रहेगा।

अंत में यही समझ आता है कि PM Awas Yojana का सबसे बड़ा सच यह है योजना अच्छी है, पर उसका पहुँचाना सही जगह तक सबसे कठिन है। और जब तक यह कठिनाई दूर नहीं होती, आदिवासी समाज का इंतज़ार कभी खत्म नहीं होगा।

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