वंदे मातरम् पर मचा सियासी संग्राम, विपक्ष ने निकाली BJP-RSS की हवा!
वंदे मातरम्, इस गीत को लेकर बीते कुछ दिनों से सियासी पारा कुछ ज्यादा ही हाई चल रहा है, पक्ष विपक्ष सामने-सामने हैं। सड़क से लेकर संसद तक इसपर चर्चा हो रही है। सत्ताधारी दल भाजपा द्वारा एक तरफ जहां इसे लेकर विपक्ष पर तरह-तरह केआरोप लगाए जा रहे हैं।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: वंदे मातरम्, इस गीत को लेकर बीते कुछ दिनों से सियासी पारा कुछ ज्यादा ही हाई चल रहा है, पक्ष विपक्ष सामने-सामने हैं। सड़क से लेकर संसद तक इसपर चर्चा हो रही है। सत्ताधारी दल भाजपा द्वारा एक तरफ जहां इसे लेकर विपक्ष पर तरह-तरह केआरोप लगाए जा रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष भी इस मामले पर भाजपा पर निशाना साधने से पीछे नहीं हट रहा है।
जिस देश में महंगाई का ये आलम हो कि बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो एक वक़्त का खाना खाकर दूसरे वक़्त के खाने की तलाश करते हैं, कोई ठिकाना नहीं है। रोजगार का आलम तो आप बखूबी समझते ही होंगे। देश का युवा सड़कों पर बेरोजगार घूम रहा है, सरकारी नौकरी के इंतजार में जाने कितनों की उम्र निकल गई तो कई लोगों ने मौत को गले लगा लिया। उसी दिल्ली में सदनों में जब वंदे मातरम् को लेकर चर्चा चल रही होती है तो वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर हजारों शिक्षक और छात्र अपने हक़ के लिए जंतर-मंतर पर भूखे-प्यासे धरना दे रहे होते हैं। खैर इन सबसे सत्ताधारी दल भाजपा को भला क्या? उसे तो बस हिन्दू मुसलमान राजनीति करनी आती है। यही वजह है कि आज युवा वर्ग पूरी तरह से राहुल गांधी की विचारधारा के प्रति आकर्षित है।
खैर बात करें वंदे मातरम् की तो इसपर सियासी गलियारों में बहसबाजी बढ़ती ही जा रही है। आलम ये है कि पक्ष विपक्ष जमकर हमलावर है। वहीं इसी बीच शिवसेना UBT के मुखपत्र ‘सामना’ में प्रकाशित संजय राउत के संपादकीय ने एक बार फिर राजनीतिक माहौल गरमा दिया है. ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर बीजेपी द्वारा आयोजित कार्यक्रम पर सवाल उठाते हुए राउत ने बीजेपी को ‘वंदे मातरम् का ठेकेदार’ बताते हुए तीखी आलोचना की है. संपादकीय में कहा गया है कि बीजेपी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा शुरू कराकर खुद के लिए मुश्किलें खड़ी कर ली हैं. राउत लिखते हैं कि जैसे ही यह मुद्दा संसद में आया, पूरे विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को ‘राष्ट्रवाद पर झूठा ज्ञान बांटने वाला’ करार देते हुए घेर लिया।
इसके साथ ही संजय राउत ने तंज कसते हुए लिखा कि बीजेपी और संघ परिवार का स्वतंत्रता संग्राम से कोई संबंध नहीं रहा. इनके शरीर पर स्वतंत्रता आंदोलन की एक खरोंच तक नहीं आई, फिर भी राष्ट्रवाद पर ज्ञान देना इनकी आदत बन चुकी है. उन्होंने याद दिलाया कि 1896 में जब युवा रवींद्रनाथ टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार ‘वंदे मातरम्’ गाया था, तभी यह गीत आंदोलन की आत्मा बन गया था.
संपादकीय में आगे कहा गया कि जिस कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम्’ को पहचान दी, उसी कांग्रेस से आज बीजेपी ‘देशभक्ति का प्रमाणपत्र’ मांग रही है. राउत ने आरोप लगाया कि बीजेपी के पूर्वज स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा नहीं थे, उल्टे वे अंग्रेजों और मोहम्मद अली जिन्ना के साथ खड़े थे. राउत ने संघ से सवाल पूछा कि यदि उन्हें ‘वंदे मातरम्’ इतना प्रिय है, तो इसे आरएसएस शाखाओं में पहली बार कब गाया गया था और फिर ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि’ को शाखाओं का मुख्य गीत क्यों बनाया गया.
राज्यसभा में वंदे मातरम पर हो रही चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीखा बयान देते हुए कहा कि इस राष्ट्रगीत के महत्व को बार-बार विवादों में घसीटा गया है. उनका कहना था कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को जगाने वाला मंत्र है, जिसकी शक्ति ने आज़ादी की लड़ाई में लाखों लोगों को प्रेरित किया. उन्होंने आरोप लगाया कि जवाहर लाल नेहरू ने वंदे मातरम के टुकड़े किए. अमित शाह ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि कुछ दल वंदे मातरम की चर्चा को बंगाल चुनाव से जोड़कर उसका महत्व कम करने की कोशिश कर रहे हैं.
शाह ने कहा कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत की रचना बंगाल में की, लेकिन इसका संदेश पूरे भारत में बिजली की तरह फैल गया और आज भी राष्ट्र को एकजुट करता है. अमित शाह ने कहा कि अंग्रेजों ने जब वंदे मातरम पर पाबंदियां लगाईं, तब बंकिम चंद्र ने साफ कहा था कि चाहे उनकी बाकी रचनाएं गंगा में बहा दी जाएं, लेकिन वंदे मातरम की शक्ति अनंत काल तक जीवित रहेगी. शाह के अनुसार, बंकिम चंद्र के ये शब्द आज पूरी तरह सच साबित हुए हैं.
वहीं विपक्ष ने भी ऐसे बयानों का करारा जवाब दिया। वहीं विपक्ष के नेता गौरव गुगोई ने भी तीखा हमला बोलते हुए वहीं इसी कड़ी में वंदे मातरम पर चल रही चर्चा के बीच आप नेता की तरफ से भी जोरदार हमला बोला गया। इस विशेष चर्चा के दौरान आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बीजेपी और आरएसएस पर तीखा हमला बोला है। संजय सिंह ने कहा कि वंदे मातरम का नारा लगाने वाले शहीदों की कुर्बानी पर जिनका कोई इतिहास नहीं, वे आज देशभक्ति के ठेकेदार बने घूम रहे हैं। संजय सिंह ने कहा कि सरकार वंदे मातरम की आड़ में असली मुद्दों बेरोजगारी, महंगाई, दलित-पिछड़ों पर अन्याय और देश की आर्थिक लूट से ध्यान भटकाना चाहती है।
बात की जाए इस पूरे मामले की आखिर इसे लेकर संसद में चर्चा क्यों हो रही है। दरअसल 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखे गए वंदे मातरम के 2025 में 150 साल पूरे हुए हैं। इस उपलक्ष्य पर केंद्र सरकार ने कई आयोजन भी किए हैं। ऐसे ही एक आयोजन में प्रधानमंत्री ने पिछले महीने कांग्रेस को घेरा था। पीएम ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने 1937 के कलकत्ता में रखे गए अधिवेशन में वंदे मातरम के कुछ अहम छंद हटा दिए गए थे। उन्होंने दावा किया था कि इस फैसले ने बंटवारे के बीज बोए थे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि कांग्रेस ने राष्ट्रगीत को दो हिस्सों में तोड़ दिया और इसकी असल आत्मा को कमजोर कर दिया। उन्होंने इस मुद्दे को विकसित भारत के अपने विजन से जोड़ा और राष्ट्रीय विकास को सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ मेल के तौर पर पेश किया।
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी के इन आरोपों को न सिर्फ नकारा, बल्कि पलटवार भी किया। पार्टी ने महात्मा गांधी के कथनों और लेखन से संचित- ‘द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी’ (वॉल्यूम 66, पेज 46) का हवाला देते हुए कहा कि 1937 में वंदे मातरम को लेकर हुआ फैसला कांग्रेस वर्किंग कमेटी के प्रस्ताव के बाद आया था। इस समिति में जवाहरलाल नेहरू के अलावा खुद महात्मा गांधी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, अबुल कलाम आजाद, सरोजिनी नायडू और कई वरिष्ठ नेता शामिल थे।
कांग्रेस के मुताबिक, सीडब्ल्यूसी ने तब पाया था कि वंदे मातरम के शुरुआती दो छंद ही पूरे देश में वृहद स्तर पर गाए जाते थे। प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि बाकी के छंद धार्मिक स्वरूपों को पेश करते हैं, जिनसे कुछ नागरिकों को आपत्ति थी। कांग्रेस ने यह भी तर्क पेश किया कि वंदे मातरम के छंद हटाने का फैसला इस अधिवेशन में रबिंद्रनाथ टैगोर की सलाह पर ही लिया गया, जिन्होंने 1896 में एक अधिवेशन के दौरान पूरा वंदे मातरम गाया था।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री वंदे मातरम के बहाने आजादी के आंदोलन की विरासत पर हमला बोल रहे हैं और आज के मुद्दे, जैसे- बेरोजगारी, गैरबराबरी और विदेश नीति की चुनौतियों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि भाजपा ऐसे ही मुद्दों को उठाकर न सिर्फ विपक्ष को बदनाम करने की कोशिश कर रही है बल्कि जनता को अहम मुद्दों से भी भटका रही है। अब देखना ये होगा कि भाजपा की चाल को विपक्ष कैसे नाकाम करता है।



