अखलाक लिंचिंग केस में यूपी सरकार को झटका, उन्नाव रेप कांड के दोषी को जमानत

यूपी में योगी बाबा की सरकार को जोर झटका लगा है क्योंकि कोर्ट ने सरेआम अखलाक लिंचिंग केसे में यूपी सरकार की अर्जी को न सिर्फ खारिज कर दिया बल्कि इस केस को प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करने का फैसला किया है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: यूपी में योगी बाबा की सरकार को जोर झटका लगा है क्योंकि कोर्ट ने सरेआम अखलाक लिंचिंग केसे में यूपी सरकार की अर्जी को न सिर्फ खारिज कर दिया बल्कि इस केस को प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करने का फैसला किया है।

हालांकि दूसरी ओर देश को हिला देने वाले उन्नाव रेप का चर्चित मुजरिम पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को कोर्ट से जमानत मिल गई है, दोनों मामलों के सामने आने से न सिर्फ सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि सरकार सीधे निशाने पर ही है। कैसे अखलाक लिंचिंग केस से योगी बाबा की सरकार को जोर का झटका लगा है और कुलदीप सेंगर की जमानत को लेकर क्यों सवाल खडे हो रहे हैं।

पहले बात करते हैं अखलाक मॉब लिंचिंग केस में कोर्ट के बड़े फैसले की। मोहम्मद अखलाक लिंचिंग केस साल 2015 का है, जब उत्तर प्रदेश के दादरी गांव में एक निर्दाेष मुस्लिम व्यक्ति मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। वजह? सिर्फ ये अफवाह कि उसके घर में गोमांस रखा है। ये लिंचिंग इतनी क्रूर थी कि अखलाक की मौत हो गई, और उनका बेटा गंभीर रूप से घायल हो गया, बाद में ब्रेन सर्जरी के बाद वो बच पाया। इस घटना से पूरे देश में हंगामा मचा गई थी। लोग सड़कों पर उतर आए, न्याय की मांग की। लेकिन अब योगी सरकार ने क्या किया? वो आरोपियों को बचाने की कोशिश में लग गई।

18 आरोपी थे इस केस में – हत्या, दंगा, और अन्य गंभीर धाराओं में। लेकिन योगी सरकार ने 2025 में कोर्ट से अर्जी दाखिल की कि ये केस वापस ले लिया जाए। क्यों? क्योंकि आरोपियों में से कई उनके अपने समर्थक थे, या हिंदुत्व की राजनीति से जुड़े थे। हाल ही में अक्टूबर महीने में यूपी सरकार ने केस वापस लेने की अर्जी दाखिल की थी। इसमें कहा गया था कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास हैं, आरोपियों से कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी, कोई बंदूक या तेज हथियार नहीं मिला, और केस वापस लेने से गांव में सामाजिक सद्भाव बढ़ेगा।

दिलचस्प बात यह है कि ये तर्क वही हैं, जो 2017 में आरोपियों को जमानत दिलाने में इस्तेमाल हुए थे। उस समय सरकार ने इन तर्कों का विरोध किया था, लेकिन अब खुद इन्हीं को आधार बनाया। कोर्ट ने अर्जी को श्बिना ठोस कानूनी आधारश् वाला बताया और कहा कि इससे न्याय में बाधा आएगी। जज ने ट्रायल को तेज़ करने का निर्देश दिया। अब जल्द से जल्द गवाहों के बयान दर्ज होंगे।

अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी। कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि अब इस मामले की सुनवाई रोज़ाना होगी। उसने प्रॉसिक्यूशन को गवाहों के बयान रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर और डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (ग्रेटर नोएडा) को भी निर्देश दिया कि अगर ज़रूरत हो तो गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा दी जाए।

इस बीच अख़लाक़ की पत्नी इकरामन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल की है। इसमें 26 अगस्त 2025 के सरकारी आदेश से लेकर 15 अक्टूबर की वापसी अर्जी तक सभी को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि सरकार का यह फैसला संविधान के खिलाफ है और कार्यकारी शक्ति का दुरुपयोग है। वकील उमर जामिन ने याचिका दाखिल की है, जिसमें मांग की गई है कि सरकार को निर्देश दिया जाए कि ऐसी शक्ति का इस्तेमाल संविधान के अनुसार हो।

ट्रायल कोर्ट में भी परिवार ने केस वापस लेने की अर्जी के ख़िलाफ़ आपत्ति दर्ज की थी। परिवार का कहना है कि केस वापस लेना भीड़ हिंसा को बढ़ावा देगा और न्याय की हार होगी। ट्रायल कोर्ट ने मंगलवार को केस वापस लेने वाली सरकार की अर्जी खारिज कर दी है। सूरजपुर कोर्ट ने फैसले में कहा कि सरकार की अर्जी फ्रिवोलस यानी व्यर्थ है।

जज ने साफ-साफ लिखा कि ये केस गंभीर है, और इसे वापस लेना न्याय के खिलाफ होगा। ये फैसला अखलाक के परिवार के लिए थोड़ी राहत है, लेकिन सवाल ये है कि योगी सरकार ने ऐसी कोशिश क्यों की? क्या वो लिंचिंग को बढ़ावा देना चाहते हैं?

एक ओर जहां न्याय की बड़ी जीत बताई जा रही है तो वहीं दूसरी ओर साल 2017 में हुई एक नाबालिग लड़की का रेप करने वाले बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है जबकि जब विधायक की सजा मिली थी तो इसमें मौत न होने तक जेल में रहने का फैसला तीस हजारी कोर्ट ने सुनाया था जबकि अबदिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने सेंगर की सजा को अपील पर सुनवाई पूरी होने तक सस्पेंड कर दिया।

सेंगर ने सजा के खिलाफ अपील की है। अदालत ने कुलदीप सिंह सेंगर को 15 लाख रुपए के निजी मुचलके पर सशर्त रिहा करने का आदेश दिया है। साथ ही 4 शर्तें भी लगाई हैं कि पीड़ित से 5 किमी दूर रहना होगा, हर सोमवार को पुलिस को रिपोर्ट करना होगा। पासपोर्ट संबंधित प्राधिकरण के पास जमा कराना होगा, ताकि देश छोड़कर न जा सकें। एक भी शर्त तोड़ी तो बेल रद्द कर दी जाएगी। अरनकरे बता दें कि उन्नाव में कुलदीप सेंगर और उसके साथियों ने 2017 में नाबालिग को अगवाकर रेप किया था। इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी।

दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को 20 दिसंबर, 2019 को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए उसे मृत्यु तक जेल में रखने के आदेश दिए थे। सेंगर पर 25 लाख रुपए जुर्माना भी लगाया गया था। कुलदीप सेंगर की विधानसभा सदस्यता भी रद्द कर दी गई थी। उसे भाजपा ने पार्टी से निकाल दिया था। 2017 में उन्नाव रेप का केस देशभर में काफी चर्चित रहा था। अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप केस से जुड़े चार मामलों का ट्रायल दिल्ली ट्रांसफर कर दिया था। आदेश दिया था कि इसे रोजाना सुना जाए और 45 दिनों के भीतर पूरा किया जाए।

दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। सेंगर ने इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। आपको बता दें कि विधायक की पर पीडिता के पिता, मौसी और चाची को भी मार देने का आरोप लगा था। यहां तक कि पीडिता का परिवार इतना डरा हुआ था कि पीड़िता ने खुद पीएम मोदी और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को चिट्ठी लिखी थी और उसके बाद पीड़िता को न्याय मिल सकता था लेकिन अचानक सेंगर को जमानत मिल जाना, कहीं न कहीं सवाल खड़ा होता दिख रहा है।

भास्कर ने अपने बेवसाइट पर यहां तक लिख दिया है कि इसकी जानकरी उनको पहले से ही हो गई थी और इस पूरे मामले का खुलासा 29 अक्टूबर को ही कर दिया था। ऐसे में सवाल यह है कि नाबालिग का रेप करके चार चार हत्यों को कराने वाले को सिर्फ छह साल ही देश की जेलें कैद कर पाईं और वो फिर बाहर आ गया। इसको लेकर हर ओर से सवाल उठ रहा है कि आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी थी कि ताउम्र कैद में रहने वाले विधायक को 6 साल बाद अचानक जमानत देनी पडी है।

हालांकि इसको लेकर सवालों का दौर जारी है लेकिन जिस तरह से अखलाक लिंचिंग केस में योगी सरकार को जोर का झटका लगा है उससे न सिर्फ न्याय की जीत हुई है बल्कि योगी बाबा की सरकार के लिए सबक भी है कि हर जगहों पर हिंदू मुस्लिम फैक्टर से काम नहीं चलेगा बल्कि देश कानून और समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर चलेगा।जिस तरह से विधायक कुलदीप सेंगर को अचानक जमानत मिल गई है क्या ये न्याय पर सवाल नहीं है। जिस तरह से अखलाक केस के मामले को खत्म करने के मामले में अर्जी खारिज हुई है, क्या ये न्याय की बड़ी जीत नहीं है।

Related Articles

Back to top button