अपने स्वार्थ के लिए घुटने नहीं टेक सकता, युवा वर्ग की पीड़ा समझें सरकारें : वरूण गांधी
- जनता के सवाल हमेशा संगठन में उठाता रहूंगा
नई दिल्ली। तेवर के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाले भाजपा के मुखर और युवाओं मे लोकप्रिय सांसद वरुण गांधी फिर से सुर्खियों में हैं। भाजपा सरकार को लेकर ही वह आक्रामक हैं। वह कहते हैं- मैं तो हमेशा से जनता के पाले में हूं। जो जनता के सवाल होंगे वह संगठन में भी हमेशा उठाता रहूंगा। भाजपा हो या कोई और, अपने स्वार्थ के लिए मैं घुटने नहीं टेक सकता हूं। उन्होंने कहा मैं राजनीति में अपना निजी स्वार्थ साधने नहीं आया हूं। आप को मालूम ही होगा कि न तो मैं सांसद के रूप में मिली तनख्वाह लेता हूं, न सरकारी घर और अन्य सरकारी सुविधाएं। मेरी मां और मैं पूरी ईमानदारी से जन स्वाभिमान की रक्षा की राजनीति करते हैं, लोगों को अपना परिवार मान कर उनकी सेवा करते हैं।
कोरोना महामारी के दौरान जब मेरे संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में आक्सीजन सिलेंडर का अभाव हो गया, सरकारी अस्पतालों में जरूरी दवाइयां नहीं मिल रही थीं, तो मैंने अपनी बेटी की एफडी तोड़कर उन पैसों से पीलीभीत में आक्सीजन सिलेंडर और दवाएं पहुंचाई। मुझे लगता है मेरी सलाह पर विचार करने से पार्टी, सरकार और आम जनता सबका भला होगा। सरकारें आएंगी, जाएंगी, यही लोकतंत्र का दस्तूर है। पर हमें देखना होगा कि क्या ये चुनाव लोगों से जुड़े जरूरी और बुनियादी मुद्दों का ध्यान रख रहे हैं या ये राजनीतिक पार्टियों के लोक लुभावन नारों के मकड़जाल में उलझ कर रह गए हैं।
हम एक युवा देश हैं, जहां 35 साल से कम उम्र वाले युवाओं की संख्या लगभग 70 फीसदी है। भूलिए मत, इन्हीं युवा मतदाताओं ने 2014 के बाद लगातार भाजपा को वोट दिया है। आज उनकी स्थिति क्या है? आज तो युवाओं के लिए उनकी डिग्री भी नौकरी की गारंटी नहीं रह गई है, 2019 में 5.5 करोड़ युवाओं ने डिग्री हासिल की पर उनमें से 90 लाख बेरोजगार रह गए। हम केवल उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहां भी तेजी से लेबर फोर्स बढ़ी है, पहले जहां 14.95 करोड़ लोग मेहनत-मजदूरी से जुड़े थे आज उनकी संख्या बढ़ कर 17 करोड़ 7 लाख के आसपास पहुंच गई है। हमें युवा वर्ग के सपनों को मुकम्मल आसमान देना है। मेरे हिसाब से किसी भी वोटर को धर्म या जाति के आधार पर देखना ही गलत है। मैं तो वोटर को सबसे बड़ा स्टेक होल्डर मानता हूं। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को अपने वोट के जरिये इन मूल सवालों के जवाब देने हैं कि क्या इस पांच साल की सरकार में जमीन पर भ्रष्टाचार कम हुआ? क्या किसानों के साथ न्याय हुआ? क्या महंगाई की मार से जनता को राहत मिली है? संविदा कर्मचारियों को इंसाफ के लिए और कितना इंतजार करना होगा, एक और बड़ा सवाल कि क्या युवाओं को रोजगार मिला? किसी भी चुनाव को ऐसे बुनियादी और जरूरी सवालों के जवाब देने ही पड़ते हैं।
भाजपा सरकार से गन्ना किसान नाराज
उत्तर प्रदेश की पिछली तीन सरकारों में गन्ना मूल्य में सबसे कम वृद्धि इस मौजूदा सरकार के दौरान हुई है, यही कारण है कि भाजपा सरकार से गन्ना किसान इतना नाराज हैं। फसलों का लाभकारी मूल्य किसानों का अधिकार है, यदि हम यह सुनिश्चित नहीं करेंगे तो किसान धीरे-धीरे कर्ज के जाल में फंस जाएगा और खेती-किसानी छोड़ देगा। याद रखना चाहिए कि किसान आंदोलन अभी स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं। अभी कई मुद्दों पर किसान सरकार से जवाब चाहते हैं। जैसे एमएसपी पर कानूनी गारंटी, लखीमपुर कांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का इस्तीफा, आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुकदमों की वापसी, मुआवजे की मांग, ऐसे बहुत सारे विषय हैं, जिन पर सरकार को अपना निर्णय लेना है।