तो श्रीलंका की राह पर चल रहा भारत!
4पीएम की परिचर्चा में प्रबुद्घजनों ने रखे विचार
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। श्रीलंका में आसमान छूती महंगाई और जनता के हिंसक विरोध व प्रदर्शन से हालात बेकाबू हो गए हैं। विवादों में चल रहे प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद भी प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और उन्होंने राजपक्षे के पैतृक घर में आग लगा दी। श्रीलंका में ऐसा क्यों हो रहा है? इस मुद्ïदे पर वरिष्ठï पत्रकार राजेश महापात्रा, एनके सिंह, अशोक वानखेड़े, डॉ. अनिल यादव, डॉ. राकेश पाठक, केपी मलिक, एजुकेशनिस्टï शुभ लक्ष्मी और 4पीएम के संपादक संजय शर्मा ने एक लंबी परिचर्चा की।
शुभ लक्ष्मी ने कहा, प्रचंड जीत के साथ राजपक्षे पावर में आए थे। इसके बावजूद श्रीलंका की ऐसी हालत हो गयी है। श्रीलंका का जीडीपी लगातार गिर रहा था लेकिन ध्यान नहीं दिया। इसका नतीजा सबके सामने है। अशोक वानखेड़े ने कहा, इस मुद्ïदे पर सिंह साहब बढिय़ा प्रकाश डालेंगे। एनके सिंह ने कहा श्रीलंका के हालात के कई कारण हैं। आने वाले दस वर्षों तक पॉलिटिकल साइंटिस्ट, सोशल साइंटिस्ट और इकोनामिस्ट इस मसले पर सिर खुजलाएंगे कि ये कैसे हुआ। ये तीनों जो परिवर्तनशील गुणक है, इनका एक मिक्स है। अमेरिकन संविधान के पेपर में लिखा गया जो सबसे बड़ा खतरा है डेमोक्रेसी का। इसको अगर आपने रिड्यूस कर दिया सिर्फ वोट मशीनरी के रूप में तो ये डेमोक्रेसी बैठ जाएगी।
डॉ. अनिल यादव ने कहा श्रीलंका जिस रास्ते पर है भारत भी कमोबेश कुछ इसी रास्ते पर चल रहा है। श्रीलंका में महिंद्रा राजपक्षे का गिरोह जो इस देश को चला रहा था, उसी ने लुटिया डुबो दी। राजेश महापात्रा ने कहा, श्रीलंका में आज जो कुछ भी देखने को मिल रहा है यह कोरोना के कारण नहीं हुआ। वहां पहले से ही दिक्कतें थीं। अर्थव्यवस्था नहीं संभली, वैसे ही अर्थव्यवस्था भारत की हो रही है। हालांकि भारत बड़ी इकोनामी है। आगे कहा, जब आदमी के सामने रोजी-रोटी का संकट आता है तो वह सब कुछ भूल जाता है। श्रीलंका ही नहीं भारत में भी सुधार नहीं हुआ तो ऐसी स्थिति बन सकती है। डॉ. राकेश पाठक ने कहा पेट की भूख बड़ी है। यह किसी भी आग को भड़का सकती है। चेहरों में छिपे हुए जो भी तानाशाह होते हैं, उनका अंत ऐसा ही होता है। श्रीलंका के हालातों पर एक कवि की रचना याद आती है… हर एक सिकंदर का अंजाम यही देखा कि मिट्ïटी में मिली मिट्ïटी, पानी में मिला पानी। परिचर्चा में केपी मलिक ने भी अपने विचार रखे।