मीडिया के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है आज का दौर!
4पीएम की परिचर्चा में प्रबुद्घजनों ने किया मंथन
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। क्या वाकई टीवी चैनलों पर हो रही बहसों से समाज में किसी स्वस्थ विमर्श की शुरुआत होती है या हो सकती है? क्या टीवी चैनलों के संपादकों को नहीं मालूम कि स्टूडियों से निकल कर यह आग और जहर समाज में भी फैलता है? ऐसे में सवाल उठता हैं कि हालात किसने बिगाड़े, जहर उगलते नेताओं ने या जहरीली मीडिया ने? इस मुद्ïदे पर वरिष्ठï पत्रकार उमाकांत लखेड़ा, अशोक वानखेड़े, डॉ. राकेश पाठक, राजेश बादल, प्रो. सुधांशु कुमार, डॉ. विजय श्रीवास्तव और 4पीएम के संपादक संजय शर्मा ने एक लंबी परिचर्चा की।
प्रो. सुधांशु कुमार ने कहा, जिस चैनल पर यह घटना घटी, उस चैनल की एंकर नाविका कुमार, वे शब्द तुरंत म्यूट भी कर सकती थी। वे कहती कि ऐसी बातें हमारे चैनल में नहीं चलेगी। मीडिया, नेता और कुछ लोगों ने एक तरह का गठजोड़ तैयार कर रखा है। कुछ लोग अपनी गरिमा व नैतिकता भूल चुके हैं। उमाकांत लखेड़ा ने कहा, ये जो हुआ, अचानक नहीं हुआ। यह प्रक्रिया लगातार चल रही है। ऐसी चीजें सामने आएगी ही। अभी के जो पीएम है, आठ साल में कोई पीसी की नहीं। ऐसे में जो बोया जा रहा है, ये उसी की फसल है। वर्तमान में जो हालात है वो बहुत ही विस्फोटक है। मीडिया के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण दौर है। डॉ. विजय श्रीवास्तव ने कहा कि आज के दौर की जो मीडिया है, राजनीति है, उसमें बहुत विरोधाभास है। डॉ. राकेश पाठक ने शेर अर्ज किया कि किसको कातिल मैं कहूं, किसको मसीहा समझूं, सब यहां दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूं, वो भी क्या दिन थे…। हकीकत यही है कि हम सब शरीके जुर्म है। अशोक वानखेड़े ने कहा विनीत जैन से पूछे कि ये नुपूर वाला मामला है क्या, शायद वे इसका जवाब नहीं दे पाए। एंकर पार्र्टी बनते जा रहे हैं। मैनेज न कर बल्कि ऐसे सवाल पूछते हैं, जो सच्चाई नहीं है। इस कारण मैंने कई टीवी शो छोड़ दिए। डिबेट तक छोड़ दी। चैनल की भाषा में कहो तो डिस्कशन गर्म करो।
राजेश बादल ने कहा, बिना अध्यययन के बड़े पदों पर पहुंच गए कुछ लोग, कम से कम विषयों पर गहराई से मंथन करें और बोले तो ठीक रहेगा।