कर्नाटक में दोधारी तलवार पर सत्ता

जेडीएस की होगी अहम भूमिका

  • कांग्रेस को और बढ़ाना होगा वोट प्रतिशत
  • बीजेपी फूंक-फूंक कर रख रही कदम
  • कांग्रेस को 18 में मिले थें अधिक वोट शेयर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
बेंगलुरू। कर्नाटक में जैसे-जैसे वोटिंग की तारीखें करीब आ रही हैं सियासी पार्टियों की धडक़ने बढऩे लगी हैं। जहां कांग्रेस व जेडीएस ने कुछ प्रत्याशी घोषित कर दिये है वहीं बीजेपी अब भी वेट एंड वाच की मुद्रा में हैं। चुनावी रंगत में रंगे सभी दल एकदूसरे पर आरोप व प्रत्यारोप में जुट गए है। सब एक-दूसरे की कमियों को उजागर करने में लग गए हैं। पर कर्नाटक के सियासी समीकरण कुछ अलग इशारे कर रहे हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसबार सत्ता परिवर्तन हो सकता है बशर्ते जेडीएस के वोटों में बिखराव न हो। जेडीएस के कमजोर होने का फायदा भाजपा को मिल सकता है। वरना कांग्रेस को सत्ता मिलने की संभावना प्रबल है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान तत्कालीन सिद्धारमैया-नीत कांग्रेस पार्टी सत्ता गंवा बैठी थी, लेकिन वोट शेयर के मामले में उसका प्रदर्शन ऐतिहासिक रहा था, और लगभग चार दशक में यह पहला मौका था, जब सत्तासीन राजनैतिक दल का वोट शेयर बढ़ा था। वर्ष 2013 के 36.59 फीसदी की तुलना में वर्ष 2018 में कांग्रेस ने 38.14 फीसदी वोट हासिल किए थे। हालांकि जीती हुई सीटों के मामले में कांग्रेस को करारा नुकसान झेलना पड़ा था। 2013 में जीती 122 सीटों के मुकाबले 2018 में पार्टी ने सिर्फ 80 सीटें जीती थीं। इस नतीजे से साफ हो गया था कि इस सूबे में वोट शेयर के सीट के रूप में तब्दील होने का गणित कितना जटिल है, और इससे कांग्रेस के लिए बेहद विकट स्थिति पैदा हो गई। विधानसभा चुनाव 2023 में स्पष्ट बहुमत हासिल करने के लिए कांग्रेस को न सिर्फ अपना वोट शेयर बढ़ाना होगा, बल्कि उन्हें जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के भी कुछ सीटों पर कमज़ोर होने और कुछ सीटों पर मज़बूत होने की दुआ करनी होगी। इस जटिल-सी उम्मीद को साफ-साफ समझाना आसान नहीं है, लेकिन पिछले आंकड़े कतई ऐसा ही बताते हैं। कर्नाटक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पाटी, कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टी छ्वष्ठस् के बीच मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है, लेकिन वोट शेयर के आंकड़ों का बारीक विश्लेषण बताता है कि 224-सदस्यीय विधानसभा की ज़्यादातर सीटों पर या तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होगा, या कांग्रेस और जेडीएस के बीच मुकाबला होगा। कुछ सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय भी हो सकता है, लेकिन ऐसी सीटें बेहद कम हैं, जहां मुकाबला बीजेपी और जेडीएस के बीच हो।

तोल-मोल के प्रत्याशी तय करेगी भाजपा

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए तारीख का ऐलान हो गया है। कांग्रेस और जनता दल-सेक्युलर ने अपने उम्मीदवारों की दो-दो लिस्ट भी जारी कर दी हैं। लेकिन भाजपा ने अभी तक कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं है। ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं, आखिर क्यों भाजपा ने अभी तक किसी उम्मीदवार का नाम फाइनल नहीं किया है? भाजपा सूत्र का कहना है कि हम किसी जल्दबाजी में नहीं हैं, एक प्रक्रिया के तहत उम्मीदवारों के नामों पर विचार चल रही है और केंद्रीय चुनाव समिति सीईसी की बैठक के बाद नामों की घोषणा होगी। भाजपा सूत्र ने बताया कि कर्नाटक में प्रत्याशियों के नाम तय करने में कोई देरी नहीं हो रही है। बीजेपी ने कर्नाटक में वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाई है। पार्टी कांग्रेस और जेडीएस के उम्मीदवारों की सूची भी देख रही है। उन्होंने बताया कि उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए भाजपा बेहद गंभीरता से विचार कर रही है। कई पहलुओं पर गौर किया जा रहा है, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में, आंतरिक सर्वेक्षण, आंतरिक चुनाव और जनमत सर्वेक्षण किए गए हैं, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में स्थानीय नेताओं से तीन सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों को वोट देने के लिए कहा गया,वोटिंग स्लिप थीं और उनसे अपनी पसंद मार्क करने को कहा गया था। मतपेटियों को फिर बेंगलुरु लाया गया और परिणाम के आधार पर, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में तीन नामों को अंतिम रूप दिया गया। इसके बाद इन नामों को आंतरिक सर्वेक्षण और जनमत सर्वेक्षणों से जोड़ा गया। भाजपा सूत्र ने बताया कि हाल ही में संपन्न हिमाचल प्रदेश चुनाव में भी इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई गई थी। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि उम्मीदवार के चयन के लिए तीन मानदंड हैं।

हम किसी से गठबंधन नहीं करेंगे: डीके शिवकुमार

कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने मई में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद सरकार के गठन में भाजपा से मुकाबला करने के लिए जनता दल-सेक्युलर के साथ हाथ मिलाने की संभावना को खारिज कर दिया। उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी दो तिहाई सीटों पर जीत हासिल करेगी और 224 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत हसिल करेगी। डीके शिवकुमार ने त्रिशंकु विधानसभा के आसार और जेडीएस के साथ कांग्रेस के गठबंधन की संभावना से इनकार किया। शिवकुमार को खंडित जनादेश के मामले में संभावित किंगमेकर के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा,कि हम किसी भी राजनीतिक दल के साथ कोई गठबंधन नहीं चाहते हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे पास दो-तिहाई बहुमत होगा। हमारे पास भाजपा के मुकाबले सीटों की संख्या दोगुनी होगी। शिवकुमार ने कहा कि कांग्रेस का कर्नाटक में मजबूत आधार है और इसने समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए काम किया है। कनकपुरा की अपनी पारंपरिक सीट से चुनाव लड़ रहे डीके शिवकुमार ने कहा कि उन्हें भारी अंतर से जीतने का भरोसा है। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के अपने दूसरे निर्वाचन क्षेत्र के रूप में कोलार से भी चुनाव लडऩे की अटकलों पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस के दिग्गज नेता ने केवल एक सीट के लिए आवेदन किया है और दूसरी सीट पर निर्णय पार्टी की चुनाव समिति द्वारा लिया जाएगा। संकटमोचक और गांधी परिवार के वफादार के रूप में जाने जाने वाले डीके शिवकुमार ने पार्टी में दलबदल की संभावना को भी खारिज कर दिया।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होगा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन : सिद्धारमैया

बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी और अनबन सामने आ गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया ने लंबे समय से अपने प्रतिद्वंद्वी रहे और राज्य में पार्टी के प्रमुख डीके शिवकुमार के खिलाफ अपनी टिप्पणियों से यह संकेत दिया है। सिद्धारमैया ने शिवकुमार और खुद को राज्य के शीर्ष पद का दावेदार स्वीकार करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस बहुमत हासिल कर लेती है, तो अगला मुख्यमंत्री चुनने के लिए हाईकमान दखल नहीं देगा, क्योंकि चुने हपए विधायकों को चुनाव करना है। यह पूछे जाने पर कि शीर्ष पद पर किसी युवा व्यक्ति को मौका क्यों नहीं दिया जाता है, 75 साल के हो चुके पूर्व मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि यह आखिरी चुनाव होगा, जो वह लड़ेंगे।

20 फीसदी से ज़्यादा वोट हासिल करना जरूरी

किसी पार्टी को किसी निर्वाचन क्षेत्र में अहम तब माना जाता है, जब उसके प्रत्याशी को 20 फीसदी से ज़्यादा वोट हासिल हो वर्ष 2018 के लिए जेडीएस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के वोटों को जोड़ा गया है, क्योंकि उनके बीच चुनाव-पूर्व गठबंधन हुआ था। वर्ष 2013 के लिए बीजेपी का वोट शेयर केजीपी और बीएसआरएसपी अलग-अलग गुटों के साथ जोड़ा गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में, यानी अप्रैल, 2018 में जिन 222 सीटों पर (बेंगलुरू शहर की दो विधानसभा सीटों पर चुनाव स्थगित कर दिया गया था, और इन पर बाद में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने चुनाव लड़ा था) मतदान करवाया गया था, उनमें से 110 पर कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने थीं। इन सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी। के प्रत्याशियों ने कुल मिलाकर 80 फीसदी से ज़्यादा वोट हासिल किए। उत्तरी और तटीय कर्नाटक में जेडीएस अहम राजनैतिक पार्टी नहीं है, और उनके पास ज़्यादातर वोट दक्षिणी कर्नाटक से ही आते हैं.। किसी विधानसभा सीट पर 80 फीसदी से ज़्यादा वोट हासिल किए वर्ष 2018 के लिए जेडीएस और बहुजन समाज पाटी के वोटों को जोड़ा गया है। लेकिन इन आंकड़ों का यह मतलब भी हरगिज़ नहीं है कि कर्नाटक के ओल्ड मैसूर क्षेत्र से बाहर की सीटों पर कांग्रेस के काम में जेडीएस अड़ंगा नहीं डाल सकती। ज़्यादातर चुनावों की तरह इन सीटों पर भी नतीजे करीबी हो सकते हैं, और हार-जीत का अंतर कुछ हज़ार वोटों तक सिमट सकता है। सिर्फ 5 फीसदी वोट शेयर लेकर भी जेडीएस कई सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी प्रत्याशियों की किस्मत का फ़ैसला कर सकती है। सो, जेडरएस समूचे सूबे में सरकार बनाने के लिए ही नहीं, कई सीटों पर किंगमेकर है। जिन सीटों पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच होता रहा है, उन पर वर्ष 2008 के बाद से अब तक के सभी चुनाव परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि 61 सीटें ऐसी हैं, जिन पर जेडीएस को पराजित प्रत्याशी की हार के अंतर से ज़्यादा वोट हासिल हुए. इन सीटों पर जेडीएस को कुल वोटों के 1 से 14 फीसदी के बीच वोट हासिल हुए. इनमें से ज़्यादातर सीटें उत्तरी और मध्य कर्नाटक की हैं, जहांजेडीएस का हाजिऱी बेहद कम है।

 

 

 

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