बड़े दिल से सब एक साथ आएं
आमजन की यही पुकार : ये भारत का कार्यक्रम, सियासत को करें दूर
- सत्ता पक्ष भी झुके, विपक्ष भी हो नरम
- विपक्षी दलों को भी राजनीति करने से बचना होगा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सही है या गलत संसद का उद्घाटन पीएम करेंग, इस पर बहस हो सकती है पर येे आमजन से चर्चा करिये तो वह तो यही कहता है कि सता पक्ष व विपक्ष दोनों को इस कार्यक्रम में मिलकर आना चाहिए, दुनिया में भारत की एकता दिखाकर मिसाल पेश करना चाहिए। अगर सचमुच में नए संसद भवन के उदघाटन समारोह के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया गया है, तो लोकसभा स्पीकर के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जरूर एक बार इस पर विचार करना चाहिए। उदघाटन कोई कर दे।
28 मई की उस तस्वीर में जब पूरे देश की ताकत एकजुटता के साथ दिखेगी, तो फिर भारत कितना मजबूत नजर आएगा. कल्पना कीजिए कि उस तस्वीर में राष्ट्रपति होंगे, प्रधानमंत्री होंगे, बाकी सारे मंत्री होंगे और उसके साथ ही हर विपक्षी दल का प्रतिनिधित्व होगा तो फिर इस तस्वीर से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। इस पहलू को देखते हुए सरकार की ओर से भी समझदारी दिखनी चाहिए और देश के लिए गौरवपूर्ण इस पल से पूरी दुनिया को ये संदेश जाना चाहिए कि जब बात राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी हो तो यहां की सरकार विपक्षी दलों की भावनाओं को भी उतना ही महत्व देती है। इसके साथ ही कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों को भी ये गंभीरता से सोचना चाहिए कि नए संसद भवन का उदघाटन कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, अगर राष्ट्रपति की जगह प्रधानमंत्री ही उस इमारत का उदघाटन कर रहे हैं तो भी ये कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर राजनीतिक नजरिए से लाभ-हानि सोचकर रणनीति बनाई जाए। ऐसे भी इस देश में कई मौके आए हैं, जब किसी इमारत के उदघाटन में बहुत तरह की ऊंच-नीच देखने को मिली है और ये भी सोचना होगा कि उदघाटन का अधिकार कोई संवैधानिक अधिकार नहीं होता। सैद्धांतिक तौर से ये किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन भी नहीं है, ये तो बस व्यवहार की बात है। कांग्रेस समेत जिन 19 दलों ने नए संसद भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है, उनमें वे सारे दल ही शामिल हैं, जो एक तरह से 2024 के चुनाव में बीजेपी के खिलाफ देशव्यापी स्तर पर विपक्षी गठबंधन बनाने की चाह रखते हैं। इस बहिष्कार से बीजेडी के नवीन पटनायक, वाईआरएस कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी, टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू, शिरोमणि अकाली दल ने अपने आप को दूर रखा है। यानी ये दल समारोह में शामिल होंगे। मायावती की भी ज्यादा संभावना शामिल होने की ही है, वहीं बीआरएस के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव की ओर से भी ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं कि वे भी समारोह से दूरी ही बनाएंगे।
एक साथ खड़े हो सरकार और विपक्ष
सरकार और सभी विपक्षी दलों को ये समझना होगा कि नया संसद भवन लोकतंत्र का प्रतीक है और आने वाले सदियों-सदियों तक ये हमारी पहचान रहेगा। इसलिए दोनों ही पक्षों को बाकी मुद्दों पर राजनीति करनी चाहिए और इसे राष्टï्रीय गौरव का पल बनाने के लिए हर वो कदम उठाना चाहिए जिससे अंतरराष्टï्रीय पटल पर एक मजबूत और एकजुट भारत की छवि बनती हो। इस दिशा में सरकार को भी विपक्षी दलों से बात कर हल निकालना चाहिए। उन्हें उदघाटन समारोह में शामिल होने के लिए मनाना चाहिए तो दूसरी तरफ कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को भी अपनी जिद्द छोडक़र इस ऐतिहासिक पल का हिस्सा बनना चाहिए। अब सब कुछ दोनों पक्षों की समझदारी और सही मायने में राष्टï्रीय अस्मिता से जुड़े मुद्दे पर एकजुटता दिखाने पर टिका है।
संसद पर सिर्फ सरकार का अधिकार नहीं
अब जरा सोचिए कि संसद सिर्फ सरकार या सत्ताधारी दल से नहीं बनती है। इसके संगठन और सार्थकता में विपक्षी दलों की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अब ये कैसा लगेगा कि देश को नया संसद भवन मिल रहा है, देश को नए संसद भवन के तौर पर लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रतीक मिल रहा है और उस मौके से ज्यादातर विपक्षी दल गायब हैं या बहिष्कार मुहिम में शामिल है।
विपक्ष को हो सकता है नुकसान
विपक्षी दलों को एक बात समझनी चाहिए कि नया संसद भवन सिर्फ सरकार का नहीं है। ये देश के हर नागरिक की तरह उनका भी है, देश के तमाम दलों का है। अगर कांग्रेस और उनके साथ बाकी कई दल सिर्फ़ चुनावी नजरिए से संसद भवन जैसे मसले को मुद्दा बना रहे हैं, तो ये सारे दल भूल कर रहे हैं। भारत में लोगों के लिए भावनात्मक मुद्दे ज्यादा अहमियत रखते हैं और ज्यादातर लोग यही मानकर चलेंगे कि देश को नया संसद भवन मिल रहा है, ये राष्ट्रीय अस्मिता का विषय है। ऐसे में कांग्रेस और बाकी विपक्षी दल एक तरह से अपना ही नुकसान कर रहे हैं और बीजेपी का इससे कोई नुकसान नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा फायदा ही होने वाला है।
सरकार को घेरने के लिए देश में और हैं मुद्दे
देश में कई मुद्दे हैं, जो जरूरी हैं..महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, घर का अभाव, मेडिकल सुविधाओं का अभाव समेत कई मुद्दे हैं, जिनको लेकर विपक्षी दल सडक़ से लेकर संसद तक संघर्ष कर सकते हैं। नरेंद्र मोदी सरकार को घेर सकते हैं, बीजेपी के खिलाफ लामबंदी कर सकते हैं। लेकिन नए संसद भवन का उदघाटन समारोह किसी भी तरह से राजनीति का मुद्दा नहीं बनना चाहिए। ये बात न तो सरकार के हित में है, न ही विपक्षी दलों के। उससे भी ज्यादा देश की एकजुटता के नजरिए से भी इससे सही संदेश नहीं जाएगा।