यूसीसी पर भाजपा को एआईएडीएमके ने दिया झटका

विरोध में बोली-अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर डालेगा प्रभाव

 4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। देश में भाजपा के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना आसान होने वाला नहीं है। विपक्ष तो विरोध कर ही रहा है लेकिन अब तमिलनाडु में भाजपा की प्रमुख सहयोगी अन्नाद्रमुक (एआईएडीएमके) ने भाजपा को झटका देते हुए कहा कि एआईएडीएमके ने भारत सरकार से समान नागरिक संहिता के लिए संविधान में कोई संशोधन नहीं लाने का आग्रह किया है।
एआईएडीएमके का मानना है कि यह कानून भारत के अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। नेशनल पीपुल्स पार्टी के बाद एआईएडीएमके दूसरी प्रमुख भाजपा सहयोगी पार्टी है जिसने यूसीसी का विरोध किया है। वहीं अब देखना होगा कि भाजपा अपने इन प्रमुख सहयोगियों को कैसे मना पाती है। इससे पहले नगालैंड में भाजपा की एक अन्य सहयोगी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन पर अपनी आपत्ति जताई थी। ज्ञात हो कि समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग की परवाह किए बिना समान रूप से लागू होगा। यह संहिता संविधान के अनुच्छेद ४४ के अंतर्गत आती है, जिसमें कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

देश की एकता के लिए बड़ा खतरा

जमीयत उलेमा-ए-हिंद यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी राय तैयार की है। राय में कहा गया है कि यूनिफार्म सिविल कोड मजहब से टकराता है, ऐसे में लॉ कमीशन को चाहिए कि वो सभी धर्मों के जिम्मेदार लोगों से बुलाकर बात करे और समन्वय स्थापित करे। मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में जमीयत उलेमा ए हिंद आज अपनी राय भेजेगा, जिसके मुताबिक- कोई भी ऐसा कानून जो शरीयत के खिलाफ हो, मुसलमान उसे मंजूर नहीं करेंगे, मुसलमान सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत के खिलाफ़ नहीं जा सकता, यूनिफॉर्म सिविल कोड देश की एकता के लिए खतरा है। उलेमा-ए-हिंद की राय लॉ कमीशन को भेजी जाएगीआज राय लॉ कमीशन को भेजी जाएगी। जमीयत उलेमा हिंद ने अपने तैयार की गई राय में कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान में मिली धर्म के पालन की आजादी के खिलाफ है, क्योंकि यह संविधान में नागरिकों को धारा २५ में दी गई धार्मिक आजादी और बुनियादी अधिकारों को छीनता है। जमीयत की तरफ से कहा गया कि हमारा पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत से बना है, उसमें कयामत तक कोई भी संशोधन नहीं हो सकता। हमें संविधान मजहबी आजादी का पूरा मौका देता है।

 

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