दिन में 10,000 बार सोता है ये जीव, फिर कैसे पूरी हो जाती है नींद
धरती पर एक से एक रहस्यमय जीव हैं। कोई वर्षों सोता नहीं तो कई कभी मरता नहीं। लेकिन एक जीव ऐसा भी है जो दिन में 2-4 बार नहीं बल्कि 10000 बार नींद की झपकी लेता है। सुनने में आपको यह नामुमकिन सा लग रहा होगा। मगर यह एकदम सत्य है। हाल ही में साइंटिस्ट ने इस तथ्य का खुलासा किया तो सब लोग चौंक गए। इस जीव का नाम चिनस्ट्रैप पेंगुइन है जो अंटार्कटिका में पाई जाने वाली पेंगुइन की एक प्रजाति हैं। साइंटिस्ट जब अंटार्कटिका के किंग जार्ज द्वीप पर रहने वाले पक्षियों पर रिसर्च कर रहे थे, तो उन्हें यह अनोखी चीज पता चली। द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, चिनस्ट्रैप पेंगुइन धरती पर मौजूद इकलौते पक्षी हैं जो दिन में 10,000 बार सोते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी एक झपकी सिर्फ 4 सेकेंड की होती है। एक्सपर्ट ने पाया कि जब उनकी गर्दन हिल रही होती है तो वे झपकी ले रहे होते हैं। उनकी ये आदत इसलिए है, क्योंकि उन्हें अपने घोंसले, अंडे और बच्चों पर हर समय खतरा महसूस होता है। इसलिए नींद में जाते ही वे बार-बार आंखें खोलकर अपने अंडों-बच्चों पर नजर रखते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि चिनस्ट्रैप पेंगुइन दिन में 11 घंटों तक झपकी लेते रहते हैं। 1980 के दशक में भी इन पर रिसर्च हुई थी। तब सिर्फ इतना पता चला था कि पेंगुइन थोड़ी-थोड़ी देर की नींद लेते हैं। तो क्या इंसान ऐसा कर सकते हैं? ल्योन न्यूरोसाइंस रिसर्च सेंटर के रिसर्चर पॉल-एंटोनी लिबौरेल ने कहा, इंसान के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं। क्योंकि हमारी संरचना इन पक्षियों से बिल्कुल अलग होती है। हमारी नींद का पैटर्न भी काफी जुदा होता है। इसलिए इंसानों के लिए इतनी ज्यादा नींद ले पाना शायद संभव न हो। काले और सफेद रंग चिनस्ट्रैप पेंगुइन दक्षिणी गोलार्ध में रहते हैं। इनके पास पंखों जैसे फ्लिपर्स होते हैं, मगर ये उड़ नहीं सकते। जलीय जीव होने की वजह से ये फ्लिपर्स इन्हें तैरने में मदद करते हैं। इनके सिर के नीचे की पतली काली पट्टी होती है, जिसकी वजह से इनका नाम चिनस्ट्रैप रखा गया। आप जानकर हैरान होंगे कि भोजन की तलाश में ये 70 मीटर नीचे तक गोता लगा सकते हैं। इतने तेज होते हैं कि आधे मिनट में 10 मीटर गहराई में जाकर भोजन को दबोच लेते हैं। आमतौर पर वे रात में गोता लगाना पसंद करते हैं। वे नवंबर के अंत में अंडे देते हैं, जिनसे जनवरी की शुरुआत में बच्चे निकलते हैं। बच्चे 2 महीने से भी कम समय में बाहर आ जाते हैं।