इस बार मोदी की विदाई तय! पूरे देश में दिख रही कांग्रेस की लहर
श के अधिकांश हिस्सों में लगातार चढ़ते तापमान ने लोगों के पसीने छुटा रखे हैं.. कई हिस्सों में तो पारा 50 डिग्री के भी पार जा चुका है.. तो वहीं अधिकांश हिस्सों में तापमान 46-47 डिग्री के ऊपर ही बना हुआ है..
4PM न्यूज़ नेटवर्क: देश के अधिकांश हिस्सों में लगातार चढ़ते तापमान ने लोगों के पसीने छुटा रखे हैं.. कई हिस्सों में तो पारा 50 डिग्री के भी पार जा चुका है.. तो वहीं अधिकांश हिस्सों में तापमान 46-47 डिग्री के ऊपर ही बना हुआ है.. आलम ये हो गया है कि मौसम विभाग ने भी लोगों से बहुत जरूरी होने पर ही घर से निकलने को कहा है, अन्यथा घर में रहने की ही सलाह दी है.. लेकिन जैसे-जैसे मौसम का मिजाज गर्म हुआ पड़ा है.. वैसे ही देश के अंदर सियासी पारा भी चढ़ा हुआ है.. देश के अंदर सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के छह चरणों का मतदान पूरा हो चुका है.. अब सिर्फ अंतिम माने सातवें चरण का मतदान बाकी रह गया है जो 1 जून होना है.. हालांकि, 30 मई की शाम पांच बचे से अंतिम चरण के चुनाव के लिए प्रचार पर रोक लग चुकी है.. लेकिन अभी भी देश में सियासत गरमाई है.. जो कि 4 जून को चुनाव परिणाम वाले दिन तक गरमाई ही रहेगी..
1 जून को अंतिम व सातवें चरण का मतदान होते ही लोकसभा चुनाव पूर्ण हो जाएंगे.. और इसके बाद सभी राजनीतिक दलों की निगाहें लगी होंगी 4 जून पर, जिस दिन लोकसभा चुनावों के परिणाम आएंगे और पता चलेगा कि जनता ने देश की कमान किसके हाथों में सौंपी है.. यानी लोकतंत्र का महापर्व अब सिर्फ दो दिनों का बचा है.. 1 जून के तीन दिन बाद ये पता चल जाएगा कि जनता के किसके वादों पर भरोसा किया है और किसके वादों को किया है सिरे से खारिज..
फिलहाल इस बार बीजेपी जहां सत्ता में फिर से जोरदार वापसी की उम्मीद लगाए बैठी है.. तो वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के बैनर तले एकजुट हुआ विपक्ष है, जो इस बार हर हाल में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में लगा हुआ है.. इंडिया और एनडीए गठबंधन के बीच कहीं न कहीं असली लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है.. क्योंकि भाजपा पिछले एक दशक से सत्ता पर राज कर रही है.. जबकि कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनावों में पूरे देश में क्रमश: 44 और 52 सीटों पर ही सिमट गई.. ऐसे में ये चुनाव एक ओर जहां भाजपा के लिए सत्ता में जीत की हैट्रिक लगाने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है.. तो वहीं कांग्रेस के लिए अपने प्रदर्शन में सुधार और सत्ता में वापसी के नजरिए से बेहद अहम हो जाते हैं.. इस बार कांग्रेस की स्ट्रेटजी में भी बदलाव देखने को मिल रहा है.. और ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस भी इस चुनाव को काफी गंभीरता से ले रही है.. बेशक 2019 के लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष मजबूत दिख रहा था और राहुल गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस खुद को संभालती दिख रही थी..
लेकिन चुनाव के ऐन वक्त पर पुलवामा हमला हो जाने से पूरे देश में माहौल एकदम से बदल गया है.. और चुनाव में ऐसी हवा चली कि एक बार फिर भाजपा ने सत्ता में जोरदार तरीके से वापसी की और फिर से केंद्र की सत्ता हासिल की.. लेकिन इस बार न तो अभी तक ऐसी कोई घटना घटी है जो एकदम से चुनाव के रुख को बदल दे और न ही इस चुनाव में किसी की कोई लहर या मोदी मैजिक है.. इसलिए इस बार लोकसभा चुनाव का मुकाबला काफी कड़ा और रोमांचक रहा है.. फिलहाल मतदान तक तो रहा ही है.. वहीं भले इस बार कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी न हों, लेकिन लीडरशिप में राहुल गांधी ही कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बने हुए हैं.. और जिस तरह से पिछले डेढ़ साल में उनकी छवि में बदलाव आया है.. उसने कांग्रेस को एक अलग मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है.. वहीं इस चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस व राहुल गांधी ने आमजन के मुद्दों को उठाया है और संविधान को खतरे में बताकर जो मुद्दा लोगों तक जमीनी स्तर पर पहुंचाया है.. उसने कांग्रेस को काफी मजबूती प्रदान की है.. तो वहीं बीजेपी के लिए मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं..
हर किसी को इस बात की पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस इस बार मजबूत प्रदर्शन करने जा रही है.. एक तरफ जहां कांग्रेस उन राज्यों में अपना प्रदर्शन दोहराने जा रही है, जहां पिछली बार उसका प्रदर्शन बेहतर रहा था.. तो वहीं वह साउथ के अलावा नॉर्थ के कुछ राज्यों में भी कांग्रेस अपने लिए बेहतर नतीजे की उम्मीद लगाए बैठी है.. जहां उसका खाता ही नहीं खुला था या फिर एक दो सीटों तक सिमटकर रह गया था.. कांग्रेस के इस आत्मविश्वास के पीछे जहां एक ओर पार्टी व लोगों का मानना है कि राहुल गांधी की यात्रा का असर रहा है..
वहीं इसके पीछे बड़ा कारण विपक्षी खेमे में बेहतर समन्वय और चुनाव के चरण दर चरण उनका इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के साथ किए गए प्रचार को मिला रिस्पॉन्स है.. जबकि कांग्रेस इस बार सबसे कम 327 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है.. दक्षिण भारत में हमेशा ही कांग्रेस काफी मजबूत रही है.. और अपने 10 साल के कार्यकाल के बाद भी भाजपा या पीएम मोदी साउथ में अपनी जमीन नहीं तलाश पाए हैं.. दक्षिण भारत में भाजपा सिर्फ कर्नाटक में ही थोड़ा बहुत खड़ी नजर आती है.. वहां भी इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को बुरी तरह हराकर सत्ता में वापसी की है..
ऐसे में साउथ में इस बार भी कांग्रेस के लिए राह आसान ही है.. 2014 में जब कांग्रेस व यूपीए सरकार को देश में ज्यादातर जगहों पर हार का सामना करना पड़ा था.. उस वक्त भी दक्षिण के राज्यों ने ही कांग्रेस को मजबूती दी थी.. और पार्टी ने 44 सीटों पर जीत नसीब कर पाई थी.. जिसमें से उसे कर्नाटक से 9 और केरल से 8 सीटें मिली थीं..जबकि नए बने राज्य तेलंगाना में दो सीटें आई थीं और तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश में उसका खाता ही नहीं खुला था.. दूसरी ओर 2019 में कांग्रेस 421 सीटों पर लड़ी और उसे 52 सीटें आई थीं.. जबकि पार्टी को जहां कर्नाटक से एक सीट आई थीं तो केरल से 15 सीटें मिली थीं.. वहीं आंध्र प्रदेश ने उसे पिछली बार भी निराश किया तो तमिलनाडु में 8 और तेलंगाना में एक सीट मिली थी.. लेकिन अब पांच साल बाद हालात काफी बदल गए है..
इस बार ऐसी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि कांग्रेस तमिलनाडु और केरल में शानदार प्रदर्शन करने जा रही है.. तो वहीं दूसरी ओर जिस कर्नाटक में उसे पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली थी.. इस बार प्रदेश में सत्ता होने के चलते कर्नाटक में कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है.. इसके अलावा तेलंगाना में भी इस बार कांग्रेस शानदार प्रदर्शन कर सकती है.. क्योंकि तेलंगाना में भी कांग्रेस सत्ता में है और यहां पर बीआरएस को लेकर लोगों में काफी नाराजगी है.. कांग्रेस का मानना है कि उसकी सरकार जनता से किए गए वादों को जमीन पर उतारने में सफल रही है.. इसके आधार पर उसे इस बार बेहतर नतीजे मिलेंगे.. वह अपनी सीटों को यहां से बढ़ने की आशा लगाए है..
इसके अलावा इस बार के चुनावों में कांग्रेस की निगाहें उन राज्यों में ज्यादा हैं जहां उसका प्रदर्शन पिछले चुनावों में अच्छा नहीं रहा था.. और वहां या तो पार्टी का खाता भी नहीं खुला था या सिर्फ 1-2 सीट से ही पार्टी की संतोष करना पड़ा था.. लेकिन इस बार कांग्रेस इन राज्यों में अपना परचम लहराना चाहती है.. इसके लिए पार्टी की ओर से काफी मेहनत भी की गई है और चुनाव के दौरान का माहौल देखकर ऐसा लगता भी है कि उसकी मेहनत 4 जून को रंग लाने वाली है.. जिन राज्यों में कांग्रेस इस बार ज्यादा ध्यान देकर अपने प्रदर्शन में सुधार करना चाह रही है उनमें गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं.. जहां पिछली बार कांग्रेस जीरो या फिर एक-दो सीट पर ही सिमट गई थी.. हरियाणा में पिछली बार कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी.. इसलिए कांग्रेस को उत्तर में जहां खास उम्मीदें हैं उनमें महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, हरियाणा व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य माने जा रहे हैं.. महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी के बैनर तले लड़ रही कांग्रेस के इस बार अच्छा करने की काफी उम्मीदें हैं.. दरअसल, 2014 में उसे यहां से दो और पिछली बार एक सीट मिली थी.. लेकिन इस बार एनसीपी शरद पवार और शिवसेना यूबीटी के साथ मिलकर लड़ रही कांग्रेस को प्रदेश में काफी उम्मीदें हैं.. इसी तरह गुजरात, हरियाणा व राजस्थान में पार्टी अपना खाता खोलने की उम्मीद लगाए हुए है..
हरियाणा में किसानों की नाराजगी, महिला पहलवान का असंतोष और जाटों के गुस्से को पार्टी अपने पक्ष में माहौल मान रही है.. कांग्रेस मान रही है कि डबल इंजन की सरकार के प्रति लोगों का असंतोष उसकी नैया पार लगाएगा.. हरियाणा में तो ऐसी भी उम्मीद लगाई जा रही है कि कांग्रेस सभी सीटों पर हावी दिखाई पड़ रही है.. यहां भाजपा से लोगों में काफी नाराजगी है.. साथ ही कांग्रेस की तरफ माहौल भी है.. इसके अलावा कांग्रेस को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से भी काफी उम्मीदें हैं.. बेशक मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा था.. लेकिन उसे उम्मीद है कि मध्य प्रदेश में भाजपा के अंदर ही नाराजगी चल रही है.. इसके अलावा दलितों का शोषण हो रहा है, जिसका लाभ कांग्रेस उठा सकती है..
वहीं यूपी में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.. इस बार उत्तर प्रदेश में कई सीटों पर इंडिया गठबंधन बीजेपी को कड़ी टक्कर देते दिख रहा है.. ऐसे में प्रदेश की 17 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस को उम्मीद है कि यूपी में भी पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.. और सीटों में बड़ी बढ़त हालिस कर सकती है.. बिहार में कांग्रेस आरजेडी के साथ लड़ रही है, उसे लगता है कि जिस तरह नीतिश कुमार ने चुनाव से ऐन पहले पाला बदलकर वहां सरकार को अस्थिर किया.. इससे जमीन पर लोगों की सहानुभूति आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन के साथ है.. इसके अलावा बिहार में नीतीश का अब जमीन पर वो असर भी नहीं रहा है जो कुछ समय पहले तक होता था.. इसका लाभ भी कांग्रेस को ही मिलने की संभावना है.. कुछ ऐसी ही उम्मीद झारखंड से है, जहां इंडिया गठबंधन को लगता है कि सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से उपजी सहानुभूति उन्हें फायदा देगी..
कांग्रेस को इस बार अपने लिए बेहतर नतीजों की उम्मीद अगर बनी है तो उसके पीछे उसके अपनी रणनीति भी है.. इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस ने इस बार पूरी रणनीति और तैयारियों के साथ चुनाव लड़ा है.. पार्टी ने इस बार पूरे चुनाव के दौरान लगातार महंगाई, बेरोजगारी, संविधान बचाने जैसे बड़े मुद्दों को लेकर जनता से संवाद किया है.. और जनता से जुड़े मुद्दों को ही उठाया है.. फिर वो चाहे पार्टी के सीनियर लीडर राहुल गांधी या प्रियंका गांधी हों या फिर पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे.. पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस न सिर्फ जनता के बीच गई और उसके मुद्दों को उठाया बल्कि उसने पूरे चुनाव में लोगों से जुड़े असली मुद्दों को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ने की कोशिश भी की.. वह मुद्दों से भटकी नहीं.. जबकि पिछले दो चुनावों में ऐसा देखा गया था कि पार्टी बीजेपी व पीएम मोदी द्वारा सेट किए अजेंडे के बीच झूलती रही और प्रतिरक्षात्मक मोड में दिखी.. जबकि इस बार उसने अजेंडे सेट किए और पीएम मोदी व सत्तारूढ़ दल को जवाब देना पड़ा.. कांग्रेस के इस आत्मविश्वास के पीछे एक बड़ी वजह उसका अपना मेनिफेस्टो भी माना जा रहा है, जहां पांच सामाजिक न्याय और 25 गारंटियों के भरोसे वह लोगों के बीच गई.. इसलिए इस बार ऐसी पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस का साउथ के साथ-साथ नॉर्थ में भी बेहतर प्रदर्शन देखने को मिलेगा.. फिलहाल अब बस कल अंतिम चरण के मतादन के बाद 3 दिन के अंदर ये पता चल जाएगा कि किसका प्रदर्शन कैसा रहा है और जनता ने किसके वादों पर ज्यादा भरोसा जताया है.. फिलहाल तो कांग्रेस की आक्रामक रणनीति और जनता से जुड़ाव को देखकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस की सीटों में इस बार काफी बढ़ोत्तरी होने जा रही है.. और भाजपा भी इसी बात से काफी घबराई हुई है.. अब देखते हैं 4 जून को नतीजे क्या संदेश लेकर आते हैं..