दस साल बाद सदन को मिला नेता विपक्ष, राहुल के सामने मोदी की नहीं चलेगी मनमानी!
नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में कब तक प्रधानमंत्री रहेंगे... और किस तेवर के साथ काम करेंगे... यह अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर निर्भर करेगा... देखिए खास रिपोर्ट...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः लंबे समय से चल रहा इंतजार आखिरकार खत्म हो चुका है… दस साल के बाद मोदी को संसद में चुनौती देने वाला नेता प्रतिपक्ष मिला है… जो मोदी को भरे संसद में कड़ी चुनौती देगा… और मोदी अब सदन छोड़कर भाग नहीं पाएंगें… अब सभी कामों का जनता को हिसाब देना होगा… और इस बार सदन में मोदी की मनमानी नहीं चलेगी… बीजेपी और मोदी को जिस तरह से नीतीश और नायडू से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है… ठीक उसी तरह से इस बार संसद में मोदी को राहुल गांधी का सामना करना पड़ेगा… बता दें कि लंबे विचार विमर्श के बाद राहुल गांधी ने नेता प्रतिपक्ष बनने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया… जिसके बाद सदन में राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने का प्रस्ताव भेज दिया गया… वहीं काफी अरसे के बाद पीएम मोदी ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से सदन में हाथ मिलाया… बता दें कि इससे पहले जब कभी भी राहुल गांधी का मोदी से जिक्र किया जाता था… तो उनका साफ कहना होता था कौन राहुल… लेकिन आज भलीभांति मोदी को राहुल गांधी के बारे में पचा चल गया… मोदी को शहजादे ने हिला कर रख दिया… जिससे मोदी के चेहरे की चमक गायब हो गई है… वहीं अब पहले वाली बात और तेज मोदी में नहीं है… क्योंकि मोदी अब बैसाखी के सहारे आ गए… वहीं बैसाखी कब साथ छोड़ दें इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा सजा सकता है….
आपको बता दें कि बहुत लंबे समय के बाद अब सदन में मोदी को जवाब देना होगा.,… बिना जवाब दिए काम नहीं चलेगा… और किसी भी मुद्दे पर चुप्पी भारी पड़ जाएगी… यहीं सब सोचकर मोदी काफी चिंचित दिखाई भी दे रहें है… बता दें कि संसद के सत्र को शुरू हुए महज दो दिन हुए है… और दो ही दिनों में सदन का पूरा माहौल बदल गया है… वहीं राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने को लेकर इंडिया गठबंधन घटक दलों ने खुशी जाहिर की है… आपको बता दें कि राहुल के प्रस्ताव को स्वीकार करने को लेकर एनडीए में खलबली मची हुई है… वहीं आने वाले समय में सब साफ हो जाएगा… इस बार सदन में मोदी की मनमानी नहीं चलेगी… महज दो दिन बीते हैं, और संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही अपना अपना अंदाज… और तेवर दिखा दिये हैं… और ये कदम कदम पर देखने को मिला है…. लोकसभा स्पीकर का चुनाव से लेकर संविधान पर तकरार तक…. आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इंडिया गठबंधन का अघोषित रूप से अगुवाई कर रही थी… और अब नेता प्रतिपक्ष का नेता बनकर राहुल गांधी संसद में विपक्षी दलों का नेतृत्व कर रहे हैं… और स्पीकर का चुनाव सत्ता पक्ष से दो-दो हाथ करने से पहले आपसी जोर आजमाइश का भी जरिया बना है… वहीं ये तो तय था कि स्पीकर एनडीए का ही बनेगा…. लेकिन विपक्ष को भी अपनी मौजूदगी दर्ज करानी थी…. ऐसे तो नहीं जाने देंगे… वहीं लगे हाथ ये भी पता लगाने की कोशिश रही कि विपक्षी गठबंधन अभी ही लुढ़क तो नहीं गया… नतीजा जो होना था… वही हुआ बीजेपी और एनडीए के ओम बिरला फिर से लोकसभा के स्पीकर बन गये हैं….
वहीं इस बार नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में कब तक प्रधानमंत्री रहेंगे… और किस तेवर के साथ काम करेंगे… यह अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर निर्भर करेगा… बता दें कि पिछले दो बार से केंद्र में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिल रहा था…. लेकिन इस बार किसी तरह एनडीए को मिला है… ऐसे में मोदी को अपने कई एजेंडे किनारे रखने पड़ेंगे… बीजेपी को केवल दो सौ चालीस सीटों पर जीत मिली है… और बहुमत के लिए दो सौ बहत्तर का आंकड़ा चाहिए…. हालांकि एनडीए को दो सौ तिरानबे सीटें मिली… और मोदी बैसाखी के सहारे तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए है… आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी के लिए ये स्थिति बहुत सहज नहीं है…. बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले दो कार्यकाल में काफ़ी मज़बूत स्थिति में थे…. नरेंद्र मोदी के पास गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव भी नहीं है…. गुजरात में जब वह मुख्यमंत्री थे… तब भी प्रचंड बहुमत वाली सरकार थी…. हकीकत यह है कि बीजेपी की कमान मोदी के पास आने के बाद से एनडीए का कुनबा छोटा होता गया…. अकाली दल और शिव सेना बीजेपी के दशकों पुराने सहयोगी रहे थे… लेकिन दोनों बहुत पहले ही अलग हे गए… वहीं इस बार नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन तो गए… लेकिन मोदी को सरकार चलाने के लिए सबको साथ लेकर चलना होगा…. उनके सामने चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को अपने साथ लेकर चलना सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती होगी… ये दोनों नेता कब पलट जाएं कुछ कहा नही जा सकता है… आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी के दिल्ली आने के बाद नीतीश कुमार… और नायडू के संबंध बीजेपी से बहुत कड़वाहट भरे भी रहे हैं…. नायडू और नीतीश दो हजार चौदह में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर बीजेपी के विरोधी खेमे में रह चुके हैं… और इस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में वापसी की है….
वहीं इन सभी चुनौतियों का सामना मोदी इस बार सदन से लेकर प्रधानमंत्री पद तक कैसे कर पाएंगे इसका अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल है.,.. वहीं इन सभी चुनौतियों का पहले से सामना कर रहें नरेंद्र मोदी को अब सबसे अधिक डर राहुल गांधी की चुनौती का सता रहा है… कि सदन में राहुल गांधी के प्रहार का जवाब कैसे देंगे… क्योंकि इस बार विपक्ष काफी मजबूत स्थिति में है… और राहुल गांधी की सदन में पावर भी बढ़ी है… जिसको लेकर सत्ताधारी बीजेपी खेमें में खलबली मची हुई है… और मोदी परेशान दिख रहें है… उनके चेहरे साफ जाहिर होता है कि अब मोदी के चेहरे पर पहले जैसी चमक नहीं है… और पूरे विपक्ष में मोदी को अकेले दम पर राहुल गांधी ने समय-समय पर चुनौती दी है… और लोकसभा चुनाव दो हजार चौबीस में राहुल गांधी के दांव से मोदी चारों खाने चित हो गए हैं… उन्होंने जो सोंचा था उनका सपना राहुल गांधी ने पूरा नहीं होने दिया… और बीजेपी सहित मोदी की परेशानी को बढ़ा दिया है…
आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू… और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के प्रमुख सहयोगी दल हैं… और देखा जाये तो सरकार पर अंकुश रखने के लिए चाबुक भी उनके ही हाथों में है…. बीते दस साल की तरह आगे के पांच साल बिलकुल वैसे ही तो नहीं ही रहने वाले हैं…. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट साथियों के लिए अब कुछ भी कर पाना पहले जैसा आसान नहीं होगा….
नई सरकार का कोई भी बड़ा फैसला नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की सहमति से ही हो पाएगा…. ये भी करीब करीब वैसे ही होगा… जैसे एनडीए के सहयोगी दलों के दबाव में वाजपेयी-आडवाणी वाली बीजेपी राम मंदिर के एजेंडे पर पीछे हटकर बीच का रास्ता अपनाती थी…. और जिस अंदाज में बीजेपी नेताओं के भाषण हुआ करते थे…. बीजेपी का चुनाव घोषणा पत्र वैसा बिलकुल नहीं होता था…. वहीं नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का रोल ठीक नीतीश कुमार…. और चंद्रबाबू नायडू जैसा तो नहीं होगा…. लेकिन चैलेंज मिलता जुलता ही रहेगा…. वहीं राहुल गांधी और नीतीश-नायडू के एक्ट में एक बुनियादी फर्क ये होगा कि नीतीश और नायडू की भूमिका हमेशा ही सहयोगी होगी…. जबकि राहुल गांधी की भूमिका बात बात पर विरोध जताने वाली ही होगी और ये उनका हक भी है…. वहीं जब कभी भी नंबर की बात होगी…. नीतीश-नायडू की बदौलत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही भारी पड़ेंगे…. लेकिन राहुल गांधी विरोध की आवाज जरूर बने रहेंगे…. हासिल चाहे कुछ भी न हो… और लोकसभा स्पीकर का चुनाव इसकी बेहतरीन मिसाल है…
आपको बता दें कि हो सकता है राहुल गांधी का और भी ज्यादा आक्रामक रुख देखने को मिले…. और ये भी हो सकता है कि राहुल गांधी बहुत बदले बदले नजर आयें…. क्योंकि संसद और सड़क पर भाषण देने का तरीका बिलकुल अलग होता है…. वहीं स्पीकर के चुनाव के बाद राहुल गांधी ने जो कुछ भी बोला वो बिलकुल एक आदर्श भाषण कहा जाएगा…. लेकिन आगे भी ऐसा ही होगा…. सोचा भी नहीं जा सकता…. वहीं आने वाले दिनों में राहुल गांधी ज्यादा आक्रामक नजर आ सकते हैं… बता दें कि ओम बिरला की नई पारी का स्वाकत करते हुए विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि मैं आपको पूरे विपक्ष और इंडिया ब्लॉक की ओर से बधाई देना चाहता हूं… ये सदन देश लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है…. और आप उस आवाज के अंतिम निर्णायक हैं… सरकार के पास राजनीतिक ताकत है…. लेकिन विपक्ष भी भारत के लोगों की आवाज का ही प्रतिनिधित्व करता है… और इस बार विपक्ष ने पिछली बार की तुलना में लोगों की आवाज का काफी ज्यादा प्रतिनिधित्व पाया है…. और राहुल गांधी ने वादा किया कि विपक्ष आपके काम करने में आपकी सहायता करना चाहेगा… हम चाहते हैं कि सदन अक्सर और अच्छी तरह से काम करे… ये बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग विश्वास के आधार पर हो… ये भी अहम है कि विपक्ष की आवाज को इस सदन में प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाये….
वहीं ये तो अभी से ही साफ साफ नजर आ रहा है… कि विपक्ष का तेवर आगे कैसा रहने वाला है… नंबर गेम में पहले से ही तय था कि एनडीए का ही स्पीकर बनेगा…. लेकिन चुनाव की नौबत लाकर विपक्ष ने अपनी मजबूत हाजिरी लगाने की कोशिश की…. और हाथ में संविधान की कॉपी लिये संसद पहुंचे…. वहीं अभी से विपक्ष का आक्रामक रूख देखकर ऐसा लगता है कि मोदी को आने वाले समय में बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है… वहीं मोदी को राहुल के साथ-साथ नीतीश और नायडू की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा… और इस बार मोदी की मनमानी नहीं चलेगी… वहीं आगे और क्या-क्या देखने को मिलता है… यह तो आने वाला वक्त तय करेगा….