‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’

4PM न्यूज नेटवर्क: पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के लिए नैतिक कहानियों का एक शानदार संग्रह है जो सभी उम्र के बच्चों को मंत्रमुग्ध करने के साथ-साथ शिक्षित भी करती हैं। पंचतंत्र की कहानियों की खासियत ये है कि इसकी सभी दंतकथाएँ जानवरों पर आधारित हैं जो इंसानों की तरह बोलते और व्यवहार करते हैं। कहा जाता है कि पंचतंत्र की कहानियों की रचना एक राजा के नासमझ बेटों को ज्ञान देने के लिये की गई थीं। एक बंदर एक पेड़ पर रहता था जिस पर स्वादिष्ट जामुन (भारतीय ब्लैकबेरी) फल लगते थे। एक दिन एक मगरमच्छ आराम करने के लिए पेड़ के पास आया और बंदर ने उसे जामुन दिए। मगरमच्छ को जामुन बहुत पसंद आए और जल्द ही दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। वे अक्सर पेड़ के नीचे मिलते, बातें करते और जामुन खाते।

हरियाणा के चुनावों में ये कहानी सबको आ रही याद

इसी तरह आपने दो बिल्ली और एक बंदर की कहानी तो सुनी ही होगी, जिसमें एक रोटी को आपस में बांटने की लड़ाई में एक बंदर ने सुझाया था कि वह उनको रोटी बराबर-बराबर बांट कर दे देगा। पर वह कूटनीति से पूरी रोटी का स्वयं ही मालिक हो गया। कहानी ने संदेश दिया था कि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर को फायदा मिलना सहज है। इस बार हरियाणा के चुनावों में यह कहानी सबको याद आ रही है।

असफलता का ठीकरा

‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ कहावत का सार भी चुनाव खत्म होने पर हर बार याद आता है। यानी नाचना ठीक से खुद को नहीं आता और कमी निकालने लगते हैं कि आंगन ही उबड़-खाबड़ है। ऐसे में अध्यात्म शैली की अगर बात की जाए तो हमें अपनी कमी कभी देखनी ही नहीं आई। अंतर्मन में झांकने का सवाल ही नहीं।

एक अकुशल कारीगर हमेशा अपने औजारों के सिर ही अपनी असफलता का ठीकरा फोड़ता आया है। इन चुनावों में भी यही हुआ। हारने वालों ने बेचारी EVM के सिर पर इल्जामों का गट्ठर टिका दिया और EVM मशीनें  नेताओं की बेचारगी पर टुकुर-टुकुर मुस्कराने लगीं। वहीं एकाध ने तो चीख कर पूछ भी लिया होगा कि जहां तुम्हें बहुमत मिला है, वहां क्यों नहीं कहते कि हमारी जीत गलत है?

कुछ ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला

ऐसे में परंपरा तो यह थी कि हारो या जीतो, चुनाव के बाद जनता को थैंक यू कहा जाये पर वह रस्म अब पानी भरने जा चुकी। चुनावों के बाद अब तो सवाल दागे जाते हैं कि मेरे खाते के वोट इधर से उधर हुए तो कैसे हुए? लेकिन इन नेता नगरी को कैसे बताया जाए कि  ये कोई बैंक का खाता तो है नहीं कि जितने भी काले-पीले पैसे हम जमा करवायेंगे, हमेशा हमारे ही रहेंगे। वोट तो वो धन है जो खिसकने में क्षण भी नहीं लगाता। जैसे ही नेताओं में अहंकार, भ्रष्टाचार या अन्य विकार दिखाई देता है, वोट मिल्खा सिंह की स्पीड से भागने लगते हैं।

एक सेना के योद्धा यदि आपस में ही टकरायेंगे और राह का कांटा समझकर निकालने का दुस्साहस करेंगे तो सामने वाला उनकी कीकर जड़ से उखाड़ फेंकने में देरी क्यूं करेगा। कहा जाता है कि प्राचीन काल में भी कई बार हाथी अपनी ही सेना को रौंद दिया करते। इस बार भी कुछ ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला है।

https://www.youtube.com/watch?v=dlRgX3N0zXI

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