झालावाड़ में कई बच्चों की मौत के कुछ घंटे बाद शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का ढोल-नगाड़ों से स्वागत, उठे सवाल

मदन दिलावर ने कहा कि वह आदिवासी बच्चों के छात्रावास के एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. वहां बच्चे और स्टाफ पारंपरिक ढंग से ढोल बजाकर उनका स्वागत करना चाह रहे थे,

4पीएम न्यूज नेटवर्क: राजस्थान के झालवाड़ जिले में स्कूल की छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई।

इस हादसे के कुछ ही घंटों बाद राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का एक कार्यक्रम में ढोल-नगाड़ों और फूल मालाओं से स्वागत किया गया। यह दृश्य कैमरे में कैद हुआ और जैसे ही वीडियो सोशल मीडिया और जनमानस में तीखी प्रतिक्रयाएं शुरू हो गईं।

छात्रावास के कार्यक्रम में हुए थे शामिल
मदन दिलावर ने कहा कि वह आदिवासी बच्चों के छात्रावास के एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. वहां बच्चे और स्टाफ पारंपरिक ढंग से ढोल बजाकर उनका स्वागत करना चाह रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने ढोल बजते देखे, उन्होंने तुरंत उसे रुकवा दिया.

36 सालों से नहीं पहनी माला
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि फूलों की पंखुड़ियां भी बरसाई जा रही थीं, जिसे उन्होंने वहीं रोक दिया. उन्होंने जोर देकर कहा कि वह पिछले 36 वर्षों से माला नहीं पहनते और अगर किसी ने यह दावा किया है कि उन्हें माला पहनाई गई, तो वह गलत है. उन्होंने कहा कि मैंने संकल्प लिया है, जब तक भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में उनका भव्य मंदिर नहीं बन जाता, तब तक मैं माला नहीं पहनूंगा.

मंत्री ने यह भी कहा कि वह हादसे से दुखी हैं और उनकी संवेदनाएं पीड़ित परिवारों के साथ हैं. लेकिन इस सफाई के बावजूद सवाल खत्म नहीं हो रहे. सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब मृत बच्चों का अंतिम संस्कार तक नहीं हुआ था, तब मंत्री को भरतपुर के उस स्वागत कार्यक्रम में जाने की क्या इतनी बड़ी मजबूरी थी?

मंत्री के दावे और जमीनी हकीकत के बीच बड़ा विरोधाभास भी सामने आया है. भरतपुर से जो वीडियो सामने आया है, उसमें कहीं भी मंत्री को ढोल या फूलों को रोकते हुए नहीं देखा गया. ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या मंत्री इस संवेदनशील वक्त पर सिर्फ अपनी छवि बचाने में जुटे हैं.

विपक्ष ने भी इस मामले को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. कई नेताओं ने कहा कि जब राज्य में ऐसी दर्दनाक घटना हुई हो, तब एक संवेदनशील मंत्री का पहला कर्तव्य शोक में डूबे परिवारों के साथ खड़ा होना होना चाहिए, न कि स्वागत समारोहों में शामिल होना.

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