AAP ने BJP की बढ़ाई धुकधुकी, मोदी के दौरे का भी नहीं दिख रहा असर
दिल्ली से शुरू हुई आप की राजनीति ने गुजरात की ओर रूख कर दिया है... केजरीवाल ने पंजाब में सरकार बनाने के बाद अब गुजरात...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारतीय राजनीति में हवा का रुख बदलना कोई नई बात नहीं है.. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा.. और उसके गठबंधन एनडीए ने हाल ही में बिहार विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की है.. वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की आंधी अभी भी कुछ राज्यों में गूंज रही है.. दिल्ली में AAP को 2025 के विधानसभा चुनाव में करारी हार मिली.. लेकिन पंजाब में उसकी पकड़ बरकरार है.. इसी तरह आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण झारखंड जैसे राज्यों में भाजपा के लिए सिरदर्द बन गया है.. जबकि किसानों की नए बीज विधेयक और बिजली संशोधन पर बगावत पूरे देश में जारी है.. क्या ये मुद्दे मोदी सरकार की चिंता बढ़ा रहे हैं.. क्या भाजपा का वोट बैंक डगमगा रहा है..
आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी की शुरुआत ही एक तूफान के रूप में हुई थी.. 2013 में दिल्ली में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने वाली AAP ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली-पानी जैसे मुद्दों पर वादे किए थे.. लेकिन 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों ने इस आंधी को रोक दिया.. 8 फरवरी 2025 को हुए चुनावों में भाजपा ने 70 सीटों वाली विधानसभा में 48 सीटें जीत लीं.. जबकि AAP को महज 22 मिलीं.. यह AAP के लिए 27 साल बाद भाजपा की वापसी का संकेत था.. अरविंद केजरीवाल खुद नई दिल्ली सीट से लड़े और हार गए..
फिर भी, AAP की हार ने मोदी सरकार को पूरी राहत नहीं दी.. पंजाब में AAP की सरकार बरकरार है.. और हाल ही में तरन तारन उपचुनाव में AAP ने जीत हासिल की.. केजरीवाल ने इसे पंजाब की काम की राजनीति का प्रमाण बताया.. पंजाब में AAP का वोट शेयर 2022 के 42% से थोड़ा कम हुआ.. लेकिन फिर भी मजबूत स्थिति में है.. जिसको लेकर राजनीतिक जानकार मानते हैं कि दिल्ली हार के बावजूद AAP का पंजाब मॉडल.. जहां किसानों और युवाओं पर फोकस करता है.. जो आगामी चुनावों में आप को फायदा पहुंचाएगा..
बता दें कि AAP का विस्तार दिल्ली-पंजाब से बाहर भी हो रहा है.. जुलाई 2025 में AAP ने इंडिया गठबंधन छोड़ दिया.. ताकि पंजाब और गुजरात में अकेले चुनाव लड़े.. गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनावों में AAP को 12% वोट मिले थे.. जो भाजपा के लिए खतरा बना… 2027 के गुजरात चुनाव में AAP फिर पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी हुई है.. हरियाणा में भी AAP ने संगठन मजबूत किया है.. जहां 2024 के लोकसभा चुनावों में उसका वोट शेयर 6% रहा… लेकिन हरियाणा विधानसभा में भाजपा की जीत ने AAP को झटका दिया…
मोदी सरकार के लिए AAP की चिंता राष्ट्रीय स्तर पर है.. AAP का एंटी-करप्शन एजेंडा और वेलफेयर स्कीम्स विपक्ष को एकजुट करने का हथियार बन सकते हैं.. दिल्ली हार के बाद केजरीवाल ने कहा कि हमारी लड़ाई जारी रहेगी.. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि AAP का राष्ट्रीय वोट शेयर 2024 लोकसभा में महज 0.9% था.. फिर भी पंजाब-गुजरात जैसे राज्यों में यह आंधी भाजपा को सताती रहेगी.. कुल मिलाकर AAP की ताकत अब क्षेत्रीय है.. लेकिन मोदी की चिंता बढ़ाने का दम रखती है..
भारत की राजनीति में आदिवासी वोट एक बड़ा फैक्टर हैं.. देश की 8% आबादी आदिवासी है.. और झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह 25-30% तक है.. भाजपा ने 2014 से ‘ट्राइबल आउटरीच’ पर जोर दिया.. लेकिन 2025 में झारखंड चुनावों ने दिखा दिया कि भाजपा का आदिवासी समर्थन डगमगा रहा है…
झारखंड विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने 81 सीटों में 56 जीतीं.. भाजपा को महज 21 मिलीं.. हेमंत सोरेन की JMM ने आदिवासी इलाकों में साफ जीत हासिल की.. डेटा दिखाता है कि आदिवासी-गैर आदिवासी विभाजन साफ था.. JMM को 70% आदिवासी वोट मिले.. जबकि भाजपा ट्राइबल बेल्ट में कमजोर पड़ी.. हाल ही के घटसीला उपचुनाव में JMM के सोमेश चंद्रा सोरेन ने भाजपा के बाबूलाल सोरेन को 36,000 वोटों से हराया.. पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कहा कि भाजपा आदिवासियों को अपनी लड़ाई के लिए राजी नहीं कर पाई..
झारखंड के अलावा असम में भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ीं.. 2025 असम चुनावों से पहले छह जातीय समुदायों ने अनुसूचित जनजाति दर्जा मांगा.. जबकि मौजूदा आदिवासी समूह बीजेपी से नाराज है… बता दें कि भाजपा की डबल इंजन सरकार को लेकर आदिवासियों में असंतोष है.. जमीन अधिग्रहण और विकास के नाम पर भी असंतोष बढ़ा है.. बिहार में हाल ही के चुनावों में एनडीए ने भारी जीत हासिल की… लेकिन आरजेडी का वोट शेयर टॉप रहा.. बिहार के आदिवासी इलाकों में JMM जैसी पार्टियां मजबूत हैं.. और एनडीए की जीत महिलाओं और ऊपरी जातियों पर टिकी हुई है..
मोदी सरकार ने आदिवासी कल्याण के लिए कई कदम उठाए.. और 2025 तक 1.5 करोड़ आदिवासी घरों को पीएम आवास योजना का लाभ मिला.. लेकिन आलोचक कहते हैं कि ये ‘टोकनिज्म’ हैं.. झारखंड जैसे राज्यों में PESA कानून का पालन न होने से आदिवासी समाज नाराज है… 2025 में JMM की जीत ने दिखाया कि आदिवासी वोट भावनात्मक मुद्दों पर जाते है.. जैसे जमीन अधिकार और संस्कृति आधार पर जाते हैं.. भाजपा को अब ट्राइबल लीडर्स से गठजोड़ बढ़ाने होंगे.. वरना 2026 के असम-केरल चुनावों में मुश्किल होगी…
खबरों के मुताबिक आदिवासी समुदाय भाजपा से दूर हो रहे हैं.. कुल मिलाकर, आदिवासी वोट भाजपा से दूर जा रहे हैं.. लेकिन बिहार जैसी जीत ने संतुलन बनाया है.. वहीं ये ध्रुवीकरण राष्ट्रीय स्तर पर फैली तो मोदी की चिंता और भी बढ़ सकती है.. किसान भारत की रीढ़ हैं.. लेकिन 2025 में उनकी बगावत फिर जोर पकड़ रही है.. 2020-21 के ऐतिहासिक आंदोलन ने तीन कृषि कानूनों को रद्द कराया.. लेकिन MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की मांग अधर में लटकी है.. अब ड्राफ्ट सीड्स बिल 2025 और बिजली संशोधन विधेयक को लेकर किसान सड़कों पर हैं…



