गहलोत और पायलट के बीच आग में घी डाल रहे आचार्य!
हिमाचल की जीत और गुजरात की हार पर प्रमोद कृष्णम ने दिया विवादित बयान
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कांग्रेस को हिमाचल में जहां जीत मिली है, तो वहीं गुजरात में करारी हार का सामना करना पड़ा है। इन दोनों राज्यों में अलग-अलग परिणाम से एक बार फिर इन राज्यों से इतर राजस्थान की सियासत गर्मा गई है। वहीं, कहीं न कहीं एक बार फिर कांग्रेस में गुटबाजी भी सामने आई है।
कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृण्णम ने हिमाचल की जीत और गुजरात की हार को राजस्थान से जोड़ते हुए ट्वीट किया कि युवा नेता सचिन पायलट हिमाचल के ऑब्जर्बर थे और हमारे अनुभवी नेता अशोक गहलोत गुजरात के, आगे मुझे कुछ नहीं कहना। दरअसल, सचिन पायलट को हिमाचल का स्टार प्रचारक बनाया गया था। यहां कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल करते हुए राज्य में अपनी सरकार बनाई। वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जहां कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में अब आचार्य प्रमोद कृष्णम का इस तरह का बयान गुजरात सियासत और पायलट व गहलोत के बीच आग में घी डालने का काम करेगा। आचार्य प्रमोद ने इशारों-इशारों में सीएम गहलोत के फेल्योर को सामने रखा है और सचिन पायलट को हिमाचल की जीत का श्रेय दिया है। इससे पहले भी प्रमोद कृष्णम कई बार सचिन पायलट को राजस्थान का सीएम बनाने की मांग कर चुके हैं।
दूसरी ओर गुजरात चुनावों में हार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रदेश प्रभारी रघु शर्मा ने इस्तीफा सौंप दिया है। वहीं गुजरात में हार पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बयान दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा भले ही गुजरात में चुनाव जीत गई हो लेकिन वहां भारी सरकार विरोधी रुझान देखा गया, जिसका मतलब है कि कांग्रेस कहीं जिंदा है। हमें खुशी है कि सिद्धांतों और विचारधारा की लड़ाई कांग्रेस जीत गई है। हालांकि, गुजरात की हार को लेकर कई राजनीतिक जानकार गहलोत को भी इसका जिम्मेदार मान रहे हैं। क्योंकि जिस समय गहलोत की गुजरात में जरूरत थी, वो उस समय राजस्थान के सियासी घमासान में घिरे थे। जो कहीं न कहीं गहलोत का ही किया धरा था।
शिवपाल के कार्यालय से उतरा प्रसपा का झंडा ट्वीटर का बायो भी बदला
कार्यालय को बनाया शिविर कैंप
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। मैनपुरी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद अब एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का परिवार एक होता नजर आ रहा है। इसकी एक झलक कल उस समय देखने को मिली, जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव यादव की पत्नी डिंपल यादव ने मुलायम सिंह यादव की मौत के बाद खाली हुई मैनपुरी चुनाव के उपचुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की।
इस जीत के साथ ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पुराने सारे गिले-शिकवों को भुलाकर एक-दूसरे को गले लगा लिया। इसके साथ ही शिवपाल यादव ने अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय करने का ऐलान भी कर दिया। तुरंत ही अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को साइकिल का झंडा थमाकर पार्टी में उनका स्वागत किया। आज शिवपाल यादव ने प्रसपा के कार्यालय से पार्टी का झंडा उतार दिया। जिसके साथ ही अब ये कार्यालय शिविर कैंप के नाम से जाना जाएगा। इतना ही नहीं शिवपाल यादव ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर भी अपने बायो में खुद को समाजवादी पार्टी का नेता लिख दिया है। इससे अब ये साफ हो गया है कि चाच-भतीजा के बीच की सारी तल्खियां अब खत्म हो गईं हैं और मुलायम परिवार एक बार फिर एक हो गया है।
प्रसपा का सपा से विलय होते ही अखिलेश ने चाचा शिवपाल का पार्टी में स्वागत करते हुए कहा कि उनकी पार्टी का विलय होने से समाजवादी पार्टी की ताकत बढ़ेगी।
प्रदेश में तीन आईएएस अफसरों के तबादले
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों के तैनाती स्थल में फेरबदल का क्रम लगातार जारी है। इसी क्रम में आज एक बार फिर 3 आईएएस अफसरों के तबादले किए गए। नए तबादलों में समाज कल्याण निदेशक राकेश कुमार को हटा दिया गया। अब राकेश कुमार को विशेष सचिव राजस्व बनाया गया है। इसके अलावा खेमपाल सिंह को सचिव परिवहन और रामनारायण यादव को विशेष सचिव सचिवालय प्रशासन नियुक्त किया गया है।
लखीमपुर हिंसा के पीडि़तों को इंसाफ तो दूर मुआवजा भी नहीं
जयंत चौधरी ने राज्यसभा में उठाया मुद्दा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। राज्यसभा में आज लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में मृतकों के परिजनों को मिलनी वाली सरकारी नौकरी और घायल किसानों को 10 लाख रुपये के मुवाजे में देरी का मुद्दा उठाया गया। शून्यकाल के दौरान रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने उच्च सदन में इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्र सरकार से इस दिशा में समुचित कदम उठाने की मांग की।
जयंत ने कहा कि एक दिसंबर, 2021 को ‘लखीमपुर नरसंहारÓ ने देश के किसानों को झकझोर कर रख दिया था, जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई थी। उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश की सरकार ने आश्वासन दिया था कि घायलों को 10 लाख रुपये का मुआवजा और चार मृतक किसानों के परिजनों में से एक को सरकारी नौकरी दी जाएगी। इस घटना को एक साल बीत चुका है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। चौधरी ने इस दिशा में उचित कदम उठाने की मांग करते हुए सवाल उठाया कि सरकार यदि वादे पूरे न करे तो जनता क्यों उस पर विश्वास करे? इसके अलावा भी विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा उच्च सदन में कई मुद्दे उठाए गए।
बिहार में महागठबंधन को झटके पे झटका
गोपालगंज में राजद तो कुढऩी में बीजेपी ने जदयू को दी करारी शिकस्त
नीतीश के मिशन 2024 के लिए शुभ संकेत नहीं हैं उपचुनाव के नतीजें
विधानसभा की तीन में से दो सीटों पर मिल चुकी है करारीे हार
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। बिहार में उपचुनाव के नतीजों ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठजोड़ को दूसरा बड़ा झटका दिया है। बता दें कि, राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद विधानसभा की तीन सीटों पर चुनाव हुए हैं, जिनमें से दो सीट भाजपा की झोली में गई हैं। गोपालगंज में जहां महागठबंधन की लालटेन नहीं जली वहीं, कुढऩी में जदयू का तीर भी कमान से नहीं निकल सका। ऐसे में बिहार के महागठबंधन की ताकत बढऩे के बजाए कमजोर होती दिखने लगी है, जो मिशन 2024 के लिहाज से प्रधानमंत्री की रेस के दावेदार नीतीश कुमार के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।
महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नए समीकरणों की पहली परीक्षा मोकामा और गोपालगंज विधानसभा सीट के उपचुनाव में हुई थी। इसमें मोकामा सीट पर महागठबंधन के दल राजद ने जीत दर्ज की थी, लेकिन उसे गोपालगंज में भाजपा के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी। महागठबंधन के दूसरे साथी जदयू हाल भी राजद की तरह ही कुढऩी विधानसभा उपचुनाव के गुरुवार को आए नतीजों में देखा गया है। राजद से अधिक अंतर से जदयू कुढऩी में भाजपा के हाथों पराजित हुई है। गोपालगंज में जहां करीब 2200 मतों से तेजस्वी के दल को शिकस्त में मिली थी, वहीं, नीतीश की पार्टी जदयू को कुछ समय बाद ही 3649 मतों से हार झेलनी पड़ी है। बिहार में महागठबंधन का यह हाल तब है जब जदयू, राजद, कांग्रेस के साथ ही कम्युनिस्ट पार्टियां एक साथ सरकार में शामिल हैं। बावजूद इसके पहले राजद और अब जदयू की करारी हार महागठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सत्ता में बैैठें दलों को सूबे की जनता की नब्ज टटोलने के साथ ही नए सिरे से रणनीति बनाकर काम करना होगा। क्योंकि महागठबंधन को उपचुनाव में भाजपा से मिला दूसरा झटका किसी सदमे से कम नहीं है।