यूपी के नये नायक बनकर उभरे अखिलेश भाजपा हुई पसीने-पसीने

सपा प्रमुख की कुशल रणनीति व सोशल इंजीनियरिंग का दिखा असर

लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन

37 सीटें जीतकर सपा बनी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी

 4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। देश के लोकतंत्र का महापर्व अब पूरा हो चुका है। जनता ने अपना जनादेश सुना दिया है। इस जनादेश से सत्ताधारी दल भाजपा को तगड़ा झटका लगा है और अबकी बार 400 पार की उम्मीदें लेकर चल रही बीजेपी 250 के आंकड़े को भी तरस गई है। बीजेपी को इस बार सबसे अधिक झटका देश में सर्वाधिक सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में लगा है, जहां उसे सबसे अधिक उम्मीद थी। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और 37 लोकसभा सीटें जीतकर देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। अखिलेश यादव की कुशल रणनीति ने उन्हें उत्तर प्रदेश का नायक बना दिया। आलम ये हो गया कि जिस उत्तर प्रदेश में भाजपा सबसे अधिक उम्मीदें पाले बैठी थी और खुद को अजेय मानकर चल रही थी, उसी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अखिलेश यादव ने ऐसी पटखनी दी कि बीजेपी पसीने-पसीने हो गई।
ये प्रदर्शन समाजवादी पार्टी का लोकसभा चुनाव के इतिहास में उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन है। ये जीत अखिलेश के नेतृतव और कुशल रणनीति की देन है। सपा के लिए ये जीत इसलिए भी और अहम हो जाती है क्योंकि ये सपा संस्थापक मुलायस सिंह यादव के बिना पहला लोकसभा चुनाव था और सारा का सारा दारोमदार सिर्फ और सिर्फ अखिलेश यादव के ही कंधों पर था। ऐसे में अखिलेश ने अपनी सूझ-बूझ के साथ इस चुनाव में भाजपा को घेरा और उसके सबसे मजबूत किले में ही उसे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। धार्मिक मुद्दों के बजाय जातीय गोलबंदी और यादवों-मुस्लिमों पर कम दांव की रणनीति से सपा को यह सफलता मिली। निश्चित ही इस जीत के बाद अखिलेश यादव का कद देश की राजनीति में बढ़ेगा।

गठबंधन के तहत 62 सीटों पर लड़ा चुनाव

राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया। सपा ने गठबंधन के तहत 62 सीटों पर चुनाव लड़ा। 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट तृणमूल कांग्रेस को दी। सीट शेयरिंग की यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई। कांग्रेस के साथ साझेदारी करने के चलते सपा मतदाताओं को यह मनोवैज्ञानिक संदेश देने में सफल रही कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प मौजूद है।

लोहिया की जन्म स्थली पर लहराया समाजवादी परचम

अखिलेश यादव की सूझ-बूझ और कुशल रणनीति से ही इस बार सपा ने प्रख्यात समाजवादी डॉ. राममनोहर लोहिया की जन्म स्थली अकबरपुर पर लोकसभा के चुनाव में पहली बार समाजवादी परचम लहराया। इससे पहले लोकसभा उपचुनाव में यहां सपा प्रत्याशी शंखलाल मांझी की जीत हुई थी लेकिन लोकसभा के सामान्य चुनाव में तमाम कोशिशों के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही थी। अब सपा के हिस्से में दशकों से चला आ रहा सूखा दूर हुआ है। समाजवाद के प्रणेता रहे डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म अकबरपुर में ही हुआ था। लोकसभा उपचुनाव में एक बार सपा प्रत्याशी शंखलाल मांझी को जीत मिली, तब यह सीट अकबरपुर सुरक्षित के नाम थी। इस जीत से पहले या बाद के चुनाव में सपा जीत के लिए तरसती रही। वर्ष 2009 में जब परिसीमन के बाद अंबेडकरनगर सामान्य लोकसभा सीट का गठन हुआ तब हुए चुनाव में सपा प्रत्याशी बसपा के राकेश पांडेय से हार गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा के राममूर्ति वर्मा तीसरे स्थान पर रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के चलते सपा ने यहां बसपा प्रत्याशी रितेश पांडेय का साथ दिया।

आम जनता से जुड़े रहे सपा प्रत्याशी

इस बार चुनाव में सपा से उतरे लालजी वर्मा ने शुरू से ही अत्यंत प्रभावी अंदाज में चुनाव अभियान की कमान स्वयं संभाली। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव व महासचिव शिवपाल यादव के दौरे के अलावा उन्होंने अन्य ताम झाम पर जोर नहीं दिया। वे सिर्फ मतदाताओं व कार्यकर्ताओं को सहेजने में जुटे रहे। सपा में राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे लालजी वर्मा ने आम लोगों से अंतिम चुनाव लडऩे की बात कहकर भावनात्मक अपील भी की थी। इन सबका असर यह हुआ कि सत्तारूढ़ दल की तमाम ताकत के बीच भी लालजी वर्मा जिले में पहली बार लोकसभा चुनाव में सपा का परचम लहराने में कामयाब रहे। इस जीत के साथ ही दशकों से लोहिया की धरती पर चला आ रहा संसदीय चुनाव का सूखा भी दूर हो गया।

ये जनता की जीत है, शासक की नहीं: अखिलेश

उत्तर प्रदेश में सपा की शानदार जीत से उत्साहित सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रदेश की जनता का आभार जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रिय ‘उप्र के समझदार मतदाताओं’ उप्र में इंडिया गठबंधन की ‘जन-प्रिय जीत’ उस दलित-बहुजन भरोसे की भी जीत है जिसने अपने पिछड़े, अल्पसंख्यक, आदिवासी, आधी आबादी और अगड़ों में पिछड़े सभी उपेक्षित, शोषित, उत्पीडि़त समाज के साथ मिलकर उस संविधान को बचाने के लिए कंधे-से-कंधा मिलाकर संघर्ष किया है जो समता-समानता, सम्मान-स्वाभिमान, गरिमामय जीवन व आरक्षण का अधिकार देता है। ये पीडीए के रूप में पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक-आदिवासी, आधी आबादी और अगड़ों में पिछड़े के उस मजबूत गठजोड़ की जीत है, जिसे हर समाज और वर्ग के अच्छे लोग अपने सहयोग व योगदान से और भी मजबूत बनाते हैं। ये नारी के मान और महिला-सुरक्षा के भाव की जीत है। ये नवयुवतियों-नवयुवकों के सुनहरे भविष्य की जीत है। ये किसान-मजदूर-कारोबारियों-व्यापारियों की नयी उम्मीदों की जीत है।ये सर्व समाज के सौहार्द-प्रिय, समावेशी सोचवाले समता-समानतावादी सकारात्मक लोगों की सामूहिक जीत है। ये निष्पक्ष, निष्कलंक मीडिया के निरंतर, अथक, निर्भय, ईमानदार प्रयासों की जीत है। ये संविधान को संजीवनी मानने वाले संविधान-रक्षकों की जीत है।
ये लोकतंत्र के हिमायती-हिम्मती लोगों की जीत है। ये गरीब की जीत है। ये सकारात्मक राजनीति की जीत है। ये इंडिया की टीम और पीडीए की रणनीति की जीत है। प्रिय मतदाताओं आपने साबित कर दिया है कि जनता की शक्ति से बड़ा न किसी का बल होता है, न किसी का छल। इस बार जनता ही जीती है, शासक नहीं।

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