क्या फिर बन रहें विश्व युद्ध के हालात !
4PM न्यूज नेटवर्क: दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी में से अगर बात की जाए तो यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी में हुआ परमाणु बम हमला था। 6 अगस्त 1945 को हुए इस हमले में अनुमानित तौर पर हिरोशिमा में 140,000 लोगों की और नागासाकी में 74,000 लोगों की जान गई थी। इस घटना के कई सालों बाद भी इसका प्रभाव देखा गया और विकिरण के कारण ल्यूकेमिया, कैंसर या अन्य भयानक दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ा।
हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले के आठ दशक बाद भी उठे सवाल
ऐसे में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले के आठ दशक बाद भी सवाल उठते हैं कि क्या समूचे विश्व ने उन परमाणु हमलों से उत्पन्न विभीषिका से सबक लिया? क्या विश्व की तमाम महाशक्तियों सहित छोटे-छोटे देशों ने युद्ध को रोकने जैसा कोई कदम उठाया है? 6 अगस्त, 1945 और 9 अगस्त, 1945 को अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम से अनुमानित रूप में ढाई लाख नागरिक मारे गए थे।
ऐसी ही युद्ध की और भी कई विभीषिकाएं हैं। लेकिन विश्व समुदाय ने सबक लेने की कोशिश नहीं की। विश्व की तमाम स्वयंभू महाशक्तियों, शक्तियों द्वारा यदि युद्ध रोकना, संघर्ष न होने देना ही उद्देश्य होता तो आज सम्पूर्ण विश्व पुनः विश्व युद्ध जैसी स्थिति के मुहाने पर आकर न खड़ा हो गया होता।
दो वर्ष से अधिक समय से चलता आ रहा रूस-यूक्रेन युद्ध
विश्व में किसी भी महाद्वीप की तरफ नजर उठाई जाये, किसी भी क्षेत्र की तरफ देखा जाये, किसी भी देश की स्थिति का आंकलन किया जाये वहां संघर्ष, युद्ध, तनाव, हिंसा ही दिखाई दे रही है। दो वर्ष से अधिक समय से चलता आ रहा रूस-यूक्रेन युद्ध, पिछले एक वर्ष से चलता इस्राइल-हमास युद्ध के साथ ही आरम्भ हुआ इस्राइल-ईरान टकराव समूचे विश्व का ध्यान अपनी तरफ बनाये हुए हैं। विश्व की तमाम महाशक्तियां आए दिन किसी न किसी रूप में इन युद्धों में अपनी उपस्थिति दर्शा ही देती हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जापान के हिरोशिमा में 90 प्रतिशत चिकित्सक और नर्स मारे गए या घायल हो गए थे और 45 में से 42 अस्पताल काम नहीं कर रहे थे। 70 प्रतिशत पीड़ितों को कई चोटें आईं थी, जिनमें से ज़्यादातर मामलों में गंभीर जलन भी शामिल थी। दुनिया भर में सभी समर्पित बर्न बेड किसी भी शहर पर एक भी परमाणु बम के जीवित बचे लोगों की देखभाल के लिए अपर्याप्त थे। हिरोशिमा और नागासाकी में ज्यादातर पीड़ितों की मृत्यु बिना किसी देखभाल के हुई। इतना ही नहीं इस परमाणु बम हमला के बाद सहायता प्रदान करने के लिए शहर में आए कई वालिंटियर भी विकिरण की वजह से मारे गए थे।
दक्षिण एशिया क्षेत्र विगत लम्बे समय से बना हुआ अशांत
वहीं अगर रूस-यूक्रेन युद्ध की बात की जाए तो परमाणु हमले की आशंका तक नजर आने लगती है। इन युद्धों के अलावा दक्षिण एशिया क्षेत्र विगत लम्बे समय से अशांत बना हुआ है। यहां दो देशों के बीच भले ही वर्तमान में युद्ध न चल रहा हो किन्तु स्थितियां युद्ध से कम नहीं हैं। भारत के अनेक पड़ोसी देशों से होने वाली आतंकी घटनाएं एक तरह का युद्ध ही है।
हाल के समय में पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, बांग्लादेश आदि की सत्ता परिवर्तन की घटनाएं, कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा अपनी जान बचाकर देश छोड़ने की घटनाएं, इन देशों में आंतरिक हिंसात्मक घटनाएं यहां के नागरिकों को युद्ध की तरफ ही धकेलती है। ऐसे में हैरान कर देने वाली बात ये है कि आए दिन किसी न किसी कार्यक्रम, समारोह के द्वारा शांति, अहिंसा, प्रेम, सद्भाव आदि का पाठ पढ़ाने वाले देश, युद्ध की विभीषिका से परिचित करवाते अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठन क्यों अपने प्रयासों में विफल हो जाते हैं?