राजस्थान के रण में भाटी, दिग्गजों की उड़ी नींद !

राजस्थान से निर्ददलीय लड़ रहे रविंद्र भाटी ने दिग्गजों की नींद उड़ा ही है... चारों तरफ रविंद्र भाटी के नाम की चर्चा जोरों पर है... देखिए खास रिपोर्ट...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है… और पहले चरण की वोटिंग के लिए कल मतदान होना है… वहीं पहले चरण में जीत सुनिश्चित करने के लिए सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है… इसी कड़ी में राजस्थान से निर्दलीय लड़ रहे रविंद्र भाटी ने दिग्गजों की नींद उड़ा ही है… चारों तरफ रविंद्र भाटी के नाम की चर्चा जोरों पर है… जैसे-जैसे रेगिस्तान का तापमान ऊंचाई पर पहुंच रहा है… ठीक उसी तरह से भाटी की लोकप्रियता सातवें आसमान पर है… जिसको देखते हुए राजास्थान के दिग्गजों का हाल बेहाल हो गया है… बता दें कि राजस्थान फतेह करने की बात करने वाले लोग भाची की लोकप्रियता से हैरान हो गए है…

वहीं आज कल जिस तरह से राजनीति में पैसे का ज़ोर बढ़ा है…. उसे देखते हुए क्या कोई कल्पना कर सकता है…. कि एक सरकारी स्कूल के शिक्षक का बेटा राजस्थान के सभी ताक़तवर नेताओं को चंद दिनों के अंदर अपनी राजनीतिक लोकप्रियता से हैरान कर देगा…. वह भी तब, जब वह निर्दलीय चुनाव लड़ रहा हो…. जीं हां पश्चिमी राजस्थान के बॉर्डर वाले इलाके में जहां रेत के धोरों पर हर वक़्त ख़ामोशियां झांकती हैं…. और जहां उम्मीद की खिड़कियां जानें कितनी सदियों से बंद हैं…. वहां आज गली-गली में रवींद्र सिंह भाटी के नाम का शोर है… वहीं बाड़मेर तो बाड़मेर, गुजरात के सूरत जैसे शहर हों या महाराष्ट्र का पुणे, हर नज़र इस युवा चेहरे के दीदार के लिए बेचैन दिखता है…. बता दें पिछले दिनों भाटी इन दोनों राज्यों के कई शहरों में प्रवासी राजस्थानी मतदाताओं से संपर्क साधने के लिए पहुंचे थे… जहां पर इनकी लोकप्रियता ने अपना अलग ही जलवा बिखेर दिया… जिसको देखकर सभी दिग्गजों की सांसे अटक गई…

वहीं विधानसभा चुनावों में बाड़मेर ज़िले की शिव सीट से कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों को पराजित कर राजस्थान की राजनीति में उभरे रवींद्र सिंह भाटी पहेली बनते नज़र आ रहे हैं…. वैसे तो बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र में तीन प्रमुख उम्मीदवार भाजपा के कैलाश चौधरी, जो केंद्र में कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री हैं…. कांग्रेस के उम्मेदाराम, जो विधानसभा चुनाव में राजस्थान लोकतांत्रिक पार्टी के टिकट पर कांग्रेस के हरीश चौधरी के सामने बायतू से नौ सौ दस वोट से हार गए थे…. और तीसरे स्थान पर रवींद्र सिंह भाटी आते है…. जो चुनावी रण में निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं…. आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले उम्मेदाराम आरएलपी से कांग्रेस में आए हैं….

आपको बता दें कि भाटी ने सोशल मीडिया की धमनियों में जो आग उड़ेली है…. उससे हर किसी को जलन हो रही है…. बता दें कि इस लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से पांच भाजपा के पास हैं… तो एक कांग्रेस और दो निर्दलीय हैं…. कुछ समय पहले तक भाटी सहित दोनों निर्दलीय भाजपा के खेमे में थे…. विधानसभा चुनाव से पहले भाटी को भाजपा में इस शर्त पर शामिल किया गया था…. कि उन्हें शिव से पार्टी उम्मीदवार बनाएगी…. लेकिन टिकट स्वरूपसिंह खारा को दे दिया गया…. जिसके बाद भाटी ने निर्दलीय नामांकन भर दिया…और वे पार्टी के साथ नहीं रहे फिर भी ज़बरदस्त चुनाव लड़कर जीत गए…. वहीं चुनाव जीतने के बाद भाटी सियासी रूप से ख़ामोश रहे…. लेकिन उनकी ख़ामोशी के रंग को भाजपा नेताओं ने नहीं समझा…. जिसके चलते उनसे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने एक लंबी मुलाक़ात की…. इसके बाद भाटी को उम्मीद थी कि या तो उन्हें बाड़मेर से भाजपा टिकट देगी या इलाक़े में उन्हें ऐसा रिस्पॉन्स देगी…. जिससे क्षेत्र में उनका क़द और सम्मान बढ़ेगा… लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ… जिसके चलके रविंद्र भाटी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया… और अपना नामंकन लाखों की भीड़ के साथ जाकर कर दिया… वहीं नामांकन के दौरान उमड़े जनसैलाब को देखकर विपक्ष के पसीने छूट गए….

आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा के विद्रोही निर्दलीय के रूप में भाटी ने जीत दर्ज की थी…. और निर्दलीय कांग्रेस के बागी फ़तेह खान को तीन हजार नौ सौ पचास वोट से हराया था…. वहीं भाजपा के स्वरूप सिंह खारा को बाइस हजार आठ सौ बीस वोट से… और कांग्रेस के उम्मीदवार अमीन खान को चौबीस हजार दो सौ इकतीस वोट से पिछाड़ दिया था… वहीं भाटी पहली बार दो हजार उन्नीस में उस समय पॉपुलर हुए…… जब वे जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में विद्रोही उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और भारी वोटों से जीते…. भाटी उस समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े हुए थे…. और उनकी टिकट के लिए दावेदारी थी…. लेकिन एबीवीपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया…. जिसके बाद भाटी ने विद्रोह कर दिया…. और वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरे…. और बड़ी अंतर के साथ जीत दर्ज की… वहीं इससे पहले जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में कोई भी निर्दलीय नहीं जीत सका था…. लेकिन भाटी ने निर्दलीय तेरह सौ वोटों से जीत दर्ज की….

वहीं कोई नहीं सोच सकता था कि भारी धनबल, भुजबल और जातिबल वाले छात्र नेताओं की रवायत को सरकारी स्कूल के एक शिक्षक का 21 साल का बेटा…. जो बाड़मेर के गडरा रोड से बेहद पिछड़े इलाके के सुदूर गांव दूधोरा से आकर राजस्थानी में एमए कर रहा है…. इस तरह चुनौती देगा…. वहीं भाटी की लोकप्रियता उस समय और बढ़ी जब भाटी ने गहलोत सरकार के समय एक ऑडिटोरियम बनाने के लिए विश्वविद्यालय की सैंतीस बीघा भूमि अधिग्रहण की जाने लगी…. तो भाटी ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया…. और उनका तर्क था कि बारह सौ करोड़ रुपए मूल्य की यह भूमि विश्वविद्यालय की है…. इसे जेडीए कैसे ले सकता है…. वहीं जब सरकार नहीं मानी तो उन्होंने विधानसभा पर विशालकाय प्रदर्शन किया…. और मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में सरकार के लिए एक बड़ी सिरदर्दी पैदा कर दी… वहीं इस आंदोलन ने भाटी को राज्य स्तरीय पहचान दे दी….

वहीं विधानसभा चुनाव में भाटी दो सीटों में से किसी एक पर भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लड़ना चाहते थे…. और एक सीट थी सरदारपुरा, जहां से पिछली सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लड़ रहे थे और दूसरी थी शिव, जहां से भाजपा के कई दावेदार थे…. वहीं भाटी को न तो सरदारपुरा से टिकट दिया गया…. और न ही शिव से टिकट गया…. जानकारी के मुताबिक सरदारपुरा से भाटी को टिकट दिया जा रहा था…. लेकिन इसका विरोध इस कारण हुआ कि इससे इस लड़के की छवि पूरे देश में बन जाएगी…. और यह जोधपुर में कुछ नेताओं के लिए एक नया सिरदर्द हो जाएगा…. एक डर ये भी था कि मोदी को नया विकल्प मिलते ही, किसी का भी टिकट काट देते हैं… तो रवींद्र के बाद तो स्थिति बदल ही जाएगी….. जिसको लेकर भाटी बताते हैं कि उनके मन में सरदारपुरा से चुनाव लड़ने की बहुत इच्छा थी….. लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने टिकट नहीं दिया…. भाजपा के कुछ नेता भाटी को एक दायरे में ही रखने के पक्ष में थे…. लेकिन उनकी इस जुगत ने भाटी को उस बॉल की तरह उछाल दिया…. जो दबाने पर प्रतिक्रिया में अधिक उछलती है….

बता दें कि इसी साल चौदह मार्च को राज्य के सिंचाई महकमे ने बाड़मेर ज़िले में हैंडपंप मंज़ूर किए जाने का एक परिपत्र जारी किया….. इसमें भाटी के शिव विधानसभा क्षेत्र में बाइस हैंडपंप मंज़ूर किए गए…. लेकिन भाटी की अनुशंसा सिर्फ़ दो के लिए ही दर्शाई गई…. बाक़ी सभी के लिए स्वरूप सिंह खारा का नाम था….. जिसका संदेश साफ़ था कि प्यासे शिव के लिए विधायक भाटी तो महज़ दो हैंडपंप लगवा रहे हैं….. और उनके सामने हारे हुए उम्मीदवार की अनुशंसा पर बीस हैंडपंप लगवाए जा रहे हैं….. यह भी संकेत गया कि भाटी कमज़ोर और खारा ताक़तवर नेता हैं….. वहीं सियासी सफ़र की शुरुआत में हुआ यह फ़ैसला नवनिर्वाचित विधायक भाटी के लिए एक अजीब सा दर्द लेकर आया….. इससे उन्हें अपने सियासी सपनों का सितारा खंडित होते दिखा….. लेकिन उनकी आंखें बुझी नहीं और उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया…..

आपको बता दें कि भाटी रन फॉर रेगिस्तान और जनसंवाद जैसी यात्राओं ने भी उन्हें आम लोगों तक पहुंचने में मदद की…. उनके सहयोगी की भूमिका में रहने वाले युवा बताते हैं कि भाटी जब भी कोई अभियान शुरू करते हैं…. तो उनकी आंखें सोना भूल जाती हैं…. उनके ख़्वाब उनकी युवा साथियों की आंखों में चहलकदमी करने लगते हैं…. ताज़ा हालात बता रहे हैं कि इससे भाजपा की ही नहीं…. कांग्रेस की भी सियासी ज़मीन बेअसर होकर रह गई है और कई नेताओं के फ़लक के आईने मैले हो गए हैं… इसकी एक वजह यह है कि इस इलाके में पिछले तीस-पैंतीस साल से जाट सांसदों का वर्चस्व रहा है…. और राजपूत हाशिए पर होते चले गए हैं…. दरअसल, पहले बाड़मेर राजपूत वर्चस्व वाला इलाका था…. लेकिन साल दो हजार नौ के पुनर्सीमांकन के समय यहां से पोकरण और शेरगढ़ जैसे राजपूत बहुल इलाकों को जोधपुर में मिला दिया गया….

ज़ाहिर सी बात है कि अब छब्बीस अप्रैल को बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र में होने वाले चुनाव ने सभी को अपनी प्रतिष्ठा का एहसास करवा दिया है…. यहां रिफ़ाइनरी का काम हुआ…. उसमें अधिकतर भागीदारी जाट पृष्ठभूमि वाले लोगों की रही…. इसका कोई सटीक अध्ययन नहीं हुआ है…. लेकिन चर्चाओं के आधार पर इस इलाके में जाट बनाम अन्य का ध्रुवीकरण ज़ोर पकड़ रहा था…. भाटी के आते ही उसे एक आवाज़ मिल गई…. भाटी के आसपास इतने युवा उमड़ आए हैं कि कांग्रेस से अधिक भाजपा भयभीत है….. क्योंकि राजपूत मतदाता परंपरागत रूप से भाजपा का मतदाता है…. आपको बता दें कि भाटी स्वयं राजपूत जाति से आते हैं….. जबकि उनके सामने दोनों प्रमुख उम्मीदवार जाट हैं…. पिछले दिनों विधानसभा चुनाव में उनका भाजपा के साथ जाना उनके मुस्लिम मतदाताओं को चौंकाता है…. वहीं उनके विरोधी प्रचार कर रहे हैं कि अगर भाटी जीत भी गए तो निर्दलीय रूप में क्या करवा पाएंगे… यह तो आने वाला वक्त तय करेगा…

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