महाराष्ट्र में BJP में बड़ी अंतरकलह, फडणवीस हुए नाराज !

मुंबई। लोकसभा चुनावों को लेकर सियासी हलचल काफी तेज है और पूरे देश में अब मौसम चुनावी हो चुका है। हर ओर चुनाव की चर्चाएं हो रही हैं और हर कोई अपने-अपने हिसाब से चुनावी गुणा-गणित लगा रहा है। एक ओर सत्ताधारी दल भाजपा है जो लगातार तीसरी बार देश की सत्ता पर राज करने की जुगत में लगी हुई है। जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा ने इस बार 400 पार का लक्ष्य रखा है। अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए भाजपा जीतोड़ मेहनत कर रही है। हालांकि, ये लक्ष्य इतना आसान नहीं है। इसीलिए भाजपा साम दाम दंड भेद चारों अपना रही है। तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष है जो हर हाल में भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता पाने से रोकना चाह रहा है। इसके लिए पूरा विपक्ष एकजुट हुआ है और एकसाथ मिलकर भाजपा को खदेड़ना चाह रहा है। यही वजह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों द्वारा अपनी-अपनी योजनाओं को अब अंतिम रूप दिया जा रहा है।

इस बीच 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र राज्य में भी सियासत गरमाई हुई है। प्रदेश में आए दिन सियासी घटनाक्रम बदल रहे हैं और सियासत एक नया रंग ले रही है। एक तो प्रदेश में सीट बंटवारे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में ही घमासान मचा हुआ है और अब तक सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान नहीं हो पाया  है। तो वहीं दूसरी ओर भाजपा में गठबंधन के दलों से तो तनातनी चल ही रही है। लेकिन अब बीजेपी के अंदर भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। यानी अब पार्टी के अंदर भी नाराजगी की खबरें आ रही हैं। जो कि महाराष्ट्र में भाजपा की चिंताएं बढ़ा सकती हैं। दरअसल, भाजपा ने अबकी बार 400 पार का लक्ष्य रख तो दिया है।

लेकिन इस तक पहुंचना पार्टी के लिए काफी मुश्किल है। यही कारण है कि भाजपा हर राज्य में अपने प्रदर्शन को लेकर काफी चिंतित है। और उसे सुधारने के लिए पार्टी कई कदम उठा रही है। वो अन्य दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है और उन्हें टिकट भी थमा रही है। बेशक पार्टी आलाकमान ऐसा उन प्रत्याशियों पर दांव लगाकर अपनी सीटें बढ़ाने की वजह से कर रही है। लेकिन पार्टी के ऐसे फैसले उसके अपने ही नेताओं को पसंद नहीं आ रहे हैं। जिसके चलते पार्टी के अंदर ही बगावत व नाराजगी फैल रही है। जो बीजेपी को फायदा पहुंचाने की वजाय उल्टा नुकसान पहुंचा रही है।

कुछ ऐसा ही अब महाराष्ट्र में भी होता नजर आ रहा है। क्योंकि महाराष्ट्र में अपनी पतली हालत को मजबूत बनाने के लिए भाजपा अब एक ऐसे नेता को अपनी पार्टी में शामिल करना चाहती है। जिसकी प्रदेश में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से पुरानी अदावत रही है। ऐसे में इस चेहरे की पार्टी में वापसी से महाराष्ट्र में भाजपा में नाराजगी व अंतरकलह होना तय है। क्योंकि ये वो ही नेता है जिसने कभी उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। अब खुद भाजपा चुनाव में अपनी हालत को कमजोर देखते हुए उस नेता को वापस बुलाना चाह रहा है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं बीजेपी के पूर्व नेता एकनाथ खड़से की।

जाहिर है कि एकनाथ खड़से अभी एनसीपी शरद पवार गुट में हैं। वो भाजपा से जाने के बाद से शरद पवार के ही साथ जुटे हैं। ऐसे में भाजपा चुनाव के वक्त एकनाथ खड़से को अपने साथ लाकर शरद पवार को झटका देना चाहती है और उन्हें कमजोर करना चाहती है। लेकिन पार्टी शायद ये भूल रही है कि एकनाथ खड़से की देवेंद्र फडणवीस से भी पुरानी अदावत रही है। और ऐसे में संभव है कि खड़से के दोबारा पार्टी में आने से देवेंद्र फडणवीस नाखुश ही होंगे।

पिछले कई दिनों से ये चर्चा चल रही है कि एकनाथ खड़से भाजपा में वापसी कर रहे हैं। भाजपा में उनकी वापसी ऐसे समय में हो रही है जब भगवा पार्टी उत्तरी महाराष्ट्र के अपने गढ़ में आंतरिक चुनौतियों से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है। बता दें कि संघ परिवार के साथ 40 वर्ष बिताने के बाद खड़से ने अक्टूबर 2020 में पार्टी छोड़ दी थी और तत्कालीन एकजुट एनसीपी में शामिल हो गए थे। इसके बाद एनसीपी का विभाजन होने के बाद अब वह वर्तमान में एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के एमएलसी हैं। और शरद पवार के साथ ही खड़े हैं। बता दें कि एकनाथ खड़से ने जनसंघ से शुरुआत की थी और भाजपा के संस्थापक नेताओं में से एक थे।

हालांकि, अभी वो शामिल नहीं हुए हैं और सिर्फ चर्चाएं हैं। वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब एकनाथ खड़से से पूछा गया कि क्या वह भाजपा में वापस जा रहे हैं, तो खड़से ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ ये कहा कि मैं सभी से सलाह-मशविरा करने के बाद उचित निर्णय लूंगा। कुछ पहलू हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। ऐसा माना जा रहा है कि उनका इशारा सीधे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की ओर था। क्योंकि फडणवीस और खड़से के बीच कैसे आपसी सुलह करानी है, ये भाजपा हाईकमान के लिए भी एक टेढ़ी खीर है। कहा जा रहा है कि फडणवीस सहित राज्य भाजपा नेतृत्व खड़से की वापसी के लिए तैयार नहीं हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने ही खड़से से संपर्क किया और वह चाहता है कि लोकसभा चुनाव से पहले बदलाव हो।

क्योंकि पार्टी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। और भाजपा भी ये जानती है कि प्रदेश में उसकी हालत नाजुक है। ऐसे में अगर भाजपा को 400 पार के लक्ष्य के करीब भी पहुंचना है तो उसे महाराष्ट्र में अपनी स्थिति को मजबूत बनाना ही होगा। बता दें कि खड़से ने भाजपा छोड़ते समय फडणवीस और कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन को दोषी ठहराया था और दोनों पर उत्तर महाराष्ट्र में उनके कद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अब ये लोग खड़से की वापसी के रास्ते में नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि जब संगठन और चुनाव की बात आती है, तो सभी को पिछली शिकायतों को दूर करने और एक साथ काम करने के लिए कहा जाएगा।

फडणवीस और एकनाथ खड़से की अदावत की वजह पर अगर नजर डालें तो फडणवीस और खड़से के बीच कड़वाहट की शुरूआत 2014 में ही हो गई थी। 2014 के विधानसभा चुनाव से ही दोनों के बीच तल्खी चली आ रही है। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की जीत के बाद खड़से को बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक होने के नाते सीएम बनने की उम्मीद थी। हालांकि, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने फडणवीस को चुना। खड़से को राजस्व और कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए गए और उन्हें फडणवीस सरकार में नंबर 2 माना जाता था। हालांकि, कुछ वर्षों के भीतर, खड़से को पुणे में एक भूमि सौदे पर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। यह आरोप लगाया गया था कि राजस्व मंत्री के रूप में, खड़से ने पुणे के भोसरी में 3.1 एकड़ एमआईडीसी प्लॉट की डील को “मैनेज” किया था। आरोप है कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि इस प्लॉट को उनकी पत्नी और दामाद खरीदें। जिन्होंने इसे कम से कम 3.75 करोड़ रुपये में खरीदा था, जबकि दर 30.01 करोड़ रुपये चल रही थी।

फिलहाल अब खड़से को दोबारा से पार्टी में शामिल करने के पीछे भाजपा का मकसद प्रदेश में अपनी खस्ताहाल में कुछ सुधार करना और शरद पवार को कमजोर बनाना है। क्योंकि एकनाथ खड़से को उत्तर महाराष्ट्र का एक बेहद सम्मानित नेता माना जाता है। वह लेवा पाटिल समुदाय से हैं जो ओबीसी में आता है। यह समुदाय मराठाओं को आरक्षण देने के अपने फैसले के बाद से भाजपा से नाराज बताया जा रहा है। ऐसे में अगर खड़से भाजपा में आते हैं तो संभव है कि भाजपा ये संदेश देने का भी प्रयास करेगी कि ओबीसी उनके साथ है। और अब भाजपा इसे शांत करने की कोशिश कर रही है। सूत्रों ने कहा कि भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि खड़से की वापसी से पार्टी को उत्तरी महाराष्ट्र में जलगांव (उनका गृह आधार) और रावेर जैसे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में असंतोष को कम करने में मदद मिलेगी, जिसमें छह लोकसभा सीटें और 36 विधानसभा क्षेत्र हैं।

इस इलाके को भाजपा के गढ़ के रूप में देखा जाता है। लेकिन अब अपने गढ़ में ही भाजपा के सामने चुनौती खड़ी हो रही है और ये चुनौती उसे अपनों से ही मिल रही है। क्योंकि प्रदेश में पार्टी के अंदर वैसे ही लगातार मुश्किलें बढ़ रही हैं। कुछ दिन पहले ही बीजेपी के मौजूदा सांसद उन्मेश पाटिल जलगांव से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर शिवसेना (यूबीटी) में शामिल हो गए। बीजेपी ने यहां से अपनी पूर्व महिला प्रदेश अध्यक्ष और एमएलसी स्मिता वाघ को मैदान में उतारा है। इसके अलावा, भाजपा ने रावेर से दो बार की मौजूदा सांसद रक्षा खडसे को उतारा है जो एकनाथ खडसे की बहू हैं। हालांकि, भाजपा के फैसले से भी कुछ दरारें पैदा हुई हैं। ऐसे में बीजेपी को उम्मीद है कि अगर खड़से आते हैं तो इन समस्याओं का समाधान हो सकता है…

लेकिन देखना ये है कि भाजपा का ये दांव उसे फायदा पहुंचाएगा या उल्टा उस पर ही भारी पड़ जाएगा। क्योंकि ये तो साफ है कि एकनाथ खड़से के भाजपा में आने से देवेंद्र फडणवीस नाखुश ही होंगे। अब देखना है कि भाजपा क्या करती है।

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