दिल्ली सरकार को मिली बड़ी जीत, ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया है। एनसीटी दिल्ली के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोडक़र सेवाओं पर दिल्ली सरकार को विधायी शक्ति दी गई है। सभी जजों ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2018 के फैसले पर असहमति जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियां अन्य राज्यों के मुकाबले कम है। यहां चुनी हुई सरकार है लेकिन सरकार के पास शक्तियां सीमित हैं। कोर्ट ने माना की चुनी हुई सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एग्जीक्यूटिव मामले का अधिकार एलजी का है। लोकतंत्र में असली फैसला चुनी हुई सरकार को ही करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र का कानून नहीं है तो दिल्ली सरकार कानून बना सकती है। चुनी हुई सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण जरूरी है। एलजी को सरकार की बात माननी चाहिए। एलजी को चुनी हुई सरकार की मदद से फैसला करना चाहिए।
आप के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार केंद्र के एनसीटी कानून में संशोधन के बाद एडमिनिस्ट्रेटिव कंट्रोल को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। दिल्ली सरकार ने कोर्ट से केंद्र के साथ अपनी शक्ति की सीमा तय करने की मांग की थी। जनवरी महीने में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने चार दिनों तक दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट में केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि न सिर्फ केंद्र शासित प्रदेश केंद्र का एक्सटेंशन है, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश में काम करने वाले कर्मचारी भी केंद्र के मामलों के संबंध में काम कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने 2018 के फैसले को बड़ी बेंच को ट्रांसफर करने की मांग की थी। दिल्ली सरकार की तरफ से कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए थे, जिन्होंने मेहता की मांग का विरोध किया था।
केंद्र सरकार ने 2021 में नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली के कानूनों में संशोधन किया था। इसका आप सरकार ने पुर्जोर विरोध किया। दिल्ली सरकार ने दलील दी कि चुनी हुई सरकार के पास ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार होना चाहिए। कानून में संशोधन को दिल्ली सरकार ने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में फैसला दिया कि जिन पर दिल्ली सरकार के पास कार्यकारी और विधायी शक्तियां हैं, उन मामलों में एलजी को मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह के मुताबिक काम करना चाहिए।