संसद में पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर तीखी बहस, चिदंबरम के बयान पर बीजेपी हमलावर

संसद के मानसून सत्र में पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर के मुद्दों पर गहमागहमी तेज हो गई है। लोकसभा और राज्यसभा में 16-16 घंटे की लंबी चर्चा प्रस्तावित है। इसको लेकर कांग्रेस ने अपने सभी सांसदों को तीन लाइन का व्हिप जारी कर आगामी तीन दिनों तक सदन में अनिवार्य उपस्थिति दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं।
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के हालिया बयान ने सियासी तापमान और बढ़ा दिया है। चिदंबरम ने पहलगाम हमले के आतंकियों को “होम ग्रोन आतंकी” कहकर संदिग्ध बताया कि वे पाकिस्तान से आए थे या नहीं, यह साबित नहीं हुआ है।
चिदंबरम ने सवाल उठाया कि सरकार बताने को तैयार नहीं कि NIA ने अब तक क्या जांच की? क्या उन्होंने हमलावरों की पहचान कर ली है? क्या सबूत है कि आतंकी पाकिस्तान से आए थे, क्या वो देश के अंदर ही पनपे हुए ‘होम ग्रोन’ आतंकी नहीं हो सकते? उनके इस बयान पर बीजेपी भड़क गई। केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा चिदंबरम पाकिस्तान का बचाव क्यों कर रहे हैं? बार-बार भारत की सुरक्षा एजेंसियों पर ही सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं? क्या कांग्रेस को ISI पर हमारी सेना से ज्यादा भरोसा है?
उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस बार-बार ऐसे जघन्य आतंकी हमलों को कमतर दिखाने की कोशिश करती है, जबकि पाकिस्तान का भारत में आतंकी घुसपैठ कराने का लंबा और खून से सना इतिहास रहा है।
‘मोदी सरकार जवाब देने से क्यों बच रही?’
पी. चिदंबरम ने सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि उसने इस पूरे हमले के बारे में देश को सही जानकारी नहीं दी। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री कहते हैं ऑपरेशन खत्म नहीं, सिर्फ रोका गया है अगर ऐसा है तो फिर सरकार ने अब तक क्या किया? हमलावर कहां हैं, कौन लोग पकड़े गए, किन पर कार्रवाई हुई? सरकार इन बुनियादी सवालों से क्यों भाग रही है? उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को पूरी पारदर्शिता के साथ देश को बताना चाहिए कि हमले के बाद क्या कदम उठाए गए हैं और क्या भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने की तैयारी है।
राजनीतिक हमलों के बीच सुरक्षा पर असली फोकस की दरकार
जहां एक ओर सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर तीखे आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, वहीं आम जनता की अपेक्षा है कि इस बहस का केंद्र राजनीति नहीं, सुरक्षा नीति हो। संसद में उठ रहे सवालों से यह साफ है कि देश की सुरक्षा पर पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग बढ़ रही है।



