आप से भाजपा कांग्रेस परेशान
चुनावी रैलियों में भाजपा-कांग्रेस के बीच जुबानी जंग चल रही है तो वहीं आम आदमी पार्टी भी मैदान में डटी हुई है। बीजेपी जहां दिन-रात प्रचार करने में जुटी हैं तो वहीं कांग्रेस को तो जैसे सांप सूंघा है वो न दिख रही है, न बोल रही है और छप भी सबसे कम रही है। पांच साल पहले के चुनावों में लगभग सभी 182 सीटों पर अपना वोट बैंक साबित कर चुकी कांग्रेस के इस सन्नाटे-पूर्ण प्रचार से ना तो मोरबी पुल हादसे मुद्दा बनता दिख रहा है और ना ही बिल्किस बानो के अपराधियों की ‘बाइज़्ज़त’ रिहाई। कांग्रेस की इसी रणनीति का फायदा उठाने में आम आदमी पार्टी लगी है। शहरी मुस्लिम इलाकों में हर घर पहुंचकर वो ये साबित कर रही है कि कांग्रेस नहीं, आप ही आपका भला करेगी। शहरी इलाकों में गरीब और आम वर्ग में आप लोकप्रिय हुई है और उसकी लोकप्रियता का कारण फ्री वाला फॉर्मूला भी है। बीजेपी अगर स्थानीय मसलों की बात करेगी या काम गिनाने पर आएगी तो जाहिर तौर पर 27 साल की राज्य की और 8 साल की केंद्र की सत्ता विरोधी लहर का सामना करना होगा, मोरबी पर सफाई देनी होगी की अबतक अजंता कंपनी के मालिक जसूभाई पटेल की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? इसका भी जवाब जनता चाहेगी। चुनाव के ठीक पहले समान नागरिक संहिता जैसे राष्टï्रीय मुद्दे को बीजेपी ने उछाला है ताकि वोटों का धुर्वीकरण हो, राष्टï्रीय मुद्दे पर बहस हो और अपने हिंदूवादी वोट बैंक को साधा जाए। बीजेपी के पक्ष में भी यही जा रहा है अल्पसंख्यकों के वोट में कांग्रेस और आप में बंटवारा और बहुसंख्यक वोटों की लामबंदी।
हिमाचल के मतदान तो संपन्न भी हो गए हैं और वहां मतगणना का इंतजार किया जा रहा है, जो आठ दिसंबर को गुजरात की मतगणना के साथ ही होगा। लेकिन गुजरात में अभी मतदान होना है। जितने लोग वहां सत्ता परिवर्तन की बात कह रहे थे, उतने ही लोग भाजपा की दोबारा वापसी की बात कर रहे है। हिमाचल के चुनाव में महिलाओं को लुभाने के लिए भाजपा एवं कांग्रेस, दोनों ने बढ़-चढक़र वादे किए। लेकिन कांग्रेस के पास मजबूत संगठन नहीं है। हालांकि हिमाचल में तो फिर भी संगठन है, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में संगठन नहीं है। इस कारण कांग्रेस अपने मतदाताओं को घर से बाहर निकालकर बूथ तक लाने और मतदान कराने के मामले में मात खा जाती है, जबकि भाजपा का संगठन बहुत मजबूत है। यों तो हिमाचल एक छोटा-सा राज्य है, जहां मात्र 68 सीटें हैं, लेकिन इस बार उसका महत्व बढ़ गया है, क्योंकि वहां जिसकी भी जीत होगी, उसके लिए मनोबल बढ़ाने का काम करेगा। अगर वहां कांग्रेस जीत जाती है, तो न केवल उसे एक और राज्य मिलेगा, बल्कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी इसका श्रेय मिलेगा। लेकिन अगर सत्ता विरोधी रुझान के बावजूद भाजपा दोबारा सत्ता में वापस आती है, तो यह उसके लिए भी मनोबल बढ़ाने का काम करेगा। बेशक 27 साल से सत्ता में रहने के कारण वहां सत्ता विरोधी रुझान स्वाभाविक है। लेकिन अंतिम क्षण में हमेशा नरेंद्र मोदी के मैदान में उतरने से स्थिति नाटकीय रूप से बदल जाती है, क्योंकि तमाम विरोध के बावजूद लोग नेतृत्व के सवाल पर भाजपा के पाले में चले जाते हैं। पिछली बार भी यही हुआ था। पिछली बार गुजरात में तीन युवा नेता-हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी भाजपा के खिलाफ मैदान में थे, जिन्होंने कांग्रेस के पक्ष में चुनाव का रुख मोड़ दिया था। यदि कांग्रेस गुजरात व हिमाचल जीत जाती है, तो निश्चित रूप से उसका मनोबल बढ़ेगा।