बीजेपी ने नीतीश को हटाने का बनाया मास्टर प्लान, चुनाव से पहले बदला राज्यपाल

बिहार की राजनीति में इस समय भयंकर सियासी उठापटक जारी है... बीजेपी ने नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर करने का पूरी तरह से प्लान बना लिया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः बिहार की राजनीति में इस समय भयंकर सियासी उठापटक जारी है…. बीजेपी ने नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर करने का पूरी तरह से प्लान बना लिया है….. और दो हजार पच्चीस में बिहार में भी महाराष्ट्र वाला फार्मूला लागू करने वाली है…. यानी जिसकी जितनी भागीदारी उसको उस हिसाब से पद और मंत्रालय…. जिसको लेकर बीजेपी ने अमनी मंशा जाहिर कर दी है…. लेकिन नीतीश कुमार भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है….. और वो सियासत के मझे हुए खिलाड़ी है…. सीएम बनने के लिए वह कभी भी पलटी मार सकते हैं…. और महागठबंधन के साथ मिलकर फिर से सरकार बना सकते है…. जिसके चलते बीजेपी अभी नीतीश के साथ में हैं…. वहीं जब नीतीश कुमार को किनारे लगाने की बात सामने आई…. तो इसका जेडीयू ने विरोध किया…. जिसको लेकर बीजेपी बैकफुट पर आई…. और दो हजार पच्चीस में नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया…. लेकिन बीजेपी ने नीतीश को किनारे करने का मन बना लिया है…. और वह चुनाव होने का इंतजार कर रही है…..

वहीं जहां चुनाव हुए उसके बाद परिणाम आते ही बीजेपी महाराष्ट्र की तरह बड़ा खेला करेगी…. और बीजेपी के किसी भी नेता को सीएम बना देगी…. और नीतीश कुमार की हालात एकनाथ शिंदे की तरह होगी…. वहीं इन सब अटकलों के बीज राजद ने नीतीश कुमार को खुला ऑफर दे दिया है….. और एक बार फिर से महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा कर दिया है…. जिसको देखते हुए बीजेपी हरकत में आ गई है…. औऱ अपने बयानों से पलटी मार कर नीतीश को आगे रखने की बात कर रही है…. आपको बता दें कि अटल जी की जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में विजय सिंहा ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि बिहार को जंगलराज से मुक्त करना होगा…. और अपने दम पर बिहार में बीजेपी की सरकार बनाना होगा…. वहीं अटल जी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी…. क्योंकि बिहार में बीजेपी की सरकार बनान अटल जी का सपना था…. और हम सबको मिलकर बिहार में अकेले दम पर बीजेपी की सरकार बनानी होगी….

आपको बता दें कि बीजेपी ने अपने प्लान के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्यपाल को बदल दिया है….. और आरिफ मोहम्मद खान को बिहार की जिम्मेदारी दी गई है…. बता दें कि ऐसा बिहार में छब्बीस साल बाद हुआ है जब किसी मुस्लिम को बिहार का राज्यपाल बनाया गया हो…. बीजेपी ने आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल बनाकर बिहार में मुस्लिम वोटरों को साधने का प्लान बना लिया है…. और आरिफ मोहम्मद खान को आखिरकार राज्यपाल बना दिया है…. बता दें कि आरिफ मोहम्मद खान इससे पहले सितंबर दो हजार उन्नीस से केरल के राज्यपाल थे….. वहीं, राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर फ़रवरी दो हजार तेईस से बिहार के राज्यपाल थे….. जानकारी के मुताबिक राज्य में छब्बीस साल बाद किसी मुस्लिम राज्यपाल की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है….. जब राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं….. ऐसे में आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की नियुक्ति के कई सियासी मतलब निकाले जा रहे हैं…..

बता दें कि भारत में राज्यपालों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करते हैं…. और राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं….. केरल में कई मुद्दों पर आरिफ़ मोहम्मद ख़ान और सत्ताधारी गठबंधन एलडीएफ़ के बीच गतिरोध का माहौल रहा….. आपको बता दें कि भारत में लंबे समय से राज्यपालों पर राजनीतिक पक्षपात…. और केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं….. राज्य में चुनाव के दौरान अगर किसी राजनीतिक संकट जैसी स्थिति आती है…. और पार्टियों के बीच सरकार बनाने की स्थिति साफ़ नहीं होती…. तब राज्यपाल तय कर सकते हैं कि कौन सी पार्टी सरकार बनाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है….. वहीं राजनीतिक उठापटक में राज्यपाल की भूमिका अहम होती है….. बिहार जीतने के लक्ष्य और नीतीश कुमार को किनारे करने के लिए बीजेपी सही समय का इंतज़ार कर रही है….. राज्यपाल के तौर पर आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की नियुक्ति इस लक्ष्य की तरफ़ बढ़ते क़दमों में से एक है…..

ऐसे में ये सवाल उठता है कि आख़िर आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की नियुक्ति राजनीति में ‘टॉकिंग प्वाइंट’ क्यों बनी है….. क्या इससे मुस्लिम समुदाय की वोटिंग पर असर पड़ेगा…. क्या आने वाले दिनों में केरल जैसी कोई दुविधा से बिहार को गुज़रना पड़ सकता है…. बता दें कि राज्यपाल अब सिर्फ़ संवैधानिक पद नहीं रहा….. बल्कि उसे सक्रिय रूप में काम करना पड़ता है….. बिहार की बात करें तो यहां मुस्लिम वोटरों में एक बिखराव भी है….. मक़सद है कि इस नियुक्ति के ज़रिए मुस्लिम वोट में बिखराव का फ़ायदा नीतीश कुमार की जेडीयू को मिले….. साथ ही आगामी चुनाव में अगर त्रिशंकु सरकार की स्थिति बनेगी तो उसमें राज्यपाल की अहम भूमिका हो जाएगी….. बता दें कि बीजेपी कई निशाने एक साथ लगा रही है…. मुसलमान वोटरों को आकर्षित करना….. नीतीश कुमार को बांधे रखना और चुनाव में महागठबंधन की सरकार बन जाए तो केरल की तरह ही उसकी नाक में दम करके समानांतर सरकार चलाना…..

आपको बता दें कि आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की नियुक्ति को मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने के मक़सद के तौर पर देखा जा रहा है….. जातीय जनगणना के मुताबिक़, बिहार में सत्रह दशमलव सात, आठ फ़ीसदी लोग मुस्लिम समुदाय से आते हैं…. और मुस्लिम समुदाय की कुल आबादी में पसमांदा मुस्लिम तिहत्तर प्रतिशत हैं….. ज़ाहिर तौर पर इस वोट बैंक को सभी पार्टियां अपने पाले में करना चाहती हैं….. वहीं बीजेपी की अपनी छवि मुस्लिम विरोधी की है….. लेकिन उसके गठबंधन साथी जेडीयू, लोजपा और अन्य दलों की छवि मुस्लिम विरोधी नहीं है….. यानी आरिफ़ मोहम्मद ख़ान के आने का फ़ायदा चुनावी गणित में बीजेपी को अप्रत्यक्ष तौर पर मिल सकता है…… दिलचस्प ये है कि बीते कुछ महीनों में मुस्लिम वोट बैंक बिहार की राजनीति के केंद्र में रहा है….. पहले जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर की मुस्लिम नेताओं के बीच बढ़ी सक्रियता ने राष्ट्रीय जनता दल…. और जेडीयू को बेचैन कर दिया….. बाद में जेडीयू के कई नेताओं ने ये सार्वजनिक बयान दिया कि मुसलमान जेडीयू को वोट नहीं करते…..

ऐसे में राज्य में छब्बीस साल बाद किसी मुस्लिम राज्यपाल की नियुक्ति एमवाई (मुस्लिम यादव) समीकरण के आधार वाली पार्टी आरजेडी के लिए क्या चुनौती साबित होगी….. आपको बता दें कि डॉ. अख़लाक़-उर -रहमान किदवई चौदह अगस्त उन्नीस सौ तिरानबे से छब्बीस अप्रैल उन्नीस सौ अट्ठानबे तक बिहार के राज्यपाल रहे….. वहीं आरजेडी के प्रदेश प्रवक्ता एजाज़ अहमद इससे इनकार करते हैं….. वो कहते है कि नई नियुक्ति तो बीजेपी का राजनीतिक हथियार है….. उच्च शिक्षा को लेकर जो टकराव की स्थिति बनी रहती थी…. और हाल के दिनों में बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर जो असमंजस की स्थिति बनाई….. उससे ध्यान भटकाने के लिए ये फ़ैसला लिया गया है…..

वहीं नए राज्यपाल के नियुक्ति पर जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है कि उन्होंने कभी किसी संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं किया….. हमारी सरकार तो मुसलमानों की तालीम से लेकर जो त्याग दिया गया हो तक पर योजनाएं चला रही है….. जेडीयू के काम पर मुसलमान उन्हें वोट देते हैं….. वहीं बिहार के लिए तो अच्छी बात है कि उसे एक विद्वान राज्यपाल मिला….. इसे दूसरे किसी राजनीतिक चश्मे से देखे जाने की ज़रूरत नहीं है…. लेकिन अपने बयानों के लिए सुर्खियों में बने रहने वाले आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की नियुक्ति को ‘सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया’ से कहीं आगे की चीज़ बताया जा रहा है…..

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में अट्ठारह नवंबर उन्नीस सौ इक्यावन को जन्मे आरिफ़ मोहम्मद ख़ान अस्सी के दशक के बाद से ही सुर्खियों में बने रहे….. और उन्होनें बीए (ऑनर्स) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय…. और एलएलबी लखनऊ विश्वविद्यालय से किया….. वो एएमयू स्टूडेंट यूनियन के महासचिव और अध्यक्ष रहे….. उन्नीस सौ सतहत्तर में वो बुलंदशहर की स्याना सीट से विधायक चुने गए….. इसके बाद वो सातवीं, आठवीं, नौवीं, और बारहवीं लोकसभा में सांसद रहे….. ‘टेक्स्ट एंड कॉन्टेक्स्ट, कुरान एंड कंटेम्पररी चैलेंजेस’ किताब के लेखक आरिफ़ मोहम्मद ख़ान राजीव गांधी…. और वीपी सिंह सरकार में ऊर्जा, नागरिक उड्डयन सहित कई मंत्रालयों के मंत्री रहे….. साल उन्नीस सौ छियासी के चर्चित शाह बानो केस मामले में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार से आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने इस्तीफ़ा दे दिया था…… इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक़ लेने वाली मुस्लिम महिलाओं को इद्दत का समय गुज़ारने के बाद भी गुज़ारा भत्ता मिलने के हक़ में फ़ैसला सुनाया था…..

वहीं सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलटने के लिए राजीव गांधी सरकार संसद में विधेयक लाई थी…. और इसका विरोध आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने किया…. बाद में वो उन्नीस सौ नवासी में जनता दल से और उन्नीस सौ अट्ठानबे में बहुजन समाज पार्टी से सांसद रहे….. साल दो हजार चार में वो बीजेपी में शामिल होकर चुनाव लड़े…. लेकिन वो जीते नहीं…. आपको बता दें कि आरिफ़ मोहम्मद ख़ान इस्लामिक स्कॉलर हैं….. और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए वो पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की परंपरा वाले….. और ‘अच्छे मुसलमान’ की परिभाषा के खाके में फिट बैठने वाले हैं….. वो बीजेपी के लिए ऐसा चेहरा बन गए हैं…. जिनकी पहचान मुस्लिम कट्टरपंथ के ख़िलाफ़ बोलने वाले की है….. बीजेपी ऐसा करके बिहार के मध्यम वर्ग मुसलमानों को टारगेट कर रही है…. जो वर्तमान स्थिति में सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रहे हैं…..

दरअसल मुस्लिम समाज के एक हिस्से में आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की छवि सुधारवादी की है….. और उन्हें बीजेपी के एजेंडे को लागू करने में एक सहायक की भूमिका निभाने वाले के तौर पर देखा जाता है….. अनुच्छेद तीन सौ सत्तर, तीन तलाक़ और समान नागरिक संहिता पर आरिफ़ मोहम्मद ख़ान बीजेपी के रुख़ का ही खुलकर समर्थन करते रहे हैं…. केरल में बतौर राज्यपाल उनकी नियुक्ति भी वामपंथ के गढ़ को ढहाने की कोशिश के तौर पर देखी गई थी…. यहां का राज्यपाल रहते हुए आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को पिनराई विजयन सरकार के साथ हमेशा विवाद रहा….. क्या बिहार में ऐसे हालात बन सकते हैं….. यह तो आने वाला समय तय करेगा…. वहीं मसले पर जेडीयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद केसी त्यागी ने कहा कि उन्नीस सौ चौहत्तर में जब लोकदल बना…. तभी से नीतीश कुमार और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने साथ काम किया है….. इस कारण यहां केरल जैसे हालात नहीं बनेंगे…..

 

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