राजस्थान में बीजेपी का गेम फेल, कांग्रेस ने बदला समीकरण
लोकसभा 2024 के चुनाव में राजस्थान के नतीजों में भाजपा को 14 बनाम 11 के आंकड़े ने सत्तारूढ़ भाजपा… और उसके समर्थकों को बहुत बेचैन कर दिया है….
4पीएम न्यूज नेटवर्कः लोकसभा 2024 के चुनाव में राजस्थान के नतीजों में भाजपा को 14 बनाम 11 के आंकड़े ने सत्तारूढ़ भाजपा… और उसके समर्थकों को बहुत बेचैन कर दिया है…. भाजपा के किसी नेता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि राजस्थान के नतीजे इस तरह के रहने वाले हैं…. ख़ासकर साल 2019 में अपने एक समर्थक के साथ सभी 25 लोकसभा सीटों पर परचम फहराने वाली भाजपा के लिए इन नतीजों को पचा पाना आसान नहीं है…. वहीं चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने से पहले सभी लोकसभा क्षेत्रों में से ऐसे संकेत आ रहे थे कि मानो मतदाताओं का बड़ा वर्ग कह रहा है… कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से कोई प्यारा नहीं है… लेकिन नतीजे आए तो ऐसा लगा कि कुछ ही दिन में खंडित जनादेश देने वाले मतदाता ने कह दिया कि तेरा साथ इतना भी गवारा नहीं है…. राजस्थान की सियासत के साहिल पर जिस तरह भाजपा की कश्तियां एक-एक कर डूबी हैं… और जिस तरह कांग्रेस और उसके सहयोगी जीते हैं…. उससे प्रदेश में हैरानियां तैर रही हैं…. इससे प्रदेश नेतृत्व में एक तरह की छुपी हुई घबराहट सी है… इसकी वजह भी है….बता दें कि भाजपा के कार्यालय के भीतर और बाहर जिस तरह का माहौल इस समय है…. उसे देखकर महसूस किया जा सकता है कि पार्टी में बड़ी स्तब्धता है….
आपको बता दें कि भाजपा ही नहीं, कुछ समय पहले तक राजनीतिक विश्लेषकों को भी इसी तरह के संकेत मिल रहे थे कि पार्टी एक बार फिर पहले जैसे समर्थन के साथ ही आ रही है… लेकिन चुनाव के बीच में पूरा खेल उलटपलट गया…. यह बात इसी साल चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले की है…. वहीं सभी अनुमान लगा रहे थे कि हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में इस बार भी ब्रैंड मोदी का करिश्मा रहेगा… और राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में सभी सीटें भाजपा को न जाएं, इसका कोई कारण नहीं है…. वहीं प्रतिपक्ष हताश है और बिखरा हुआ है…. राम मंदिर बन गया है… इसकी अपनी लहर सी है… अलबत्ता, मध्य प्रदेश तो उस बयार में बह गया… लेकिन राजस्थान में सत्तारूढ़ दल के सियासी रास्ते मंजिल से भटक गए….
आपको बता दें कि राज्य सरकार के कृषि मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा आदिवासी समाज के प्रखर प्रवक्ता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने ट्वीट किया कि रघुकुल रीति सदा चली आई… प्राण जाई, पर वचन न जाई…..वैसे तो यह बहुत सामान्य ट्वीट प्रतीत होता है…. लेकिन डॉ. मीणा के पिछले बयानों पर ध्यान दें तो इससे कुछ ऐसा छलकता और झलकता है…. जो भाजपा की अंदरूनी राजनीति के लिए परेशानी और पशेमानी का सबब बन सकता है… मीणा ने कुछ दिन पहले कहा था कि उनके प्रभार वाली दौसा सीट पर पार्टी उम्मीदवार हार जाता है… तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे…. अभी दो दिन पहले उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें सात सीटों की जिम्मेदारी दी थी…. इनमें से भी वे कोई सीट हार गए तो इस्तीफा दे देंगे…. और जनता के बीच जाकर प्याऊ खोलेंगे और प्यासे लोगों को इस गरमी में पानी पिलाएंगे…. माना जाता है कि मीणा को इस सरकार में जैसी भूमिका की उम्मीद थी… वह नहीं मिली है और उनसे बहुत जूनियर लोगों को कहीं अधिक अहम पद दे दिए गए हैं….
हालांकि भाजपा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से सरकार छीनकर अपने सियासी बाग में जो बहार लेकर आई थी…. उसे वह हर कीमत पर महकाए रखना चाहती है… इसके लिए मुख्यमंत्री भजनलाल जनता के बीच जाकर हर दिन काम कर रहे हैं…. उन्होंने पूरी नौकरशाही को भी दौड़ा रखा है…. इस चुनाव के नतीजों से कांग्रेस भले कितना ही खुश हो…. बता दें कि जालौर से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत भाजपा के एक स्थानीय नेता लुंबाराम के मुक़ाबले 2,01,543 वोटों से हार गए हैं…. वे पिछली बार 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह क्षेत्र जोधपुर से केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गजेंद्रसिंह शेखावत के मुकाबले 2,74,440 वोटों से हारे थे…. इस तरह लगातार दो चुनाव हार जाने के कारण यह नतीजे वैभव गहलोत ही नहीं…. कांग्रेस की सबसे बड़ी शख़्सियत अशोक गहलोत के लिए भी बदमज़ा कर देने वाले हैं….
वहीं अशोक गहलोत के पास अमेठी का भी प्रभार था…. जहां से कांग्रेस उम्मीदवार किशोरीलाल शर्मा ने भाजपा की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हराया है…. केंद्रीय जल मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर से फिर 1,15,677 वोटों से जीत गए हैं…. लेकिन उनकी यह जीत बहुत आसान नहीं रही…. अलबत्ता, कांग्रेस के लिए कई सीटों पर हुई अप्रत्याशित जीत ने पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की आंखों में चाँद से चमका दिए हैं….. सबसे दिलचस्प जीत चूरू में रही है…. जहां कांग्रेस ने भाजपा से आए राहुल कस्वां को टिकट दिया था… और वे भाजपा के एक बड़े अभियान के सामने न केवल मज़बूती से टिक पाए…. बल्कि 71,265 वोटों से जीत गए हैं…. यहां भाजपा ने पैरा ओलंपियन देवेंद्र सिंह झाझड़िया को टिकट दी थी…. प्रधानमंत्री ने उन्हें अपना उम्मीदवार बताया था…. राहुल कस्वां और भाजपा नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ के बीच बयानबाजियां इस सीट पर काफी अप्रिय कटाक्षों तक पहुंच गई थी….
आपको बता दें कि कस्वां पर आरोप था कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा के ताक़तवर नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ को चुनाव हरवा दिया था…. इन्हीं आरोपों के बाद कस्वां का टिकट बदला गया….वहीं कांग्रेस ने आखिरी क्षणों में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से आए उम्मेदाराम को बाड़मेर से उतारा… जहां उन्होंने जीत दर्ज की है…. यह वही चर्चित सीट है… जहां निर्दलीय रवींद्र भाटी और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी मुकाबले में थे…. चौधरी 4,17,943 वोटों से हार गए हैं…. भाटी शिव से निर्दलीय विधायक थे और भाजपा को समर्थन दे चुके थे…. लेकिन अंदरूनी राजनीति के चलते उन्होंने चुनाव लड़ा…. भाटी चुनाव नहीं लड़ते तो यहाँ कांग्रेस की जीत लगभग नामुमकिन थी…. क्योंकि भाटी की तरफ गया अधिकतर वोट राजपूतों और युवाओं का था… जो स्वाभाविक रूप से भाजपा का परंपरागत मतदाता था…. जाट वोट बंट गया और राजपूत भाजपा से दूर चला गया तो एक नया ही समीकरण बन गया…. राजस्थान में तीन सीटें इस बार कांग्रेस ने समझौते में सहयोगी दलों को दी… और इन तीनों पर उन दलों के उम्मीदवार जीते हैं…. इनमें सीकर से माकपा के नेता और किसान आंदोलनों की एक पुरानी शख़्सियत अमराराम जीते हैं…. जिन्होंने भाजपा के उम्मीदवार और आर्यसमाज के प्रमुख नेता संन्यासी स्वामी सुमेधानंद सरस्वती को हराया है…. स्वामी इस सीट से दो बार लगातार लोकसभा में पहुंचे थे….
वहीं माकपा का कोई सांसद राजस्थान से 35 साल बाद लोकसभा में पहुंचा है…. इससे पहले 1989 में श्योपतसिंह बीकानेर से माकपा की टिकट पर जीते थे…. माकपा नेता प्रो. वासुदेव बताते हैं कि किसानों की वर्षों की साध अब पूरी हुई है…. जिसमें वे नारा लगाते थे कि लाल लाल लहराएगा, अमरा दिल्ली जाएगा…. दूसरी सीट नागौर थी, जहां राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल जीते हैं… और उन्होंने डॉ. ज्योति मिर्धा को उनके घर में घेर कर दूसरी बार हराया है…. मिर्धा को भाजपा ने कांग्रेस से लाकर टिकट दिया था… और उन्हें भाजपा ने विधानसभा चुनाव में भी नागौर सीट से उतारा था, लेकिन वे कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा से हार गई थीं…. बता दें कि ज्योति मिर्धा केंद्र में मोदी सरकार बनने पर संविधान में संशोधन करने संबंधी अपने बयान को लेकर विवादों में आ गई थीं….
बता दें कि इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में भी मुकाबला ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल के बीच ही हुआ था…. उस समय मिर्धा कांग्रेस की उम्मीदवार थीं और बेनीवाल के लिए भाजपा ने समझौते में सीट छोड़ी थी…. तीसरी सीट बांसवाड़ा थी, जो कांग्रेस ने समझौते में भारतीय आदिवासी दल को दी थी…. यहां तो बहुत ही ग़ज़ब मुकाबला हुआ…. यहां कांग्रेस के प्रमुख आदिवासी नेता और कई सरकारों में मंत्री रहे वरिष्ठ नेता महेंद्रजीतसिंह मालवीय ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा…. वे बागीदौरा से विधायक थे… इस पद से उन्होंने इस्तीफा देकर ही भाजपा जॉइन की थी…. जानकारों के अनुसार उनकी योजना थी कि वे भाजपा की टिकट पर आसानी से बांसवाड़ा से संसद में पहुंच जाएंगे… और बागीदौरा से पत्नी को चुनाव जितवा लेंगे… लेकिन सबसे पहले तो बागी दौरा उपचुनाव में पार्टी ने उनके एक चेले सुभाष तंबोलिया को टिकट दिया, पत्नी को नहीं…. इसके बाद चुनाव के दौरान जब भारतीय आदिवासी पार्टी और कांग्रेस का समझौता हो गया तो कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद सीता दामोर को मालवीय समर्थकों ने मना लिया कि वे टिकट वापस नहीं करें और चुनाव में डटे रहें….
जिसको लेकर दामोर ने कांग्रेस नेताओं से कहा कि वे चुनाव लड़ेंगे और नाम वापस नहीं लेंगे…. पार्टी ने दबाव बढ़ाया तो वे उस समय तक भूमिगत हो गए…. जब तक नामवापसी का समय नहीं निकल गया…. चुनाव के शुरुआती समय में ये दृश्य बड़े ही दिलचस्प थे…. लेकिन अंतत: इस सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी के युवा उम्मीदवार राजकुमार रोत भारी मतों से जीत गए…. रोत ने लोकसभा चुनाव में हतप्रभ कर देने वाले अंदाज में जनसमर्थन जुटाया…. और ऐसे कई मौक़े आए, जन बांसवाड़ा और डूंगरपुर के आदिवासी इलाकों में ठाठें मारता जनसमुद्र लोगों को हैरान करता रहा…. वहीं रोत ने अपने आदिवासी अंदाज़, लोगों को उनसे जुड़े मुद्दों को छूने… और युवाओं से लेकर बड़े-बूढ़ों और महिलाओं को साथ लेते हुए मतदाताओं के दिलों में सकुनत करके एक पुराने आदिवासी और ताक़तवर नेता को धूल चटा दी…. जिसको लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने समय रहते भारतीय आदिवासी पार्टी से समझौता किया होता तो कई सीटों पर फर्क पड़ता…. जैसे उदयपुर में ही भाजपा के मन्नालाल रावत ने कांग्रेस के तारांचद मीणा पर दो लाख से अधिक मतों से लीड ले रखी थी…. लेकिन इसी सीट पर भारतीय आदिवासी दल ने दो लाख से अधिक वोट लिए हैं….
आपको बता दें कि पुराने समाजवादी नेता अर्जुन देथा का मानना है कि कांग्रेस के नेताओं ने आदिवासी नेताओं से समय पर संपर्क साधकर उन्हें समझाने की कोशिश की होती तो इसका पूरे मेवाड़ पर असर पड़ता…. वहीं प्रदेश की भरतपुर, दौसा, गंगानगर, झुंझुनूं, करौली-धौलपुर और टोंक सवाई माधोपुर ऐसी सीटें हैं…. जहां कांग्रेस के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट समर्थक जीतने में कामयाब रहे हैं…. जयपुर ग्रामीण सीट से पायलट समर्थक युवा चेहरे अनिल चोपड़ा 1615 मतों से हार गए हैं…. इस मामले में पायलट का कहना है कि जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में हुए कांटे के मुकाबले में जिस प्रकार से प्रशासन ने दबाव से कार्य किया गया है… वह कई सवाल खड़े करता है…. काउंटिंग की प्रक्रिया संदेह के घेरे में है और इसकी शिकायत निर्वाचन आयोग को प्रत्याशी एवं पार्टी करने जा रहे हैं…. पोस्टल बैलेट की काउंटिंग पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं… और परिणाम रोकना कई संदेह उत्पन्न करता है…. मैं चुनाव आयोग से मांग करता हूं कि इस सीट पर पारदर्शिता के साथ पुनः काउंटिंग की जाए…. लेकिन यह स्पष्ट है कि पहली बार के अनिल चोपड़ा नाम वाले इस अनाम से चेहरे ने भाजपा के एक पुराने नेता राव राजेंद्रसिंह को पूरे चुनाव में बुरी तरह छकाए रखा….
वहीं पायलट समर्थकों की यह जीत उन्हें ऐसे समय अन्य के मुक़ाबले ताक़तवर साबित करती है… जब अशोक गहलोत और भंवर जितेंद्रसिंह जैसे नेताओं के इलाकों में पार्टी उम्मीदवार हारे हैं…. अलबत्ता, गोविंदसिंह डोटासरा और हरीश चौधरी के इलाकों में भी पार्टी उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे हैं…. टोंक सवाई माधोपुर में सचिन पायलट समर्थक हरीश मीणा ने भाजपा के गुर्जर प्रत्याशी सुखबीरसिंह जौनापुरिया के मुकाबले जीत दर्ज़ की है…. वे राजस्थान के डीजीपी रहे हैं…. भाजपा के जिन बड़े चेहरों ने इस चुनाव में जीत दर्ज की है… उनमें कोटा से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत और बीकानेर से अर्जुन मेघवाल प्रमुख रहे हैं… लेकिन बिड़ला, यादव और मेघवाल के लिए जीत की राहें इतनी आसान नहीं रहीं… लेकिन किसी तरह से चुनाव जीत गए….