क्या ट्रेन का चालक अपने मन से स्पीड घटा या बढ़ा सकता है?

जब भी हम ट्रेन से सफर करते हैं, तो कई बार स्पीड इतनी धीमी होती है जिसे लेकर गुस्सा भी आता है। जब भी हम लेट हो रहे होते हैं तो यही लगता है कि काश चालक ट्रेन की गति बढ़ा देता। लेकिन क्या ऐसा संभव है? क्या ट्रेन का चालक अपने मन से ट्रेन की स्पीड घटा या बढ़ा सकता है? भारतीय रेलवे में चीफ इंजीनियर रहे एक शख्स ने इसके बारे में विस्तार से बताया है। यकीन मानिए इसे पढऩे के बाद आप ट्रेन लेट होने के लिए कभी भी चालक को जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे। खुद को भारतीय रेलवे में चीफ इंजीनियर बताने वाले अनिमेष कुमार सिन्हा ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म कोरा पर इसके बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, लोको पायलट यानी ट्रेन का चालक स्पीड घटाने या बढ़ाने में अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन इसकी भी सीमा तय है। सामान्यत: लोको पायलट के लिए तीन स्पीड तय की जाती है। पहली बुक्ड स्पीड। दूसरी अधिकतम निर्धारित गति और तीसरी प्रतिबंधित गति। अब आप इसे एक उदारहण से समझिए। आम तौर पर मेल या एक्सप्रेस ट्रेन की अधिकतम निर्धारित गति 110 किलोमीटर प्रतिघंटे होती है। लेकिन बुक्ड स्पीड 100 रखी जाती है। यानी बुक्ड स्पीड अधिकतम तय गति से 10 फीसदी कम होती है। इसलिए ज्यादातर लोको पायलट 100 के स्पीड पर ट्रेन चलाएंगे। अगर ट्रेन लेट हो, तो वे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए 110 की स्पीड तक ट्रेन ले जा सकते हैं। अब यह लोको पायलट के विवेक पर है कि बुक्ड स्पीड यानी 100 द्मद्वश्चद्ध और अधिकतम गति 110 द्मद्वश्चद्ध के बीच लोको किस स्पीड से ट्रेन लेकर जाता है। अगर उसे कहींं झटका महसूस होता है, तो वह गति कम कर सकता है। अगर कहीं कोहरा आदि की वजह से विजिबिलिटी बाधित होती है तो भी लोको पायलट को स्पीड तय करने का अधिकार है। ट्रैक पर काम हो तब पुराने पुल से गुजरते समय और ज्यादा कर्व होने पर लोको पायलट 100 की स्पीड से ट्रेन नहीं चला सकता। उसे कम यानी प्रतिबंधित स्पीड पर ही ट्रेन चलानी होगी। वह 45 किलोमीटर की स्पीड पर ले जा सकता है। इन जगहों को स्पीड रेस्ट्रिक्शन एरिया कहा जाता है। यहां तक कि मेल, एक्सप्रेस और राजधानी, शताब्दी ट्रेनों के ड्राइवर भी इसी नियम का पालन करते हैं, वे चाहें तो इससे कम गति पर ले जा सकते हैं, लेकिन इससे ज्यादा स्पीड नहीं रख सकते।

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