पांच हजार साल पुराना है मंदिर, इंद्र ने यहां बनायी थी खाई

शिवलिंग नहीं यहां होती है अंगूठे की पूजा

देश में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के साथ हजारों लाखों मंदिर हैं। ज्यादातर में शिवलिंग और कुछ में मूर्ति। इनमें से कई के पीछे पौराणिक कहानी और किंवदंतियां हैं। राजस्थान के सिरोही जिले में एक ऐसा दुर्लभ शिव मंदिर है जहां भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा होती है। हम बात कर रहे हैं माउंट आबू के अचलगढ़ स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर की। इस मंदिर का इतिहास 5 हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। माउंट आबू ऋ षि वशिष्ठ की तपस्थली है। इस मंदिर के बारे में शिवपुराण और स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी उल्लेख है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर हाथी की 2 मूर्तियां बनी हुई हैं। अंदर मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर के सामने प्रवेश द्वार पर पंचधातु की नंदी की प्रतिमा है, जो करीब 4 टन वजनी है। मुख्य मंदिर में एक शिलालेख लगा है।
मुख्य मंदिर में 108 छोटे शिवलिंग हैं। आसपास कई प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। गर्भ गृह में अर्बुद नाग की प्रतिमा के बीच में गहरी खाई बनी हुई है। इस खाई के अंदर भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। इस खाई में जितना भी जल अर्पित किया जाता है, ये खाई कभी भरती नहीं है। गर्भगृह में महाराजा कुम्भा द्वारा स्थापित कालभैरव समेत कई देव प्रतिमाएं हैं। मंदिर के पुजारी पन्नालाल रावल ने बताया मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। इंद्रदेव ने यहां एक ब्रह्म खाई बना दी थी। वशिष्ठ आश्रम में नंदिनी गाय रहती थी। जो खाई में गिर जाती थी। ऋ षि ने देवी सरस्वती का आह्वान कर गाय को बाहर निकाला। आज भी वशिष्ठ आश्रम में गाय के मुख से जलधारा बहती है। देवों ने ऋ षि से कहा आपके आश्रम के बाहर गहरी खाई है, इसका कोई उपाय करो। तब अर्बुदांचल पर्वत और अर्बुद नाग को लाकर ब्रह्म खाई पर स्थापित किया गया। बाद में भूकम्प आने लगे, तो देवता ऋ षि वशिष्ठ के पास गए। ऋ षि ने समाधि ध्यान कर देखा कि महादेव के यहां नहीं होने से अर्बुद नाग के हिलने-डूलने की वजह से यहां भूकम्प आ रहे थे। तब यहां भगवान शिव के अंगूठे को स्थापित किया गया। तब से अर्बुदांचल पर्वत यहां अचल हो गया। इसलिए इस मंदिर का नाम भी अचलेश्वर हो गया।

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