Protocol मामले पर भड़के CJI BR Gavai, वकील पर ठोका जुर्माना, याचिका रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआई के प्रोटोकॉल के उल्लंघन की जांच की मांग वाली याचिका दायर करने वाले वकील को फटकार लगाते हुए वकील पर ही 7 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर सस्ती लोकप्रियता…… और प्रचार के लिए दायर याचिकाओं के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया…… यह याचिका भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के हालिया महाराष्ट्र दौरे के दौरान…… प्रोटोकॉल उल्लंघन की जांच की मांग को लेकर दायर की गई थी…… सुप्रीम कोर्ट की बेंच……. जिसकी अध्यक्षता स्वयं CJI गवई ने की…… बता दें कि जस्टिस गवई ने न केवल याचिका को खारिज किया…… बल्कि याचिकाकर्ता वकील पर 7,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया……. कोर्ट ने इस याचिका को प्रचार हित याचिका करार देते हुए याचिकाकर्ता को भविष्य में ऐसी याचिकाओं से बचने की सलाह दी…….
आपको बता दें कि यह मामला 18 मई 2025 को CJI बीआर गवई के महाराष्ट्र दौरे से शुरू हुआ……. जो उनके मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद उनकी पहली आधिकारिक यात्रा थी……. महाराष्ट्र के अमरावती से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस गवई….. देश के 52वें CJI और पहले बौद्ध और दूसरे दलित समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं……. मुंबई में बाबासाहेब आंबेडकर से जुड़े चैत्यभूमि में श्रद्धांजलि अर्पित करने…… और महाराष्ट्र व गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में भाग लेने गए थे…… इस दौरान, महाराष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई पुलिस आयुक्त की अनुपस्थिति ने विवाद को जन्म दिया…….
बता दें कि जस्टिस गवई ने इस मौके पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि यह केवल प्रोटोकॉल की औपचारिकता का मसला नहीं है…… बल्कि यह संवैधानिक संस्थाओं न्यायपालिका, विधायिका…… और कार्यपालिका के बीच आपसी सम्मान का प्रश्न है….. और उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में यह भी टिप्पणी की थी कि यदि उनकी जगह कोई…… और CJI होता तो शायद संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कार्रवाई की बात उठती……. इस टिप्पणी ने मीडिया और विपक्षी दलों का ध्यान खींचा……. जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठने लगे……
महाराष्ट्र सरकार ने तुरंत हरकत में आते हुए CJI गवई को स्थायी राजकीय अतिथि का दर्जा दे दिया……. और प्रोटोकॉल संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए……. इन दिशा-निर्देशों के तहत राज्य प्रोटोकॉल उप-विभाग…… और जिला प्रशासन को CJI की यात्राओं के दौरान स्वागत, विदाई, आवास, और सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए……. इसके अलावा राज्य के कैबिनेट मंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने व्यक्तिगत रूप से CJI से फोन पर माफी मांगी…..
वहीं इस विवाद के बाद वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की……. जिसमें महाराष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ प्रोटोकॉल उल्लंघन की जांच….. और कार्रवाई की मांग की गई थी…… याचिका में दावा किया गया कि अधिकारियों की अनुपस्थिति न केवल प्रोटोकॉल का उल्लंघन थी…… बल्कि यह CJI के पद की गरिमा का अपमान भी था…. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया…… शुक्रवार को CJI गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप यादव को कड़ी फटकार लगाई……. CJI ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह याचिका कुछ और नहीं…… बल्कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने…… और अखबारों में अपना नाम छपवाने की कोशिश है…… अगर आप सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील हैं……. तो आपको यह पता होना चाहिए कि हमने स्वयं एक प्रेस नोट जारी कर कहा था कि इस तुच्छ मामले को और तूल नहीं देना चाहिए……
CJI ने यह भी उल्लेख किया कि सभी संबंधित अधिकारियों ने अपनी गलती के लिए खेद व्यक्त कर दिया है…….. और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है…… कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 7,000 रुपये का जुर्माना लगाया…… यह तर्क देते हुए कि याचिकाकर्ता सात साल से वकालत कर रहा है…… इसलिए प्रतीकात्मक रूप से 7,000 रुपये का दंड उचित है……. कोर्ट ने यह राशि सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस सेल में जमा करने का निर्देश दिया….. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं न केवल कोर्ट के समय का दुरुपयोग करती हैं…… बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करने का प्रयास भी हैं……. CJI गवई ने याचिकाकर्ता को चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी याचिकाओं से बचें……. क्योंकि यह न केवल उनके पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाता है…… बल्कि CJI के पद की गरिमा को भी प्रभावित करता है…..
इससे पहले जस्टिस सूर्यकांत ने भी याचिका की जल्द सुनवाई की मांग पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि लोग सस्ती लोकप्रियता क्यों हासिल करना चाहते हैं…… कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि CJI की नाराजगी व्यक्तिगत नहीं थी…… बल्कि यह संवैधानिक पद की गरिमा और आपसी सम्मान की रक्षा के लिए थी….. CJI गवई ने अपने बयानों में बार-बार इस बात पर जोर दिया कि प्रोटोकॉल का पालन केवल औपचारिकता नहीं है…… बल्कि यह संवैधानिक संस्थाओं न्यायपालिका, विधायिका, और कार्यपालिका के बीच आपसी सम्मान का प्रतीक है….. और उन्होंने कहा था कि जब किसी संवैधानिक संस्था का प्रमुख पहली बार किसी राज्य का दौरा करता है……. तो उसके स्वागत और सम्मान की व्यवस्था पर विचार किया जाना चाहिए……
वहीं इस मामले ने न केवल महाराष्ट्र सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए……. बल्कि विपक्ष को भी सरकार पर हमला करने का मौका दिया……. विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली सरकार ने CJI के प्रति उचित सम्मान नहीं दिखाया…… जो महाराष्ट्र के लिए गर्व का विषय होना चाहिए था….. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी इस मामले में CJI का समर्थन करते हुए कहा कि प्रोटोकॉल का पालन संवैधानिक पदों की गरिमा को बनाए रखने के लिए आवश्यक है….. और उन्होंने अपने अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि कई बार उन्हें भी प्रोटोकॉल के उल्लंघन का सामना करना पड़ा है…… जैसे कि उनके चित्र को आधिकारिक समारोहों में शामिल न करना……
आपको बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने इस विवाद को शांत करने के लिए त्वरित कदम उठाए…… CJI को स्थायी राजकीय अतिथि का दर्जा देने के साथ-साथ…… सरकार ने प्रोटोकॉल संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए……. जो महाराष्ट्र राज्य अतिथि नियम 2004 पर आधारित हैं…. इन नियमों के तहत CJI को हवाई अड्डों पर स्वागत…… और विदाई की व्यवस्था, आवास, परिवहन और सुरक्षा जैसी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी…… मुख्यमंत्री फडणवीस ने भी इस मामले में सक्रियता दिखाई…… और अधिकारियों को भविष्य में ऐसी चूक से बचने के निर्देश दिए….. बाद में मुख्य सचिव, DGP और मुंबई पुलिस आयुक्त ने CJI से चैत्यभूमि में मुलाकात की….. और अपनी गलती के लिए माफी मांगी……
जस्टिस बीआर गवई का यह दौरा न केवल प्रोटोकॉल विवाद के कारण चर्चा में रहा……. बल्कि उनके व्यक्तित्व और सामाजिक योगदान के कारण भी…… महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे जस्टिस गवई ने अपने करियर की शुरुआत एक युवा वकील के रूप में की….. और बॉम्बे हाईकोर्ट में सरकारी वकील और लोक अभियोजक के रूप में कार्य किया…… 2003 में वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज बने…… 2005 में स्थायी जज और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए….. जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट में कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों का हिस्सा रहते हुए ऐतिहासिक फैसले दिए…… जिनमें बुलडोजर कार्रवाइयों पर रोक और क्रीमी लेयर की अवधारणा को अनुसूचित जातियों….. और जनजातियों पर लागू करने का सुझाव शामिल है….. उनकी नियुक्ति को ऐतिहासिक माना जा रहा है…… क्योंकि वे पहले बौद्ध और दूसरे दलित CJI हैं….. जिनका न्यायिक दर्शन डॉ. बीआर आंबेडकर के संवैधानिक आदर्शों से प्रेरित है…..



