CJI बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत का बयान,कहा- HC जजों को निचली अदालतों की क्षमता पर टिप्पणी का अधिकार नहीं
जस्टिस कांत ने कहा कि हाई कोर्ट के जज और ज्यूडिशियल अधिकारी तमाम सामाजिक स्तरों से आते हैं और अपने साथ वास्तविक जीवन के अनुभवों का खजाना लेकर आते हैं,

4पीएम न्यूज नेटवर्क: देश के मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस सूर्यकांत ने उच्च अदालतों के जजों द्वारा निचली अदालतों के जजों की क्षमता पर टिप्पणी करने की प्रवृत्ति को खारिज किया है. सीजेआई ने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ नहीं हैं और हाई कोर्ट को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण देना चाहिए, आलोचना नहीं.
भारत के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने निचली अदालतों के जजों की नॉलेज और क्षमता पर टिप्पणी करने की उच्च न्यायालयों के जजों की प्रवृत्ति को अस्वीकार किया है. सीजेआई का कहना है कि हाई कोर्ट देश के सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ नहीं हैं क्योंकि दोनों ही संवैधानिक कोर्ट हैं. सुप्रीम कोर्ट केवल हाई कोर्ट के आदेशों को सही कर सकता है, संशोधित कर सकता है या रद्द कर सकता है. संविधान हाई कोर्ट के व्यक्तिगत जजों की क्षमता, योग्यता या ज्ञान पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं देता है.
जस्टिस कांत ने कहा कि उच्च अदालतों के जजों को निचली अदालतों के जजों के लिए मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए. त्रि-स्तरीय न्याय व्यवस्था में अनुनय-विनय और मार्गदर्शन, आलोचना और फटकार से बेहतर परिणाम देते हैं. जस्टिस कांत अगले सीजेआई होंगे, जो 24 नवंबर को गवई का स्थान लेंगे.
सीजेआई और जस्टिस कांत का बयान उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के आदेश को “सबसे खराब और सबसे गलत बताया गया और उन्हें आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकने की आलोचना हुई है. पीठ ने शुक्रवार को जज को पद से हटाने के अपने निर्देशों को हटा दिया और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मामले पर विचार करने का अनुरोध किया.
“ऐसा जज जिसने गलती न की हो, अभी पैदा होना बाकी है” कहावत में निहित दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए सीजेआई ने कहा कि यही सिद्धांत हाई कोर्ट के जजों पर भी लागू होता है, जिन्हें ज्यूडिशियल अधिकारियों की ओर से लिखे गए विवादित आदेशों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई करते समय उनकी योग्यता, ज्ञान या क्षमता की कमी के आधार पर उन्हें फटकारने से बचना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘”उन्हें प्रशासनिक रूप से यह बताना होगा कि कैसे और किस क्षेत्र में सुधार किया जाना चाहिए. इसके लिए संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका है. निचली अदालतों के जजों को न्याय देने के तमाम पहलुओं में जरूरी ट्रेनिंग देने, कानून के तमाम क्षेत्रों में ज्ञान हासिल करने और कोर्ट रूम में उचित आचरण और शिष्टाचार बनाए रखने में हाई कोर्ट की भूमिका जस्टिस डिलीवरी सिस्टम के भविष्य को आकार देगी. साथ ही साथ न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को मजबूत करेगी.’
‘HC के जजों को केस बांटने का अधिकार SC का नही’
जस्टिस कांत ने कहा कि हाई कोर्ट के जज और ज्यूडिशियल अधिकारी तमाम सामाजिक स्तरों से आते हैं और अपने साथ वास्तविक जीवन के अनुभवों का खजाना लेकर आते हैं, जिनका उपयोग, समायोजन और लीगल ट्रेनिंग के माध्यम से जस्टिस डिलीवरी सिस्टम को समृद्ध बनाने के लिए किया जा सकता है. इससे ओपन कोर्ट में सुनवाई की दिन-प्रतिदिन की चुनौतियों का सामना किया जा सके और वादियों की शिकायतों का समाधान किया जा सके.
जस्टिस कांत ने कहा, ‘न्यायिक पक्ष में सुप्रीम कोर्ट को हाई कोर्ट को यह निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है कि उनके कौन से जज किस प्रकार के मामलों की सुनवाई करेंगे या किस तरीके से मामलों का निर्णय किया जाएगा. वह केवल उदाहरण दे सकता है और अपने निर्णयों से उनका मार्गदर्शन कर सकता है. जजों को मामलों का आवंटन और उनकी सूची पूरी तरह से संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के अधिकार क्षेत्र में आती है.’



