Maharashtra सरकार पर नई मुसीबत, अब झंडा फहराने को लेकर विवाद शुरू

महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बने अभी बहुत अधिक समय नहीं हुआ है... अभी कुछ ही महीने बीते हैं लेकिन लगातार तनातनी का माहौल व्याप्त है...  

4पीएम न्यूज नेटवर्कः महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बने अभी बहुत अधिक समय नहीं हुआ है….. अभी कुछ ही महीने बीते हैं लेकिन लगातार तनातनी का माहौल व्याप्त है…. बता दें कि शिंदे- अजित पवार में हमेशा किसी न किसी बात को लेकर खटपट देखी जाती है….. वहीं कभी शिंदे गुट और एनसीपी आमने- सामने आ जाते हैं….. तो कभी शिंदे की नाराजगी बीजेपी से खुलकर सामने आ जाती है….. तो कभी देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ शिंदे गुट और एनसीपी गुट के नेता बिरोध में बयानबाजी करने लगते है….. लेकिन इस बार एक बार फिर शिवसेना और एनसीपी में नया विबाद शुरू हो गया….. और इसबार विवाद गहारने की मुख्य वजह झंडा फहराने को लेकर है….. बता दें कि रायगढ़ में झंडा फहराने का विवाद दोनों गुटों में बढ़ता जा रहा है….. वहीं शिवसेना शिंदे गुट अब अदिति टतकरे के झंडा फहराने को लेकर जमकर विरोध कर रहा है…. और कह रहा है कि अदिति तटकरे को ध्वाजारोहण न करने दिया जाए…..

महाराष्ट्र की राजनीति में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन…… जिसमें भारतीय जनता पार्टी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं…… जिसमें एक बार-बार फिर आंतरिक तनाव….. और विवादों के कारण सुर्खियों में रहा है……. दो हजार चौबीस के विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन ने दो सौ तीस सीटों के साथ भारी जीत हासिल की……. जिसमें बीजेपी को एक सौ बत्तीस, शिवसेना को सत्तावन, और एनसीपी को इकतालीस सीटें मिलीं…….. हालांकि, गठबंधन की यह मजबूत स्थिति आंतरिक मतभेदों…… और सत्ता के बंटवारे को लेकर चल रहे विवादों के कारण कमजोर दिखाई देती है…… ताजा विवाद रायगढ़ जिले में कल यानी एक मई दो हजार पच्चीस को महाराष्ट्र दिवस के अवसर पर ध्वजारोहण के सम्मान को लेकर है……. जिसमें एनसीपी की कैबिनेट मंत्री अदिति तटकरे…… और शिवसेना के स्थानीय विधायकों, विशेष रूप से भरत गोगावले…… और महेंद्र दलवी, के बीच तकरार सामने आई है……. यह विवाद रायगढ़ के गार्जियन मंत्री पद को लेकर लंबे समय से चल रहे तनाव का हिस्सा है…… जिसे लेकर शिवसेना और एनसीपी के बीच गहरी खटास देखने को मिल रही है……

आपको बता दें कि एक मई दो हजार पच्चीस को महाराष्ट्र दिवस के अवसर पर रायगढ़ जिले के जिलाधिकारी कार्यालय में ध्वजारोहण का सम्मान एनसीपी की कैबिनेट मंत्री अदिति तटकरे को देने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने रखा…….. यह निर्णय शिवसेना के स्थानीय नेताओं……. विशेष रूप से विधायक भरत गोगावले और महेंद्र दलवी के लिए मान्य नहीं रहा……. शिवसेना नेताओं का तर्क है कि रायगढ़ जिले में उनकी पार्टी का मजबूत जनाधार है…… और ध्वजारोहण जैसे प्रतीकात्मक….. और प्रतिष्ठित अवसर का सम्मान उनके नेताओं को मिलना चाहिए…… इस विरोध ने एक बार फिर महायुति गठबंधन के भीतर सत्ता…… और प्रभाव के लिए चल रही खींचतान को उजागर किया है….

वहीं यह विवाद केवल ध्वजारोहण तक सीमित नहीं है…….. बल्कि इसके पीछे रायगढ़ के गार्जियन मंत्री पद को लेकर लंबे समय से चली आ रही तनातनी है…… जनवरी दो हजरा पच्चीस में अदिति तटकरे को रायगढ़ का गार्जियन मंत्री नियुक्त किया गया था……. लेकिन शिवसेना के तीव्र विरोध के बाद इस नियुक्ति को स्थगित कर दिया गया……. शिवसेना का दावा है कि रायगढ़ में उनकी पार्टी का वर्चस्व है……. और गार्जियन मंत्री का पद उनके किसी नेता…… विशेष रूप से भरत गोगावले को दिया जाना चाहिए……. इस स्थिति ने गठबंधन के भीतर न केवल एनसीपी…… और शिवसेना के बीच….. बल्कि बीजेपी की मध्यस्थता और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं……

रायगढ़ जिले के गार्जियन मंत्री पद को लेकर विवाद महायुति गठबंधन के भीतर सत्ता के बंटवारे की कठिनाइयों को दिखाता है…… गार्जियन मंत्री का पद किसी जिले में विकास परियोजनाओं के लिए धन आवंटन…… और नीतिगत निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है……. जिससे यह एक शक्तिशाली और प्रतिष्ठित पद बन जाता है……. रायगढ़ में शिवसेना के तीन विधायक भरत गोगावले (महाड), महेंद्र थोरवे (करजत), और महेंद्र दलवी (अलिबाग) हैं……. जबकि एनसीपी की केवल अदिति तटकरे (श्रीवर्धन) विधायक हैं……. इसके बावजूद एनसीपी की अदिति तटकरे को गार्जियन मंत्री बनाने का निर्णय शिवसेना के लिए अपमानजनक माना गया……

जिसको लेकर शिवसेना नेताओं का तर्क है कि दो हजार बाईस से दो हजार चौबीस तक रायगढ़ के गार्जियन मंत्री शिवसेना के उदय सामंत थे……. और इस परंपरा को बनाए रखा जाना चाहिए….. दूसरी ओर एनसीपी का दावा है कि अदिति तटकरे महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं……. और रायगढ़ से विधायक हैं……. इस पद के लिए उपयुक्त हैं…… इस विवाद ने स्थानीय स्तर पर तनाव को बढ़ाया…… जिसमें गोगावले के समर्थकों ने मुंबई-गोवा राजमार्ग को अवरुद्ध करने की कोशिश की….. और सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी……

आपको बता दें कि यह विवाद केवल रायगढ़ तक सीमित नहीं है……. नासिक जिले में भी गार्जियन मंत्री पद को लेकर शिवसेना…… और बीजेपी के बीच समान तनाव देखा गया…… जहां शिवसेना के दादाजी भुसे को यह पद चाहिए था……. लेकिन बीजेपी के गिरीश महाजन को नियुक्त किया गया……. वहीं इन विवादों ने गठबंधन के भीतर सत्ता के असमान वितरण……. और बीजेपी की कथित पक्षपातपूर्ण भूमिका को उजागर किया है…… महायुति गठबंधन में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है…….. और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में वह गठबंधन के निर्णयों में प्रमुख भूमिका निभाती है……. हालांकि, गार्जियन मंत्री और ध्वजारोहण जैसे विवादों में बीजेपी की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं…….. आलोचकों का कहना है कि बीजेपी ने एनसीपी को प्राथमिकता देकर शिवसेना को दरकिनार करने की कोशिश की है……. जिससे गठबंधन में असंतुलन पैदा हुआ है…….

गार्जियन मंत्री पद के लिए अदिति तटकरे की नियुक्ति……. और ध्वजारोहण के लिए उनके नाम का प्रस्ताव बीजेपी के समर्थन के बिना संभव नहीं था……. शिवसेना नेताओं का मानना है कि बीजेपी ने जानबूझकर एनसीपी को मजबूत करने की रणनीति अपनाई है…… ताकि शिवसेना का प्रभाव कम हो……. यह विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रायगढ़ में शिवसेना का मजबूत आधार है……. और स्थानीय स्तर पर यह निर्णय उनके कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष का कारण बना है…… वहीं जनवरी दो हजार पच्चीस में जब रायगढ़ और नासिक के गार्जियन मंत्री पदों पर विवाद शुरू हुआ…… तो मुख्यमंत्री फडणवीस ने इन नियुक्तियों को स्थगित कर दिया…… हालांकि अप्रैल दो हजार पच्चीस तक इस मुद्दे का कोई स्थायी समाधान नहीं निकला…… जिससे शिवसेना के नेताओं में निराशा बढ़ी……. आलोचकों का कहना है कि बीजेपी ने इस विवाद को जानबूझकर लंबा खींचा……. ताकि दोनों सहयोगी दलों को नियंत्रित किया जा सके……

दिसंबर दो हजार चौबीस में हुए कैबिनेट विस्तार…… और पोर्टफोलियो वितरण में भी बीजेपी ने प्रमुख मंत्रालय…… जैसे गृह और राजस्व, अपने पास रखे……. जबकि शिवसेना को शहरी विकास और आवास जैसे कम प्रभावशाली मंत्रालय दिए गए…….. एनसीपी को वित्त और उत्पाद शुल्क जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिले…… जो शिवसेना के लिए असंतोष का कारण बना….. वहीं बीजेपी की यह रणनीति गठबंधन में संतुलन बनाए रखने की कोशिश है…… एनसीपी के नेता अजित पवार दो हजार तेईस में शरद पवार से अलग होकर महायुति में शामिल हुए……. गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं……. बीजेपी को लगता है कि एनसीपी को मजबूत करके वह शरद पवार की एनसीपी (एसपी) के प्रभाव को कम कर सकती है…… दूसरी ओर शिवसेना पहले ही दो हजार बाइस में उद्धव ठाकरे से अलग होकर कमजोर हुई है…… और बीजेपी के लिए कम चुनौती पेश करती है…..

हालांकि यह रणनीति उलटी भी पड़ सकती है…… शिवसेना के कार्यकर्ताओं और नेताओं में बढ़ता असंतोष गठबंधन की एकता को खतरे में डाल सकता है…… रायगढ़ में शिवसेना नेताओं द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन….. और चट्टा फिल्म की स्क्रीनिंग का बहिष्कार….. इस असंतोष के स्पष्ट संकेत हैं…… महायुति गठबंधन में यह कोई नया विवाद नहीं है…… दो हजार तेइस से ही शिवसेना और एनसीपी के बीच विभिन्न मुद्दों पर तनाव देखा गया है……. अगस्त दो हजार तेईस में स्वतंत्रता दिवस के लिए जिलों के ध्वजारोहण के लिए मंत्रियों की सूची जारी होने पर एनसीपी ने असंतोष जताया था…… क्योंकि उनके मंत्रियों को उनके गृह क्षेत्रों से दूर के जिलों में भेजा गया था……

जुलाई दो हजार तेईस में अजित पवार के महायुति में शामिल होने के बाद मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर शिवसेना ने आपत्ति जताई थी……. विशेष रूप से वित्त मंत्रालय को लेकर…. कड़ी नाराजगी जाहिर की थी….. दिसंबर दो हजार चौबीस में हुए कैबिनेट विस्तार में शिवसेना के कई वरिष्ठ नेताओं……. जैसे दीपक केसकर और तानाजी सावंत, को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली, जिससे असंतोष बढ़ा…… वहीं इन सभी विवादों में बीजेपी की भूमिका बिचौलिया के रूप में रही है….. लेकिन उसकी निर्णय लेने की प्रक्रिया पर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं…… वहीं रायगढ़ में चल रहे विवाद का स्थानीय स्तर पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है……. शिवसेना के कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनकी पार्टी को जानबूझकर कमजोर किया जा रहा है…… जिससे उनका मनोबल प्रभावित हो रहा है…… दूसरी ओर एनसीपी के समर्थक अदिति तटकरे की नियुक्ति को उनकी योग्यता…… और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर उचित ठहराते हैं…….

आपको बता दें कि यह विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में क्षेत्रीय अस्मिता……. और सत्ता के प्रतीकों की भूमिका को भी दर्शाता है……. ध्वजारोहण जैसे अवसर न केवल प्रतीकात्मक होते हैं…… बल्कि स्थानीय नेताओं के प्रभाव को प्रदर्शित करने का माध्यम भी हैं……. शिवसेना का विरोध इस बात का संकेत है कि वे अपने क्षेत्रीय वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं…… जबकि एनसीपी अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रही है….. बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन में संतुलन बनाए रखना है…….. यदि वह एनसीपी को अधिक तरजीह देती है…… तो शिवसेना के साथ संबंध और खराब हो सकते हैं……. दूसरी ओर यदि वह शिवसेना की मांगों को मान लेती है…… तो एनसीपी के साथ तनाव बढ़ सकता है……

बता दें कि गार्जियन मंत्री और अन्य महत्वपूर्ण नियुक्तियों में पारदर्शिता और सहमति की आवश्यकता है…… सभी सहयोगी दलों के साथ विचार-विमर्श करके निर्णय लिए जाने चाहिए….. रायगढ़ जैसे जिलों में जहां शिवसेना का मजबूत आधार है…… उनकी भावनाओं का सम्मान करना महत्वपूर्ण है……. बीजेपी को यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय नेताओं को उचित प्रतिनिधित्व मिले….. गार्जियन मंत्री जैसे विवादों को लंबे समय तक लटकाने के बजाय स्थायी समाधान निकालना होगा……

 

 

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